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नेपाल के इस आंदोलन से क्या नया नेतृत्व पैदा होगा, ओली का क्या होगा और बालेन शाह की चर्चा क्यों

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AFP via Getty Images सोमवार को सरकार में भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को लेकर शुरू हुआ आंदोलन हिंसक हो गया.

नेपाल के नौजवान ग़ुस्से में हैं. इनका ग़ुस्सा न केवल सड़क से संसद तक देखा जा सकता है बल्कि ऑनलाइन भी इनकी नाराज़गी साफ़ दिख रही है.

सोशल मीडिया पर हैशटैग नेपोकिड ट्रेंड में है. इस हैशगैट के साथ नेपाल के नौजवान अपने नेताओं के बच्चों की रईसी को वीडियो और फोटो के ज़रिए दिखा रहे हैं.

नेताओं के बच्चों की लग्ज़री कारें, ब्रैंडेड कपड़े, महंगी घड़ियां और विदेशी दौरे के वीडियो और फोटो वायरल हो रहे हैं.

नेपाल के नौजवान संदेश दे रहे हैं कि आम आदमी ज़िंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहा है और नेताओं के बच्चे हर सुख-सुविधा भोग रहे हैं.

सोमवार को नेपाल के जेन ज़ी हज़ारों की संख्या में सड़कों पर थे. ये नौजवान संसद परिसर तक में पहुँच गए थे. लोग नारे लगा रहे थे- हमारे टैक्स और तुम्हारी रईसी.

नेपाल के नौजवान सवाल पूछ रहे हैं कि नेताओं के बच्चों के पास इतने पैसे कहाँ से आ रहे हैं?

नेपाल में आम लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है, सरकारी पैसों का दुरुपयोग हो रहा है और जो सत्ता में हैं, वे रिश्वतखोरी कर रहे हैं.

image Getty Images सोमवार को नेपाल में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया था और कम से कम 19 नौजवान मारे गए हैं. ओली ने ऐसा क्यों होने दिया?

लोग कह रहे हैं कि सरकार को भ्रष्टाचार बंद करना चाहिए था लेकिन उसने विरोध की आवाज़ को दबाने के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया.

प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) नेपाली कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में है. सोमवार शाम कैबिनेट की बैठक हुई और नेपाल के गृह मंत्री रमेश लेखक ने इस्तीफ़ा दे दिया.

सवाल उठ रहा है कि आख़िर प्रधानमंत्री ओली ने फ़ेसबुक, यूट्यूब, एक्स, व्हट्सऐप, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट बंद करने का फ़ैसला क्यों किया? क्या सरकार को अंदाज़ा नहीं था कि लोगों का ग़ुस्सा फूट पड़ेगा? और तो और सरकार ने विरोध प्रदर्शन को इस तरह से हैंडल किया कि 19 लोगों की जान चली गई.

विजयकांत कर्ण डेनमार्क में नेपाल के राजदूत रहे हैं. वह काठमांडू में 'सेंटर फ़ॉर सोशल इन्क्लूजन एंड फ़ेडरलिज़म' (सीईआईएसएफ़) नाम से एक थिंकटैंक चलाते हैं.

इन सवालों के जवाब में उन्होंने बीबीसी हिन्दी से कहा, ''प्रधानमंत्री ओली अलोकतांत्रिक नेता हो गए हैं. इन्होंने कोर्ट की आड़ में विरोध की आवाज़ को दबाने के लिए सोशल मीडिया को ही बैन कर दिया. कोर्ट ने कहा था कि सोशल मीडिया का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए और इन पर निगरानी के लिए क़ानून बनना चाहिए. कोर्ट ने बैन करने के लिए बिल्कुल नहीं कहा था.''

विजयकांत कर्ण कहते हैं, ''ये कोई पहली बार नहीं है, जब ओली ने मीडिया को कंट्रोल करने की कोशिश की है. पहले भी मुख्यधारा के मीडिया के ख़िलाफ़ ये बिल ला चुके हैं. मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री ओली के लिए सत्ता में बने रहना अब इतना आसान नहीं होगा.''

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image Getty Images यह आंदोलन फिलहाल बिना किसी नेतृत्व के है और इसमें शामिल लोग 15 से 25 साल के हैं सोशल मीडिया पर बैन ने चिंगारी का काम किया

नेपाल के मीडिया में कहा जा रहा है कि यह आंदोलन सोशल मीडिया बैन से बहुत आगे निकल चुका है. असल मुद्दा भ्रष्टाचार का है.

नेपाल के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार माई रिपब्लिकाने संपादकीय टिप्पणी में लिखा है, ''जेन ज़ी का विरोध प्रदर्शन केवल सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को लेकर नहीं है. भ्रष्टाचार और कुशासन को लेकर लोगों का ग़ुस्सा पहले से ही था और सोशल मीडिया बैन के बाद सड़क पर साफ़ दिख रहा है. सोशल मीडिया बैन ने चिंगारी का काम किया है.''

रिपब्लिका ने लिखा है, ''नौजवानों ने एक ही दिन में सरकार की बुनियाद को हिला दिया है. नेपाल के लोग भ्रष्ट नेताओं के परिवारों की अय्याशी वाली ज़िंदगी से ग़ुस्से में हैं. एक ही दिन में इतनी संख्या में नौजवानों की जान गई है और इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती. भले गृह मंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया है और जांच कमिटी बना दी गई है लेकिन इससे जवाबदेही का अंत नहीं हो जाता है. पीएम ओली को ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए और माफ़ी मांगनी चाहिए.''

नेपाल योजना आयोग के पूर्व सदस्य गणेश गुरुंग काठमांडू में नेपाल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिवेलपमेंट स्टडीज़ नाम से एक संस्थान चलाते हैं. गुरुंग का कहना है कि नेपाल के नौजवान भयावह तरीक़े से बेरोज़गारी की चपेट में हैं.

