Next Story
Newszop

ट्रंप आख़िरकार कनाडा से चाहते क्या हैं?

Send Push
Getty Images

मचियास सील द्वीप उत्तरी अमेरिका के नक्शे में एक छोटे से बिंदु की तरह दिखता है.

लेकिन धुंध से घिरे इस चट्टानी द्वीप की अपनी लोकेशन की वजह से अहमियत है. ये उस इलाके में है, जिसे 'ग्रे ज़ोन' कहा जाता है.

ये जगह अमेरिका और कनाडा के बीच एक दुर्लभ अंतरराष्ट्रीय विवाद की वजह बनी हुई है.

अमेरिका और कनाडा पड़ोसी हैं और लंबे समय से सहयोगी भी. लेकिन दोनों इस द्वीप और इसके चारों ओर घिरे पानी पर दावा करते हैं. ये इलाक़ा ऐसी जगह है जहां अमेरिकी प्रांत मेयन और कनाडा का न्यून ब्रंसविक प्रांत मिलता है.

image BBC

बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ करें

image BBC

इसके साथ ही दोनों देश इस जल क्षेत्र में मिलने वाले बेशकीमती झींगा मछलियों को पकड़ने और उन्हें बेचने पर भी अपना दावा करते हैं.

'ग्रे जोन' में पिछले 30 साल से झींगा मछली पकड़ने का काम कर रहे अमरिकी नागरिक जॉन ड्रोइन बताते हैं कि यहां अमेरिकी और कनाडाई मछुआरों में होड़ मची रहती है. हर साल गर्मियों में मछली पकड़ने की शुरुआत में दोनों ओर से इसे लेकर होड़ रहती है कि कौन पहले अपने जाल बिछाता है.

वो कहते हैं, ''लोगों ने इन झगड़ों में अपने हाथ-पैर भी गंवाएं हैं.''

'ग्रे जोन' में हुए झगड़ों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके एक दोस्त को कनाडाई लाइन में झींगा पकड़ते पाए जाने पर अपना एक अंगूठा गंवाना पड़ा था.

अमेरिका और कनाडा के बीच मचियास सील द्वीप के चारों ओर 277 वर्ग मील का समुद्री क्षेत्र 17वीं सदी की आख़िर से ही विवाद का मुद्दा रहा है.

1984 में इस मामले में एक अंतरराष्ट्रीय अदालत ने ये फ़ैसला दिया था कि इस जलमार्ग पर अमेरिका और कनाडा दोनों का मछली पकड़ने का हक बनता है.

अमेरिका और कनाडा के संबंधों को लेकर ये मुद्दा अजीबोगरीब हालात पैदा करता रहा है. हालांकि लंबे समय से दोनों देशों के नजदीकी संबंध बने रहे हैं.

लेकिन अब इन संबंधों के बदलने की नौबत आ पहुंची है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा व्हाइट हाउस में लौटने के बाद ही कनाडाई आयात पर ऊंचे टैरिफ़ लगा दिए गए.

ट्रंप जब-तब कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य कहते रहते हैं. इसने दोनों देशों के बीच मनमुटाव पैदा कर दिया है. कनाडा और अमेरिका के बीच दशकों बाद इस तरह का विवाद दिखा है. ऐसे में सवाल है कि अमेरिका आख़िर उस देश से क्या चाहता है जो कई दशक से उसका अच्छा सहयोगी रहा है.

झींगा युद्ध image BBC जॉन ड्रोइन कहते हैं कि ग्रे जोन में झींगा मछली पकड़ने को लेकर अक्सर अमेरिकी और कनाडाई मछुआरों में झगड़े होते हैं

अमेरिकी प्रांत मेयन का कटलर कस्बा 'ग्रे जोन' से सबसे नजदीक है. यहां बहुत कम घर दिखते हैं. एक सप्लाई स्टोर है. जाहिर है ये झींगा मछली के होलसेलर का है.

बड़े शहरों में काम करके रिटायर्ड हो चुके लोगों और छुट्टी बिताने आने वालों के अलावा इस जगह का अस्तित्व यहां काफी ज्यादा पाए जाने वाले क्रस्टेसिएन्स (केकड़े और ऐसे ही जीव) पर टिका है. ये केकड़े तटीय इलाकों से लगे समुद्री पानी में मिलते हैं.

लेकिन यहां मछली पकड़ने वालों के लिए 'ग्रे जोन' को लेकर बना अंतरराष्ट्रीय गतिरोध रोजमर्रा की वास्तविकता है. मेयन की खाड़ी के नीचे से सटे इलाकों में जाल बिछा कर बेशकीमती झींगा मछली पकड़ने और उन्हें बाज़ार में लेकर जाने वालों के लिए ये गतिरोध कोई नई बात नहीं है.

