तारीख़ 14 अप्रैल (भीमराव आंबेडकर की जयंती)
जगह- दिल्ली की आंबेडकर यूनिवर्सिटी का कैंपस
यूनिवर्सिटी का कैंपस भारत के संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की जयंती पर सरकारी छुट्टी की वजह से बंद है.
गेट पर ताला लगा है और कई गार्ड तैनात हैं. उस पार एक बड़े पेड़ के नीचे छात्र संगठन स्टूडेंट फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया से जुड़े छात्र भूख हड़ताल पर बैठे हैं.
ये भूख हड़ताल पिछले आठ दिनों से चल रही है. आंबेडकर यूनिवर्सिटी में एक छात्रा के साथ कथित रैगिंग से शुरू हुआ विवाद अब लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए छात्र आंदोलन तक पहुंच गया है.
आंदोलन कर रहे छात्रों का आरोप है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने बिना कारण बताए कथित रैगिंग के मामले को उठाने वाले तीन छात्रों को एक साल के लिए निलंबित कर दिया था. ये घटना फ़रवरी की है.

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छात्रों का आरोप है कि बीते शुक्रवार को जब पांच छात्र नेताओं ने निलंबित छात्रों के समर्थन में प्रदर्शन किया तो उन्हें भी प्रशासन ने जांच पूरी होने तक निलंबित कर दिया.
वहीं, यूनिवर्सिटी प्रशासन ने पांच और छात्रों को निलंबित करने के फ़ैसले का बचाव करते हुए दावा किया है कि प्रदर्शनकारी छात्रों ने यूनिवर्सिटी के वाहनों को नुक़सान पहुंचाया और सरकारी काम में बाधा डालने की कोशिश की.
समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए रजिस्ट्रार नवलेंद्र कुमार सिंह ने दावा किया कि छात्रों ने उनकी और वाइस चांसलर अनु सिंह लाठेर की कारों का रास्ता रोका.
रजिस्ट्रार ने दावा किया, "वो मेरी कार से लटक गए और वीसी की कार को आगे नहीं बढ़ने दिया. पुलिस और सुरक्षा गार्डों को दख़ल देना पड़ा. हमने पुलिस को शिकायत दी है और इस मामले में एफ़आईआर भी दर्ज करवाई जाएगी."
रजिस्ट्रार ने मार्च में तीन छात्रों को निलंबित करने के बारे में कहा कि इन छात्रों को मीडिया में ग़लत बयान देने और एक संवेदनशील विषय पर राजनीति करने के लिए निलंबित किया गया था.
हालांकि, प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना है कि यूनिवर्सिटी ने जिन छात्रों को रैगिंग के आरोप में निलंबित किया था उन्हें तो बहाल कर दिया गया है, लेकिन रैगिंग के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले छात्रों का निलंबन बरक़रार रखा है.
वहीं शुक्रवार को निलंबित किए गए छात्रों ने रजिस्ट्रार के आरोपों को ख़ारिज करते हुए बीबीसी से कहा कि वो सिर्फ शांतिपूर्ण तरीक़े से अपनी बात कुलपति तक पहुंचाना चाहते थे.
एसएफ़आई की छात्रनेता और आंबेडकर यूनिवर्सिटी छात्र संघ की महासचिव शरण्या ने बीबीसी से कहा, "हम सिर्फ अपनी बात वीसी तक पहुंचाना चाहते थे. हमने उनसे मिलने का वक़्त मांगा था जो नहीं दिया गया. हमने लिखित में भी गुज़ारिश की थी, लेकिन हमारी कोई बात नहीं सुनी गई. जब हमने वीसी से अपनी बात कहनी चाही तो हमें पीटा गया और घसीटा गया."
शरण्या का आरोप है कि मर्द सुरक्षाकर्मियों ने उनके साथ बदसलूकी की. इस घटनाक्रम के वीडियो में भी सुरक्षा गार्ड शरण्या को यूनिवर्सिटी के गेट से खींचते दिख रहे हैं. ये वीडियो बीबीसी ने देखा है.
