राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ़ प्लान ने शुरू में अमेरिका पहुँचने वाले कई देशों के सामान पर आयात शुल्क बढ़ा दिया था.
जिन देशों के सामान पर ये शुल्क लगाया गया था, उनमें से कुछ ऐसे भी थे जो लंबे समय से अमेरिका के सहयोगी रहे हैं.
हालांकि नौ अप्रैल को इसके लागू होने के कुछ घंटे बाद ही ट्रंप ने चीन को छोड़कर बाकी दुनिया के लिए रेसिप्रोकल टैक्स पर 90 दिनों की अस्थायी रोक की घोषणा कर दी थी.
ट्रंप के इस कदम पर कुछ विश्लेषकों ने ये पूछना शुरू किया कि क्या हमेशा से निशाना सिर्फ़ चीन ही था?
क्या चीन को सज़ा देना है मकसद?राष्ट्रपति ट्रंप पद संभालने के बाद से ही व्यापारिक मुद्दों को केंद्र में रख रहे हैं. व्हाइट हाउस में आने के बाद से ही उन्होंने तमाम देशों पर व्यापक टैरिफ़ लगाने की बात कहनी शुरू कर दी थी.
उनका दावा था कि अमेरिका के साथ व्यापार करने वाले देश उसका फ़ायदा उठा रहे हैं और स्थानीय उद्योगों को इससे नुकसान पहुंच रहा है.
दो अप्रैल को ट्रंप के सबसे बड़े और विवादित टैरिफ़ घोषणाओं ने अफ़रा-तफ़री मचा दी और ट्रेड वॉर जैसी स्थिति के मद्देनजर दुनिया भर के स्टॉक बाज़ारों में खलबली मच गई.
इसके बाद ट्रंप ने 90 दिनों के लिए चीन को छोड़कर बाक़ी देशों को अस्थायी राहत देने की घोषणा की.
लेकिन चीन को राहत देने के उलट ट्रंप ने टैरिफ़ बढ़ाकर 145 फ़ीसदी कर दिया. इसके बाद कुछ अमेरिकी अधिकारियों का बयान आया कि इसका वास्तविक लक्ष्य चीन को सजा देना और उसे बातचीत के टेबल पर आने को मजबूर करना है.
ट्रंप प्रशासन ने हाल में एक और घोषणा की थी कि मोबाइल और कंप्यूटर सहित कई इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को रेसिप्रोकल टैरिफ़ से छूट दी जाएगी. इसमें चीन से आया हुआ सामान भी शामिल होगा.
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने संवाददाताओं से कहा था, "चीन अमेरिका के व्यापारिक समस्याओं के मूल में हैं. सच्चाई तो ये है कि वो पूरी दुनिया के लिए ही समस्या हैं."
हालांकि, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ इस तरह उलझने के अपने ख़तरे भी हैं. चीन ने भी रेसिप्रोकल टैक्स पर कदम उठाते हुए 12 अप्रैल से अमेरिका से आने वाले सामान पर टैक्स को बढ़ाकर 125 फ़ीसदी कर दिया.
हालांकि ट्रंप जो कर रहे हैं, वो उनके पूर्ववर्ती बराक ओबामा की शुरू की गई एक नीति को ही आगे बढ़ाने जैसा दिखता है. ये नीति है चीन के बढ़ते प्रभाव और शक्ति को रोकने के प्रयास में अमेरिका का ध्यान ज़्यादा से ज़्यादा पूर्वी देशों की तरफ़ शिफ़्ट कराना.
पिछले सप्ताह के घटनाक्रम के बारे में लेखक और राजनीतिक विश्लेषक टिम मार्शल ने बीबीसी को बताया, "यह एक नया दौर है और अर्थव्यवस्था इसका एक विशाल हिस्सा है. मेरा मानना है कि ये चीन के बारे में है. ब्रिटेन और यूरोप के लिए टैरिफ़ में बदलाव लाए जाएंगे और फ़ोकस चीन पर होगा."

जब से ट्रंप दूसरी बार व्हाइट हाउस में आए हैं तब से चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर गहराता ही जा रहा है. पिछले कुछ समय से दोनों ही एक-दूसरे के ख़िलाफ़ रेसिप्रोकल टैरिफ़ के मामले में जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं.
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में ट्रंप के टैरिफ़ को 'नंबर गेम' बताया है. मंत्रालय ने कहा है कि इसका कोई व्यावहारिक महत्व नहीं है.
मंत्रालय ने कहा कि अगर चीन से निर्यात किए जाने वाले सामान पर अमेरिका टैरिफ़ लगाना जारी रखता है तो अब चीन इसे नज़र-अंदाज़ करेगा.