झींगा मछलियों को पकड़ने के सीजन के दौरान यहां नावों का तांता लग जाता है. लेकिन जब यहां बहुत ज्यादा भीड़ हो जाए और जीविका दांव पर हो तो माहौल खराब जाता है.

ड्रोइन कहते हैं, ''आप क्या समझते हैं हमें ये माहौल पसंद है. बिल्कुल नहीं.''

वो 'ग्रे जोन' में पिछले 30 साल से झींगा पकड़ते आ रहे हैं.

वो कहते हैं, ''जब तक मुझे थोड़ी राहत न मिल जाए मैं इस माहौल के बारे में शिकायत करता रहूंगा.''

मेयन में झींगा पकड़ने वाले एक और शख़्स निकल लिमिक्स कहते हैं कि हाल के कुछ वर्षों में उनके और उनके बेटे के 200 से ज्यादा जाल चोरी हो चुके हैं. और इसके लिए वो उत्तर दिशा में मछली पकड़ने वालों को दोषी ठहराते हैं.

वो कहते हैं, ''ये हमारा इलाका है और हमें यहां काम करना है. इस तरह की बातें हमें अच्छी नहीं लगती.''

अमेरीकियों का कहना है कि कनाडा के नियम उनके मछुआरों के ज्यादा अनुकूल हैं इसलिए वो ज्यादा झींगा पकड़ पाते हैं.

जबकि कनाडा के लोगों का कहना है कि अमेरिका के पास झींगा पकड़ने के लिए ज्यादा इलाका है. वो चोरी-छिपे उनके इलाके में झींगा पकड़ रहे हैं.

कनाडा के सीमा अधिकारी के संगठन ने हाल में शिकायत की थी उन्होंने इस इलाके में नियम लागू करने के कदम उठाए तो अमेरीकियों ने इसका जवाब हिंसा से दिया. इसके बाद कुछ कनाडाई अधिकारियों ने 'ग्रे जोन' में काम करने से इनकार कर दिया. .

कनाडाई अधिकारी लगातार स्वचालित लाइटहाउसों के रखरखाव के लिए मचियास सील द्वीप में अपने मेंटनेंस कर्मचारी भेजते हैं. वो कहते हैं के ये इस बात का सुबूत है कि इस द्वीप पर कनाडा का नियंत्रण है.

उधर अमेरिकी कहते हैं उनकी नौसेना ने दूसरे विश्वयुद्ध में इस द्वीप पर कब्जा किया था. वो उसे अपनी संप्रभुता का सुबूत मानते हैं.

लगातार सीमा विवाद image BBC

ये सीमा विवाद ख़त्म होता नहीं दिखता. लेकिन ट्रंप के पहले कार्यकाल में 'ग्रे जोन' की घटनाएं इतनी उग्र नहीं थीं. अमेरिका और कनाडा के रिश्तों में गर्माहट बनी हुई थी.

2017 में जब ट्रंप ने व्हाइट हाउस में जस्टिन ट्रूडो की मेजबानी की थी तो उन्होंने दोनों देशों के बेहतरीन रिश्तों को खूब तारीफ़ की थी. उन्होंने दोनों देशों के रिश्तों को ख़ास कहा था जो सिर्फ सरहद ही नहीं बहुत कुछ कुछ साझा करते हैं.

लेकिन उनका ये सुर काफी तेजी से बदला है.

हाल के कुछ महीनों के दौरान ट्रंप ने कनाडा को बार-बार अपना 51वां राज्य कहा है. व्हाइट हाउस अमेरिका-कनाडा सीमा पर बार-बार नए विवाद पैदा करने को तैयार दिखा है.

पिछले साल सितंबर में ट्रंप ने कहा था कि कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत का पानी पाइपलाइन के जरिये सूखे से जूझ रहे कैलिफोर्निया तक पहुंचाया जा सकता है.''

उन्होंने कहा था, ''आपके पास उत्तर से लाखों गैलन पानी बहकर आ रहा है. आपके पास बहुत बड़ा नल है.''

1500 मील सुदूर पूर्व में ग्रेट लेक्स दोनों देशों के बीच विवाद की एक और जगह बन सकती है.

हाल में अमेरिकी अधिकारियों ने कनाडाई अधिकारियों से कहा है कि वो इस इलाके में साझा पर्यावरण रेगुलेशनों से जुड़े समझौते से पीछे हट सकते हैं.