ये छात्र मार्च में निलंबित किए गए तीन छात्रों नादिया, अनन और हर्ष के निलंबन को वापस लेने की मांग कर रहे थे.

सोमवार को आंबेडकर जयंती के मौक़े पर यूनिवर्सिटी की तरफ़ से आयोजित सालाना आंबेडकर व्याख्यान के दौरान भी कुछ छात्रों ने प्रदर्शन किया.
हाथ में आंबेडकर के पोस्टर लेकर ये छात्र इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के व्याख्यान हॉल में कुलपति के सामने खड़े हो गए. एसएफआई से जुड़े इन छात्रों ने कहा- "आंबेडकर यूनिवर्सिटी में कोई लोकतंत्र नहीं है, छात्र भूख हड़ताल पर हैं. उनकी मांगों को सुनिए."
छात्रों को बीच में रोकते हुए आंबेडकर यूनिवर्सिटी के प्रॉक्टर सत्यकेतु सांक्रित ने कहा, "ये वो लोग हैं जिन्होंने विश्वविद्यालय में आतंक फैला रखा है."
हालांकि, यूनिवर्सिटी प्रशासन से जुड़े दूसरे लोगों ने प्रदर्शनकारी छात्रों को शांतिपूर्ण तरीक़े से हॉल से बाहर कर दिया और प्रॉक्टर को चुप करा दिया.
बीबीसी ने यूनिवर्सिटी प्रशासन से जुड़े लोगों से हाल के घटनाक्रम के बारे में बात करनी चाही, लेकिन बात नहीं हो सकी.
यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता आदित्य सिंह ने बीबीसी से कहा कि प्रशासन पहले ही मीडिया में बयान दे चुका है. फिलहाल इससे आगे कोई बात नहीं की जाएगी.
वहीं छात्र नेता शरण्या कहती हैं, "छात्र आठ दिनों से भूख हड़ताल पर हैं. उनकी सिर्फ इतनी मांग है कि कुलपति आएं और उनसे बात करें. कैंपस में बातचीत की जो जगह है, लोकतांत्रिक बहस की जो जगह है, प्रशासन ने उसे ख़त्म कर दिया है."
शरण्या कहती हैं, "प्रबंधन ने पहले तीन छात्रों के निलंबन की वजह नहीं बताई और अब शुक्रवार को छात्रसंघ से जुड़े दो छात्रों समेत पांच छात्रों को निलंबित कर दिया. हम बस इसका कारण जानना चाहते हैं."
वहीं निलंबित किए गए कुछ छात्रों को लगता है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन तानाशाही रवैया अपना रहा है और तर्क और बहस की गुंज़ाइश को ख़त्म कर रहा है.
निलंबित किए गए शोध छात्र शुभोजीत कहते हैं, "मैं पीएचडी कर रहा हूं, मैं समाज को तार्किक तरीके से समझने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन यहां हमारी सोच को ही ख़त्म किया जा रहा है. अगर मैं अपने कैंपस में रैगिंग के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठा सकता तो मेरे इतना पढ़ने या पीएचडी करने का क्या मतलब है?"
शुभोजीत को डर है कि निलंबन की वजह से उनकी पढ़ाई प्रभावित होगी और उनके पीएचडी पूरा करने में भी दिक़्क़ते आ सकती हैं.
छात्रों के और भी कई तरह के आरोप हैं. यूनिवर्सिटी प्रशासन ने 26 मार्च को कैंपस के प्रशासनिक क्षेत्र और इससे सटे इलाक़ों में प्रदर्शन पर रोक लगा दी थी.
शरण्या कहती हैं, "यूनिवर्सिटी में अब छात्रों के लिए खुली जगह नहीं बची है. जगह-जगह बैरीकैड लगे हैं. इन बैरिकेड पर उन्हीं आंबेडकर की तस्वीर है जिन्होंने समाज के लिए ऐसे अवरोधकों को तोड़ने में अपना जीवन समर्पित कर दिया. ये बिडंबना ही है कि आंबेडकर के नाम पर बनी यूनिवर्सिटी में लोकतांत्रिक अधिकारों का इस तरह गला घोंटा जा रहा है."
