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सोना सवा लाख के पार, गोल्ड की डिमांड बढ़ने की ये है असल कहानी

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Getty Images भारत में त्योहारी और शादी के सीज़न में गोल्ड की काफ़ी डिमांड रहती है

सोने की क़ीमतों में ऐसी तेज़ी शायद पहले कभी नहीं थी.

कुछ महीने पहले जिसने गोल्ड ज्वैलरी ख़रीदी या गोल्ड में इन्वेस्ट किया, वो अब अफ़सोस जता रहा है कि काश! कुछ ज़्यादा ख़रीद लिया होता.

जिसने ऐसा नहीं किया वो पूछ रहा है कि क्या ऐसे ही बढ़ते रहेंगे गोल्ड के दाम?

वो ये भी सोच रहे हैं कि अभी ज्वैलरी ख़रीदना या गोल्ड ईटीएफ़ में निवेश कितनी समझदारी है.

सोने की क़ीमतों का जो हाल है, उससे तो लग रहा है कि डिमांड थमने का नाम नहीं ले रही. क्या वाकई फिजिकल गोल्ड की डिमांड बढ़ी है या कुछ और?

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का लेटेस्ट डेटा कहता है कि दुनियाभर के सेंट्रल बैंक अपना गोल्ड रिज़र्व बढ़ा रहे हैं और गोल्ड ईटीएफ़ यानी एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में निवेश पर दुनियाभर में लोगों का रुझान बढ़ा है.

सितंबर महीने में गोल्ड ईटीएफ़ में रिकॉर्ड निवेश हुआ. जुलाई-सितंबर तिमाही की बात करें तो गोल्ड ईटीएफ़ में रिकॉर्ड निवेश हुआ है.

सोने की चमक की कहानी को आगे बढ़ाएँ, इससे पहले ये भी जान लीजिए की गोल्ड ईटीएफ़ होता क्या है?

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गोल्ड ईटीएफ़ क्या होता है?

गोल्ड ईटीएफ़ को आप डिजिटल सोना कह सकते हैं.

यह एक म्यूचुअल फ़ंड की तरह होता है, जो 99.5 फ़ीसदी शुद्ध सोने की क़ीमत को ट्रैक करता है. हर यूनिट की क़ीमत लगभग एक ग्राम सोने के बराबर होती है.

ये फ़ंड शेयर बाज़ार में ख़रीदे-बेचे जा सकते हैं.

गोल्ड ईटीएफ़ में निवेश करने के लिए डीमैट अकाउंट होना ज़रूरी है, क्योंकि ख़रीद-बिक्री स्टॉक मार्केट के ज़रिए होती है.

शेयर बाज़ार के कारोबारी घंटों में कभी भी यूनिट ख़रीद या बेच सकते हैं.

यह निवेश उन लोगों के लिए सही है जो गोल्ड की क़ीमतों को नज़दीकी से ट्रैक करना चाहते हैं और ख़ुद निवेश पर नियंत्रण रखना पसंद करते हैं.

अगर आप डीमैट अकाउंट के बिना और आसान तरीक़े से गोल्ड में निवेश करना चाहते हैं, तो गोल्ड म्यूचुअल फ़ंड बेहतर विकल्प हो सकता है.

गोल्ड ईटीएफ़ में रिकॉर्ड निवेश image Getty Images पिछले एक साल में शेयर बाज़ारों के मुक़ाबले गोल्ड ने बहुत अच्छा रिटर्न दिया है

भारत ही नहीं दुनियाभर में आम निवेशक ईटीएफ़ के ज़रिए सोने में निवेश कर रहे हैं.

जुलाई-सितंबर तिमाही की बात करें, तो गोल्ड ईटीएफ़ में तकरीबन 26 अरब डॉलर का निवेश हुआ है.

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार इस तिमाही के दौरान अमेरिका के लोगों ने गोल्ड ईटीएफ़ में लगाए हैं 16 बिलियन डॉलर, यूरोप ने लगाए हैं क़रीब 8 बिलियन डॉलर.

भारत में ही अकेले 902 मिलियन डॉलर यानी तकरीबन 8000 करोड़ रुपए के ईटीएफ़ ख़रीदे गए.

एशिया की बात करें, तो चीन 602 मिलियन डॉलर के साथ दूसरे नंबर पर और जापान 415 मिलियन डॉलर की ईटीएफ़ ख़रीद के साथ तीसरे नंबर पर रहा.

जिस तरह से लोग गोल्ड ईटीएफ़ में निवेश कर रहे हैं, ज़ाहिर है उनका मानना है कि गोल्ड है तो चमकता रहेगा और उन्हें धोखा नहीं देगा.

कुल मिलाकर दुनियाभर में गोल्ड ईटीएफ़ का कुल साइज़ हो गया है 472 बिलियन डॉलर का और ये पिछली तिमाही के मुक़ाबले 23 फ़ीसदी अधिक है.