उसी दिशा में उससे भी दूर एक लाइब्रेरी भी झगड़े की वजह बन सकती है. इसे अमेरिका और कनाडा के बीच सहयोग के प्रतीक के तौर पर सोच-समझकर यहां बनाया गया है.

हसकेल फ्री लाइब्रेरी और ओपेरा हाउस में दोनों देशों के नागरिक जा सकते थे.

लेकिन मार्च में अमेरिका ने कनाडाई लोगों के अपने यहां इमिग्रेशन नियम लागू कर दिए. अमेरिकी होमलैंड मंत्रालय ने कहा कि ऐसा उसने ड्रग्स तस्करी रोकने के लिए किया है.

प्राकृतिक संसाधनों लेकर लड़ाई image Getty Images कनाडा के पास काफी प्राकृतिक संसाधन हैं जिन पर अमेरिका की नज़र है

कनाडा और अमेरिका को लेकर प्राकृतिक संसाधनों पर दावेदारी की लड़ाई चल रही है. कनाडा के पास रेयर अर्थ मेटल, तेल, कोयला और लकड़ी का भंडार हैं.

ट्रंप की नज़र इन पर लंबे समय से है.

हालांकि ट्रंप ने कहा है कि उन्हें कनाडा की लकड़ी, ऊर्जा भंडार और मैन्यूफैक्चर्ड सामान नहीं चाहिए.

लेकिन ट्रूडो ने फरवरी में कनाडाई कारोबारियों और श्रमिक नेताओं से बंद कमरे की बैठक में कहा था कि ट्रंप का इरादा दूसरा है.

इस बारे में न्यूज़ आउटलेट सीबीएस को ट्रूडो ने बताया था, ''ट्रंप प्रशासन जानता है कि हमारे पास कितने अहम संसाधन हैं. वो बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि हमारे पास क्या है और इससे लाभ उठाने के लिए खुद को सक्षम बनाना चाहते हैं."

कनाडाई पत्रकार और 'द बिग स्टोरी' पॉडकास्ट के होस्ट जॉर्डन हीथ-रॉलिंग्स का मानना है कि ट्रंप को कनाडाई संसाधन चाहिए और राष्ट्रपति के कनाडा को 51वें राज्य बनाने के बयान को गंभीरता से लिया जाना चाहिए.

रॉलिंग्स कहते हैं, "ट्रंप एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पहचाने जाना पसंद करते हैं जो अमेरिका में बहुत अधिक जमीन ले आया है. शायद वो आकर्टिक का इलाका चाहते हैं जो निश्चित तौर पर आने वाले दिनों में और ज्यादा कीमती होगा.''

ट्रंप के जो बयान आए हैं उससे अमेरिका और कनाडा की सीमा को लेकर भी संदेह पैदा हो गया है.

रॉलिंग्स ने मार्च में कहा था, "अगर आप नक्शे को देखें तो पाएंगे कि उन्होंने कनाडा और अमेरिका के बीच एक कृत्रिम रेखा खींच दी है. किसी ने बहुत पहले ऐसा कर दिया था लेकिन इसका कोई मतलब नहीं."

कहने की ज़रूरत नहीं है कि ट्रंप के बयानों ने कनाडाई नेताओं को खिन्न कर दिया है.

मार्च में ट्रूडो ने आरोप लगाया कि ट्रंप कनाडाई अर्थव्यवस्था को पूरी तरह तबाह कर देना चाहते हैं ताकि उन्हें कनाडा को अमेरिका में मिलाने में आसानी हो.

पिछले महीने जब ट्रंप ने कनाडा पर नए टैरिफ़ का एलान किया तो ट्रूडो ने कहा, ''ट्रंप के दिमाग में कनाडा को मिलाने का ये सबसे आसान तरीका है. और ये वास्तविकता है.''

'नियम नहीं अपवाद' image Reuters ट्रंप अक्सर कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य कह देते हैं.

कुछ लोग कनाडा, ग्रीनलैंड और पनामा नहर को लेकर ट्रंप की योजना में एक पैटर्न देखते हैं. ये बताता है कि अमेरिका के नज़रिये में कैसा नाटकीय बदलाव आया है.

अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने जनवरी में साफ कहा था कि दूसरे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका का वर्चस्व नियम नहीं अपवाद था.

ओटावा यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफे़सर माइकल विलियम्स के मुताबिक़ ट्रंप प्रशासन को अब लगता है कि दुनिया में अमेरिका का वर्चस्व संभव नहीं है या जरूरी नहीं है. अमेरिका अपने से दूर-दराज के इलाकों में चल रहे संघर्षों और यूरोप में अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हट सकता है.''