पांच बजे के बाद एक तरह का कर्फ्यूआंबेडकर यूनिवर्सिटी को साल 2008 में दिल्ली सरकार ने एक क़ानून पारित कर स्थापित किया था. इसके दिल्ली में चार कैंपस है. यहां स्नातक से लेकर शोध तक की पढ़ाई होती है.
भूख हड़ताल कर रहे छात्र नेता समीर ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि जब तक छात्रों की मांगें नहीं मानी जाएंगी ये भूख हड़ताल जारी रहेगी. आंबेडकर यूनिवर्सिटी के छात्र क्रमिक भूख हड़ताल कर रहे हैं यानी एक-एक करके छात्र भूख हड़ताल पर बैठ रहे हैं.
समीर कहते हैं, "ये एक लोकतांत्रिक कैंपस है. बाबा साहेब ने जो संविधान बनाया उसमें हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी है, विरोध की आज़ादी है. लेकिन आंबेडकर के नाम पर बने इस कैंपस में इन संवैधानिक मूल्यों का गला घोंटा जा रहा है. हम इन मूल्यों पर हो रहे इन हमलों के ख़िलाफ़ ही लड़ रहे हैं."
छात्रों का दावा है कि हाल के दिनों में कैंपस में सख़्ती बढ़ी है और शाम पांच के बाद छात्रों को अंदर दाख़िल नहीं होने दिया जाता है.
समीर कहते हैं, "बहुत से छात्रों को शाम को आईटी लैब और लाइब्रेरी में पढ़ाई करनी होती है. लेकिन यहां पांच बजे के बाद एक तरह का कर्फ्यू लगा दिया जाता है. इससे छात्रों का अध्ययन कार्य प्रभावित हो रहा है."
शरण्या भी इसी तरह के आरोपों को दोहराते हुए कहती हैं, "कैंपस में छात्र इकट्ठा नहीं हो सकते, लोकतांत्रिक तरीक़ों से अपनी बात नहीं रख सकते. प्रशासन छात्रों पर सख़्ती करके उनकी आवाज़ को दबा रहा है."
वहीं जिन तीन छात्रों को रैगिंग के ख़िलाफ़ शिकायत करने के बाद निलंबित किया गया था उन्होंने राहत के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की है.
निलंबित किए गए छात्र अनन कहते हैं, "हमें दो सेमेस्टर यानी पूरे एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया है. शिक्षा हमारा अधिकार है और यूनिवर्सिटी के आदेश पर स्टे के लिए हम दिल्ली हाई कोर्ट गए हैं. हमें उम्मीद है हाई कोर्ट हमें राहत देगा."
अब तक क्या-क्या हुआ?28 फ़रवरी: एक छात्रा के साथ कथित रैगिंग की गई
01 मार्चः नादिया, अनन और हर्ष नाम के छात्रों ने घटना को रिपोर्ट किया
03 मार्चः घटना की जांच शुरू, रैगिंग के आरोप में 8 छात्र निलंबित
04 मार्चः एसएफ़आई ने छात्रसंघ का चुनाव जीता
05 मार्चः प्रॉक्टर ने नादिया, अनन और हर्ष को निलंबित किया
20 मार्चः प्रॉक्टर ने रैगिंग के आरोप में निलंबित छात्रों को बहाल किया, प्रदर्शनकारी छात्रों का निलंबन रद्द नहीं किया गया
26 मार्चः कैंपस के कुछ इलाक़ों में प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाया गया
27 मार्चः एसएफ़आई ने बैरिकेड लांघे, प्रतिबंध के नोटिस को जलाया
08 अप्रैलः यूनिवर्सिटी ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया- छात्रों के निलंबन की समीक्षा की जा रही है
09 अप्रैलः छात्रों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की
11 अप्रैलः यूनिवर्सिटी प्रशासन ने छात्रसंघ के दो निर्वाचित अधिकारियों समेत पांच और छात्रों को निलंबित किया.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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