ग्रैंडमास्टर कोनेरू हम्पी और उनसे आधी उम्र की दिव्या देशमुख में से कोई भी शतरंज का फ़िडे महिला विश्व कप का ख़िताब जीते, इससे भारतीय महिला शतरंज में इतिहास रचा जाएगा.
इसकी वजह यह है कि इन दोनों खिलाड़ियों ने एक ऐसा ख़िताब भारत के हिस्से आना तय कर दिया है, जिसके फ़ाइनल में इससे पहले कोई भी भारतीय महिला खिलाड़ी पहुँच नहीं सकी थी.
कोनेरू हम्पी भारत की पहली ग्रैंडमास्टर बनने वाली महिला खिलाड़ी हैं. वह लगातार दूसरी बार कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए क्वालिफ़ाई करने वाली भारत की पहली खिलाड़ी हैं.
यह सिर्फ़ दूसरा मौक़ा है जब भारत की दो खिलाड़ियों ने कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए क्वालिफ़ाई किया है. दिव्या देशमुख पहले ही इस टूर्नामेंट के लिए क्वालिफ़ाई कर चुकी हैं.
कैंडिडेट्स टूर्नामेंट से विश्व चैंपियन को चुनौती देने वाले खिलाड़ी का चयन होता है.
कोनेरू हम्पी बीबीसी इंडियन स्पोर्ट्सवुमन ऑफ़ द ईयर अवॉर्ड के दूसरे संस्करण की विजेता हैं.
ख़िताबी मुक़ाबला: दो पीढ़ियों का संघर्ष
हम्पी और दिव्या के बीच होने वाला ख़िताबी मुक़ाबला दो पीढ़ियों का संघर्ष है. दिव्या अपनी फ़ाइनल की प्रतिद्वंद्वी हम्पी से आधी उम्र की हैं.
हम्पी की उम्र 38 साल है, जबकि दिव्या 19 साल की हैं. यही नहीं, हम्पी 2014 में शादी कर चुकी हैं और उनकी अहाना नाम की बेटी भी है. अहाना के जन्म की वजह से वह दो साल तक प्रतियोगी शतरंज से दूर भी रही हैं.
हम्पी का शतरंज करियर लंबा है, लेकिन उन्हें बड़ी सफलताएं बेटी के जन्म के बाद ही मिली हैं. उन्होंने 2017 में बेटी के जन्म के बाद 2019 और 2024 में विश्व रैपिड शतरंज के ख़िताब जीते. वहीं अब वह फ़िडे विश्व कप ख़िताब जीतने के मुहाने पर खड़ी हैं.
हम्पी कहती हैं कि जब भी वह ख़राब दौर की वजह से संन्यास लेने के बारे में सोचती हैं, कुछ न कुछ ऐसा करिश्मा हो जाता है कि आगे खेलते रहने की प्रेरणा मिल जाती है.
वह बीते साल 37 वर्ष की आयु हो जाने और सफलताएं मिलना बंद हो जाने पर संन्यास लेने के बारे में सोचने लगी थीं लेकिन विश्व रैपिड शतरंज ख़िताब जीतने के बाद उन्होंने खेल जारी रखने का फ़ैसला किया.
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कोनेरू हम्पी और दिव्या देशमुख दोनों ने ही सेमीफ़ाइनल में चीनी प्रतिद्वंद्वियों को हराया. पर दिव्या के मुक़ाबले हम्पी को जीत पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा.
हम्पी मौजूदा विश्व रैपिड चैंपियन हैं. लेकिन शुरुआती रैपिड बाज़ियों में वह उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकीं और चीन की तिंगजी लेई के ख़िलाफ़ पिछड़ गईं.
हम्पी ने अंतिम रैपिड बाज़ी जीतकर किसी तरह मुक़ाबले को टाईब्रेकर कहलाने वाली ब्लिट्ज़ बाज़ियों में खींच दिया.
हम्पी इन मुक़ाबलों में पूरे भरोसे के साथ खेलती दिखीं और दोनों बाज़ियां जीतकर फ़ाइनल में स्थान बना लिया.
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कोनेरू हम्पी ने फ़ाइनल में जगह बनाने के बाद कहा, "भारतीय शतरंज के लिए यह सबसे ज़्यादा खुशी का क्षण है. फ़ाइनल बहुत ही कठिन होने वाला है, क्योंकि दिव्या ने इस विश्व कप में बहुत ही उम्दा प्रदर्शन किया है."
उन्होंने कहा, "तिंगजी के ख़िलाफ़ रैपिड शतरंज का शुरुआती मुक़ाबला बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा. इसकी वजह से मैं अच्छा नहीं खेल सकी. पर ब्लिट्ज़ बाज़ियों में मैं पूरे भरोसे के साथ खेली और इस दौरान मेरे पास हर सवाल का जवाब था."