उनका कहना है कि इसके बजाय अमेरिका अपने ' कोर क्षेत्र' को ज्यादा प्राथमिकता देना चाहता है.

वो कहते हैं, "अगर यह अमेरिका की योजना है तो इसका मतलब वो दोनों ओर के 'चोक पॉइंट' को काबू करना चाहता है. इससे प्राकृतिक संसाधनों तक अधिकतम पहुंच बनाना संभव है, जो कनाडा में बहुत ज्यादा है. ताकि अब जब चाहें अपने उद्योग वहां दोबारा लगा सके."

ऐसा जियोपॉलिटिकल नज़रिया नया नहीं है.

1820 में अमेरिकी राष्ट्रपति जेम्स मोनरो ने एक नई वैश्विक व्यवस्था की परिकल्पना की थी जिसके तहत अमेरिका और यूरोप ने खुद को अपने-अपने गोलार्द्धों तक सीमित कर लिया था.

लेकिन यह दूसरे विश्वयुद्ध के अंत के बाद से अमेरिकी विदेश नीति में एक अहम बदलाव को दिखाता है.

योजना या एक सनक? image Getty Images ट्रंप के पहले कार्यकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकर रहे जॉन बोल्टन ट्रंप की नीतियों से खुश नहीं हैं

प्रोफ़ेसर विलियम्स कहते हैं कि यह पता लगाना मुश्किल है कि ट्रंप आख़िर सोच क्या रहे हैं.

जॉन बोल्टन भी ऐसा ही सोचते हैं. बॉल्टन ने ट्रंप के कार्यकाल में एक साल से अधिक समय तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में काम किया था.

वो कहते हैं, "ट्रंप के पास कोई नज़रिया नहीं है. उनके पास आइडिया हैं लेकिन वो सुसंगत पैटर्न पर काम नहीं करते. उनकी नीतियों में कोई स्ट्रेटजी नहीं है."

उन्होंने कहा कि ट्रंप फिलहाल खनिजों और प्राकृतिक संसाधनों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.

बॉल्टन का कहना है कि प्राकृतिक संसाधन का दोहन करने का अच्छा तरीका ये है कि इसके लिए प्राइवेट सेक्टर को सक्रिय किया जाए न कि अपने सहयोगी देश को मिलाने का विचार पेश किया जाए.

प्रोफे़सर विलियम्स और बॉल्टन इस बात पर सहमत हैं कि कनाडा के बारे में ट्रंप की मंशा चाहे जो रही हो इससे जो कूटनीतिक क्षति हुई है, उसकी भरपाई मुश्किल है.

टूटा हुआ भरोसा image Getty Images ट्रंप के पहले कार्यकाल में कनाडा से अमेरिका के रिश्ते अच्छे थे लेकिन अब वो बात नहीं है

प्रोफ़ेसर विलियम्स कहते हैं, "ट्रंप कई संदर्भों के जरिये ये कहना चाहते हैं कि दूसरों के पास कोई दांव नहीं है. लेकिन आप लोगों पर जितना दबाव डालेंगे उतना ही आपको ये बात पता चलेगी कि उनके पास भी ऐसे दांव हैं जिनके बारे में आपको पता नहीं है. और वे ये दांव आजमा भी सकते हैं. भले ही आपके पास ज़्यादा दांव हो लेकिन ऐसा करने से बहुत आसानी बहुत कुछ आपके पास छिटक सकता है.''

हीथ-रॉलिंग्स कहते हैं, "हम लड़ाई नहीं चाहते. लेकिन ऐसा हुआ तो कनाडा तैयार है."

अमेरिका और कनाडा के बीच टूटते भरोसे को कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी भी मानते हैं.

उन्होंने हाल ही में कहा था, "अमेरिकी अर्थव्यवस्था और मिलिट्री के साथ पुराने दौर के संबंध अब ख़त्म हो गए हैं. मैं कनाडा को कमज़ोर करने की हर कोशिश को अस्वीकार करता हूं."

19वीं सदी में दोनों देशों के बीच बॉर्डर पर विवाद होते रहते थे. 1812 के युद्ध में अमेरिका ने कई बार कनाडा की ज़मीन पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया था.

1844 में अमेरिका में कुछ लोगों का मानना था कि अगर ब्रिटेन कनाडा पर उसके कुछ दावों को नहीं मानता तो मिलिट्री एक्शन का रास्ता अपनाया जाना चाहिए.

ये सब अब इतिहास का हिस्सा है.

अब दोनों देशों के बीच रिश्तों में दरार आ गई है और ये मालूम नहीं है कि इनका भविष्य क्या होने वाला है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें , , और पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

image
Loving Newspoint? Download the app now