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इसरो और नासा का 'निसार' मिशन क्या है, ये क्यों है खास?

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NASA निसार मिशन को साल 2024 में ही लॉन्च किया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. निसार की ये कॉन्सेप्ट तस्वीर नासा ने जारी की थी

अमेरिका की स्पेस एजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और भारत की स्पेस एजेंसी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कई सफल अंतरिक्ष मिशन पूरे किए हैं.

अब नासा और इसरो मिलकर 'निसार' नाम के मिशन पर काम कर रहे हैं जिसके बारे में कहा जा रहा है कि ये पृथ्वी की बदलती स्थिति के बारे में विस्तृत अध्ययन करेगा.

दोनों स्पेस एजेंसी का यह संयुक्त अभियान क्या है? इससे क्या हासिल होगा? इसमें नासा की और इसरो की क्या भूमिका होगी? आइए जानते हैं.

ये उपग्रह पूरी पृथ्वी का मानचित्र तैयार करेगा और इसमें हो रहे भौगोलिक बदलावों को लगातार (हर 12 दिन में दो बार) रिकॉर्ड करेगा. इनमें धरती की सतह पर जमी बर्फ से लेकर उसके ज़मीनी हिस्से, इकोसिस्टम में बदलाव, समंदर के जलस्तर में बदलाव और भूजल स्तर से जुड़े आंकड़े जमा करना प्रमुख है.

नासा और इसरो के बीच समझौते की मुख्य बातें image NASA 30 सितंबर 2014 को नासा के चार्ल्स बोल्डन और इसरो के तत्कालीन चेयरमैन के. राधाकृष्णन ने 'निसार' मिशन को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे

निसार का पूरा नाम 'नासा इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार' उपग्रह है. यह एक लो अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट होगा और इसे पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाना है.

का कहना है कि उसके और इसरो के बीच पृथ्वी के अध्ययन से जुड़े मिशन को लेकर निसार पहला स्पेस हार्डवेयर सहयोग है.

निसार यानी 'नासा इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार' एक ख़ास तकनीक, एसएआर (सिंथेटिक एपर्चर रडार) का इस्तेमाल करेगा, जिसकी मदद से रडार सिस्टम की मदद से बेहद अच्छी रिज़ोल्यूशन की तस्वीरें बनाई जा सकेंगी. इसके लिए रडार को एक सीधी लकीर पर आगे बढ़ाना होगा और ये काम इस प्रोजेक्ट के तहत निसार उपग्रह करेगा.

'निसार' मिशन को लेकर इसरो और नासा ने 30 सितंबर 2014 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस मिशन को 2024 की शुरुआत में ही लॉन्च किया जाना था, लेकिन उपग्रह को बनाने में आ रही मुश्किलों के कारण ऐसा नहीं हो सका.

दिसंबर 2024 में सरकार ने जो उसके अनुसार नासा के विशेषज्ञों ने निर्धारित किया कि 12 मीटर के रडार एंटीना रिफ्लेक्टर में कुछ सुधार किए जाने की ज़रूरत है और इसके लिए उसे अमेरिका ले जाना होगा.

इस बयान के अनुसार अक्तूबर में ये एंटीना नासा भेजा गया था, जिसके बाद इसे लेकर परीक्षण शुरू किए गए.

इस उपग्रह के कुछ हिस्सों को अमेरिका में तैयार किया गया है और फिर भारत भेजा गया है.

समझौते के मुताबिक़ नासा इस काम में एल-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार, जीपीएस रिसीवर, वैज्ञानिक सूचना के लिए कम्युनिकेशन सिस्टम, उच्च क्षमता वाला सॉलिड-स्टेट रिकॉर्डर (जो इस उपग्रह की हार्ड ड्राइव है) और एक पेलोड डेटा सब-सिस्टम मुहैया करा रहा है.

की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार इस उपग्रह में दो रडार उपकरण होंगे, एल बैंड एसएआर और एस बैंड एसएआर. ये दोनों उपकरण इसरो बना रहा है.

इसरो इसके लिए उपग्रह प्रक्षेपण प्रणाली और प्रक्षेपण के लिए अन्य चीजों का ध्यान भी रख रहा है.

के अनुसार इस उपग्रह को जीएसएलवी मार्क 2 रॉकेट के ज़रिए पृथ्वी की कक्षा में भेजा जाएगा.

इस उपग्रह के ज़रिए पृथ्वी पर बुनियादी ढांचे की निगरानी, आपदा की स्थिति में प्रतिक्रिया, बायोमास का आकलन और कृषि प्रबंधन जैसे काम में मदद मिलेगी.

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मिशन का मक़सद क्या है? image NASA निसार 12 दिन में पूरे विश्व का मानचित्र तैयार कर लेगा

नासा और इसरो के मिशन का मक़सद पृथ्वी पर हो रहे तीन महत्वपूर्ण परिवर्तनों का अध्ययन करना है.

ये मिशन इकोसिस्टम, कार्बन चक्र, पृथ्वी की सतह में बदलाव, समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी और अन्य प्रभावों को समझने में मदद करेगा.

निसार पानी के भीतर की गहराई मापने (बाथीमेट्रिक सर्वे) का भी काम करेगा. ऐसा इसलिए ताकि पिघलते ग्लेशियरों, समुद्र के स्तर में वृद्धि और कार्बन भंडारण में परिवर्तन के साथ साथ पृथ्वी की सतह पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने में मदद हो पाए.

इस मिशन के जरिए भूकंप, सूनामी और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी अध्ययन किया जाएगा, ताकि ऐसी स्थिति में प्रतिक्रिया को लेकर मदद मिल सके.

निसार न केवल अमेरिका और भारत को जानकारी देगा बल्कि दुनिया भर के शोधकर्ता इसके ज़रिए पृथ्वी की सतह पर होने वाले छोटे से छोटे परिवर्तनों के बारे में भी गहन जानकारी पा सकेंगे.

निसार मिशन को भारत के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र जीएसएलवी से लॉन्च किया जाएगा.

लॉन्च के बाद पहले 90 दिनों में उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया जाएगा, जिसके बाद उसकी प्रणालियों को चालू किया जाएगा.

यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी प्रणालियां ठीक से काम कर रही हैं, इसके लिए उनका परीक्षण किया जाएगा. इसके बाद अगले तीन साल तक इस मिशन के माध्यम से विभिन्न अध्ययन किए जाएंगे.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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