बीबीसी के चीन संपादक स्टीफ़न मैकडोनेल कहते हैं, "चीनी नेताओं ने बार-बार ट्रंप प्रशासन को 'बुली' करार दिया है और उनका कहना है कि वो इससे डरने वाले नहीं हैं."
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने हाल में सोशल मीडिया पर चेयरमैन माओ की तस्वीरें पोस्ट की थी और इसमें कोरियाई युद्ध के दौरान का एक क्लिप भी था.
इस क्लिप में माओ अमेरिका से ये कहते हुए दिख रहे हैं, "चाहे ये युद्ध कितना भी लंबा चले, हम पीछे नहीं हटेंगे."
उन्होंने अपना बयान भी पोस्ट किया, जिसमें वो कह रही हैं, "हम चीनी लोग हैं. हम उकसावे से डरते नहीं हैं. हम पीछे नहीं हटेंगे."
अमेरिकी दबाव को लेकर चीन की प्रतिक्रियाचीन से अमेरिका निर्यात होने वाली चीजें चीन की कुल जीडीपी के लगभग दो फ़ीसदी के बराबर है.
ब्रिटेन में सिटी इंडेक्स की एक वरिष्ठ मार्केट एनालिस्ट फ़ियोना किनकोट्टा ने बीबीसी को बताया, "चीन अमेरिका पर निर्यात की निर्भरता को कम कर रहा है. अब चीनी निर्यात का सिर्फ़ 13 फ़ीसदी हिस्सा अमेरिका जाता है. ट्रंप के पहले कार्यकाल में ये 26 फ़ीसदी था."
कुछ विश्लेषकों को लगता है कि चीन को पहले ही ट्रंप के टैरिफ़ का अंदाज़ा हो गया था.
'द इकोनोमिस्ट' के एडिटर डेविड रेनी हाल ही में चीन में अधिकारियों और स्कॉलर्स से मिले थे. उन्होंने कहा, "चीन लंबे समय से इसकी तैयारी कर रहा था."
उन्होंने कहा, "उन्होंने अमेरिकी कदमों से बचने के लिए एक शॉर्ट टर्म बचाव की तैयारी की हुई है लेकिन वो स्थायी समाधान तलाशने की भी कोशिश कर रहे हैं. उनकी कोशिश अपनी अर्थव्यवस्था को निर्यात पर बहुत ज्यादा केंद्रित होने से दूर ले जाना है."
अमेरिका के साथ इस ट्रेड वॉर के बीच चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग नए ट्रेड पार्टनर्स बनाने पर भी काम कर रहे हैं.
चीन ट्रंप के टैरिफ़ से प्रभावित देशों को एकजुट होने की अपील भी कर रहा है.
स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज़ के साथ 11 अप्रैल को हुई बैठक के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि चीन और यूरोपीय यूनियन को 'साथ आकर इस अमेरिकी टैरिफ़ का जवाब देना चाहिए.
शी इस महीने उन देशों की यात्रा पर भी जाने वाले हैं जो ट्रंप के टैरिफ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. इनमें वियतनाम, मलेशिया और कंबोडिया भी शामिल हैं.
चीन के दूसरे देशों से संपर्क करने के पीछे की एक वजह ये भी हो सकती है कि वे उन्हें आश्वस्त करना चाहते हैं.
चीन का अमेरिकी बाज़ार की जगह दूसरे बाज़ार की तलाश करना भी कई तरह की दिक्कतें पैदा कर सकता है.
रेनी ने कहा कि अगर चीनी सामान से ये बाज़ार भर जाएंगे तो ये उन देशों में नौकरी और अवसरों को नुकसान पहुंचाएंगे. ये फिर चीनी नेतृत्व के सामने कूटनीतिक और जियोपॉलिटिकल संकट पैदा करेंगे.
दूसरा मसला घरेलू बाज़ार का भी हो सकता है. चीन में उपभोक्ताओं ने बीबीसी से कहा है कि अगर अमेरिकी सामान महंगा होता है तो वो स्थानीय ब्रांड को अपना लेंगे.

चीन की अर्थव्यस्था का हाल ये है कि महंगाई लगातार घट रही है.
महंगाई को मापने का एक तरीका उपभोक्ता मूल्य सूचकांक होता है. इसके आधिकारिक आंकड़े से पता चला है कि चीन में ये लगातार दूसरी बार मार्च में गिरा है. घरेलू स्तर पर भी मांग बढ़ती नहीं दिख रही है.
अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर ग्राहम एलिसन हाल ही में चीन से लौटे हैं. उन्होंने कहा, "शी जिनपिंग चीन और अमेरिका के इकोनोमिक वॉर के ख़तरे के बारे में जानते हैं और 'खराब समय' के लिए तैयार हैं."
उन्होंने कहा "कम से कम मैंने जो सबूत देखे हैं, उससे तो यही लगता है कि उन्होंने सभी सेक्टर्स में तैयारी कर ली है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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