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दिव्या का शतरंज सफ़र रिकॉर्डों से भरा रहा है. वह 2013 में मात्र सात साल की उम्र में महिला फ़िडे मास्टर बनीं और सबसे कम उम्र में यह उपलब्धि पाने वाली खिलाड़ी बनीं. वह जॉर्जिया के बतुमी शहर में चल रहे इस विश्व कप के फ़ाइनल में स्थान बनाने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं.
वह कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के 34 सालों के इतिहास में इसके लिए क्वालिफ़ाई करने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बन गई हैं.
उन्होंने ग्रैंडमास्टर नॉर्म भी पूरी कर ली है. वह अब ग्रैंडमास्टर बनने से सिर्फ़ एक जीत दूर हैं. ऐसा करने पर वह ग्रैंडमास्टर बनने वाली भारत की चौथी महिला खिलाड़ी बन जाएंगी.
इससे पहले सिर्फ़ कोनेरू हम्पी, डी हरिका और वैशाली रमेशबाबू ही ग्रैंडमास्टर बनने वाली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं.
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दिव्या कहती हैं कि वह दुर्घटनावश शतरंज खिलाड़ी बनीं.
उनके मुताबिक़, "मेरी बड़ी बहन बैडमिंटन खेलती थीं और माता-पिता उसके साथ जाते थे. मैं उस समय चार-पाँच साल की थी और मैं भी साथ जाने लगी. मैंने भी बैडमिंटन खेलने का प्रयास किया, लेकिन मैं नेट तक भी नहीं पहुँच पाती थी. इस कारण उसी हॉल में शतरंज होता था, उसे देखने लगी."
शतरंज देखने से उसी में मन रम गया और वह शतरंज खिलाड़ी बन गईं. दिव्या की बहन ने तो कुछ समय बाद बैडमिंटन खेलना छोड़ दिया, पर दिव्या अपनी लगन से ऐसे मुक़ाम पर पहुँचने वाली हैं, जहां इससे पहले कोई भारतीय महिला खिलाड़ी नहीं पहुंची है.
दिव्या की शतरंज में दिलचस्पी को देखकर उनके पिता डॉक्टर जितेंद्र और माता नम्रता ने नागपुर में अपने घर के नज़दीक स्थित शतरंज अकादमी में उनका नाम रजिस्टर्ड करा दिया.
दिव्या ने दो साल की कोचिंग में ही रंग दिखाना शुरू कर दिया और 2012 में पुडुचेरी में राष्ट्रीय शतरंज में अंडर-7 का ख़िताब जीत लिया. इसके बाद दिव्या ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय शतरंज में चमकना शुरू कर दिया.
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दिव्या 2020 तक भारतीय ओलंपियाड टीम की नियमित सदस्य बन गईं और उनकी गिनती देश की दिग्गज खिलाड़ियों में होने लगी. इसका फ़ायदा यह हुआ कि उन्हें नियमित तौर पर विश्वनाथन आनंद से टिप्स मिलने लगीं.
इससे खेल में आए सुधार के कारण उन्होंने 2023 में पहले महिला ग्रैंडमास्टर का ख़िताब जीता और फिर अंतरराष्ट्रीय मास्टर बनीं. अब वह ग्रैंडमास्टर बनने के मुहाने पर खड़ी हैं.
विश्वनाथन आनंद ने दिव्या के बारे में कहा, "यह बहुत बड़ी उपलब्धि है. सच यह है कि उसने झू जिनर, तान झोंगजी और हरिका जैसी दिग्गज खिलाड़ियों को हराया है. वह ज़बरदस्त क्षमता वाली खिलाड़ी है. इसलिए यह अप्रत्याशित नहीं है. लोगों को उससे यह उम्मीद थी और उसने यह करके दिखाया है."
भारतीय शतरंज का स्वर्णकालभारतीय शतरंज पिछले कुछ सालों में शिखर पर नज़र आ रहा है. यह सही है कि विश्वनाथन आनंद ने कई बार विश्व ख़िताब जीतकर शतरंज जगत में भारतीय ख्याति को बढ़ाया है. पर ऐसा पहली बार पिछले साल उस समय हुआ जब चार भारतीय पुरुष खिलाड़ी- डी गुकेश, अर्जुन एरिगेसी, आर प्रज्ञानानंद और अरविंद- विश्व शतरंज की टॉप दस रैंकिंग में शामिल हो गए.
भारत ने पहली बार शतरंज ओलंपियाड में दोहरा स्वर्ण पदक जीता. वहीं डी गुकेश इसी दौरान आनंद के बाद विश्व चैंपियन बनने वाले भारत के दूसरे खिलाड़ी बने.
अब इतिहास रचने की बारी दिव्या देशमुख और कोनेरू हम्पी की है. कोई भी जीते, भारत का सिर ऊँचा होना तय है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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