कहने की ज़रूरत नहीं कि गोल्ड ईटीएफ़ का ये साइज़ दुनिया के कई देशों के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी से अधिक है.

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गोल्ड है सेफ़ बेट? image Reuters हिस्टोरिकल डेटा देखें तो जब-जब दुनिया में आर्थिक संकट छाता है तो गोल्ड की चमक बढ़ने लगती है.

एक्सपर्ट का मानना है कि सोने की इस चमक पर दांव लगाने के पीछे कई और वजहें भी हैं, मसलन ट्रंप की टैरिफ़ पॉलिसी से दुनियाभर के निवेशकों का गणित गड़बड़ा गया है, रूस और यूक्रेन में जंग जारी है, मध्य पूर्व में भी टेंशन है ही.

डॉलर कमज़ोर हो रहा है और पिछले दिनों अमेरिका में हुए शटडाउन ने इसकी पोजिशन और ख़राब की है.

अमेरिकी सेंट्रल बैंक ने इंटरेस्ट रेट 25 बेसिस प्वाइंट घटाए हैं और जानकार उम्मीद कर रहे हैं कि साल के आख़िर तक एक-दो रेट कट और हो सकते हैं.

मतलब शेयर बाज़ारों में उथल-पुथल का दौर बना रह सकता है. ऐसे में लोग गोल्ड को सेफ़ बेट मान रहे हैं और इसकी चमक बढ़ा रहे हैं.

सेंट्रल बैंक बढ़ा रहे हैं भंडार

एक और वजह है, दुनियाभर के सेंट्रल बैंक्स की गोल्ड की ख़रीदारी

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट बताती है कि सेंट्रल बैंक्स ने अगस्त महीने में 15 टन सोना ख़रीदा.

हैरानी की बात ये है कि कज़ाख़स्तान , बुल्गारिया, अल सल्वाडोर जैसे देश इस बाइंग लिस्ट में टॉप पर हैं. गोल्ड रिज़र्व में इजाफ़ा करने वाले देशों में भारत, चीन और क़तर भी शामिल हैं.

हालाँकि गोल्ड रिज़र्व की बात करें तो वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के सालाना आँकड़े बताते हैं कि दिसंबर 2024 तक अमेरिका के पास 8133 टन का गोल्ड रिज़र्व था और ये टॉप पर था, जर्मनी 3,351 टन के साथ दूसरे, इटली तीसरे, फ़्रांस चौथे और चीन 2280 टन के साथ पाँचवें स्थान पर था.

भारत 876 टन गोल्ड रिज़र्व के साथ इस लिस्ट में सातवें नंबर पर था.

गोल्ड ने निवेशकों को धोखा भी दिया है? image Getty Images जहाँ दुनियाभर में अलग-अलग देशों के लोग औसतन अपनी कमाई का 2 से 3 फ़ीसदी गोल्ड के रूप में रखते हैं, वहीं भारत में ये हिस्सेदारी 16 फ़ीसदी तक है.

गोल्ड को लेकर अभी निवेशकों में जो दीवानगी है, उसे देखते हुए ये सवाल पूछना जायज है कि क्या कभी सोने की ख़रीदानी घाटे का सौदा रही है?

पिछले 20 सालों में गोल्ड की क़ीमतों की बात करें, तो सिर्फ़ चार कैलेंडर वर्ष ही ऐसे रहे हैं, जब सोने की क़ीमतें फिसलीं और निवेशकों को कुछ नुक़सान हुआ.

हालाँकि ये नुक़सान भी सिंगल डिजिट परसेंट तक ही सीमित रहा.

मसलन साल 2013 में सोने की क़ीमतें 4.50 फीसदी गिरीं, जबकि 2014 में 7.9 फ़ीसदी, 2015 में 6.65 फ़ीसदी और साल 2021 में गोल्ड की क़ीमतों में 4.21 फ़ीसदी की गिरावट रही.

क्या निकट भविष्य में गिरेंगी सोने की क़ीमतें?

आख़िर में सवाल वही, क्या सोना और चमकेगा या अब क़ीमतें गिरने का दौर शुरू होगा?

गोल्डमैन सैक्स ने अपनी एक रिसर्च में अनुमान लगाया है कि साल 2026 के मध्य तक गोल्ड की क़ीमतों में और 6 प्रतिशत का इज़ाफ़ा देखने को मिल सकता है.

हालाँकि इसका सटीक जवाब तो शायद ही किसी एक्सपर्ट के पास हो.

लेकिन इतना तय है कि जिस तरह से लोगों का रुझान गोल्ड ईटीएफ़ की तरफ बढ़ा है, वो दिखाता है कि इस शाइनिंग मेटल पर उनका यक़ीन पहले से कहीं अधिक बढ़ा है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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