गणेश गुरुंग कहते हैं, ''नेपाल के डिपार्टमेंट ऑफ़ फ़ॉरेन एम्प्लॉयमेंट के अनुसार, यहाँ से हर दिन औसत 2200 लोग खाड़ी के देशों के अलावा मलेशिया और दक्षिण कोरिया जा रहे हैं. इसमें मित्र देश भारत में जाने वालों की संख्या शामिल नहीं है. इनमें अवैध रूप से विदेश जाने वाले लोग भी शामिल नहीं हैं. इसी से आप समझ सकते हैं कि नेपाल के युवाओं में कितनी बेचैनी है.''

गणेश गुरुंग कहते हैं, ''नेपाल की अर्थव्यवस्था के लिए इनकी कमाई लाइफ़लाइन है. इन नेपालियों की कमाई देश की जीडीपी का 28 फ़ीसदी है. नेपाल कृषि का जीडीपी में सिर्फ़ 25 प्रतिशत योगदान है जबकि पर्यटन का महज़ छह से सात फ़ीसदी. नेपाल के कुल 40 लाख लोग विदेशों में काम कर रहे हैं और इनमें भारत में काम करने वाले लोग शामिल नहीं हैं.''

image Getty Images काठमांडू में संसद के बाहर प्रदर्शनकारियों का जुटा हुजूम कम्युनिस्ट पार्टियों से निराशा क्यों?

नेपाल के जाने-माने चिंतक और बुद्धिजीवी सीके लाल से पूछा कि ओली करना क्या चाहते हैं?

सीके लाल ने बीबीसी हिन्दी से कहा, ''ओली की प्रवृत्ति शुरू से ही रही है कि विरोध को सहना नहीं है. इसमें कोई नई बात नहीं है. आप याद कीजिए कि 2015 में मधेस आंदोलन में ऐसी ही क्रूरता भरी हत्याएं हुई थीं. लेकिन मधेस की बातें काठमांडू के मीडिया में नहीं आती हैं. ओली में शासक होने का दंभ आ गया है और उन्हें लगता है कि कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है.''

2008 में नेपाल में राजशाही ख़त्म होने के बाद से कम्युनिस्ट पार्टियां सत्ता में हैं. क्या नेपाल में राजशाही ख़त्म होने की खुमारी अब उतर गई है? क्या नेपाल के लोग अब नया विकल्प चाहते हैं?

सीके लाल कहते हैं, ''देखिए सार्वजनिक स्मृतियां ज़्यादा दिनों तक रहती नहीं हैं. दूसरी बात है कि अभी तो नई पीढ़ी है, उसने राजशाही की क्रूरता देखी नहीं है. इन्हें तो उसका अनुभव ही नहीं है. तुलना तो वे करेंगे, जिन्होंने वो क्रूरता देखी है. सोमवार के विरोध-प्रदर्शन की बात करें तो 25 साल की उम्र तक के नौजवान थे. इन्होंने तो प्रचंड, ओली और देउबा को सत्ता में मिलकर खाते देखा है. बाक़ी तो इनकी स्मृति में कुछ नहीं है.''

सीके लाल कहते हैं, ''दूसरी तरफ़ जो सत्ता में हैं, उन्हें लगता है कि बहुत त्याग करके आए हैं. इसलिए कुछ भी करेंगे तो जनता उन्हें माफ़ कर देगी. मुझे लगता है कि दिक़्क़तें दोनों तरफ़ हैं.''

image Getty Images काठमांडू के मेयर बालेन शाह से लोग नेतृत्व करने की मांग कर रहे हैं नेपाल में क्या नया नेतृत्व पैदा होगा?

नेपाल का यह आंदोलन क्या नया नेतृत्व पैदा करेगा और पुरानी पार्टियों को कमज़ोर कर देगा?

सीके लाल कहते हैं, ''यूक्रेन में ज़ेलेंस्की का उभार देखें तो पॉपुलिस्ट नेता ऐसे ही आंदोलनों से आता है. लेकिन उसके साथ दिक़्क़त ये हो जाती है कि कोई संगठन नहीं होता है और न ही विचारधारा होती है. कई बार भीड़ के आगे आने से जो नेतृत्व पैदा होता है, उससे बहुत परिवर्तन की उम्मीद करना ख़तरे से ख़ाली नहीं होता है.''

काठमांडू के मेयर बालेन शाह से लोग सोशल मीडिया पर अपील कर रहे हैं कि इस्तीफ़ा देकर नेतृत्व करें. नेपाल में जब भी वैकल्पिक राजनीति की बात होती है तो बालेन शाह का नाम अक्सर आता है. आख़िर बालेन शाह पर लोग इतना भरोसा क्यों कर रहे हैं?

सीके लाल कहते हैं, ''बालेन शाह को लोग आकर्षक व्यक्तित्व के रूप में देखते हैं. वह गायक रहे हैं. काम में तो उनका कोई ख़ास प्रभाव दिख नहीं रहा है. सिर्फ़ यह है कि वह सत्ता के ख़िलाफ़ बोलते हैं. जैसे बालेन शाह ने कहा था कि सिंह दरबार में आग लगा देंगे. कोई ज़िम्मेदार नेता ऐसे नहीं बोल सकता है लेकिन उन्हें ऐसे बोलने में कोई दिक़्क़त नहीं है. ऐसी भाषा और इस तरह के व्यक्तित्व से परेशान भीड़ बहुत आकर्षित होती है.''

विजयकांत कर्ण कहते हैं कि बालेन शाह की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है क्योंकि वह पहले रैपर थे.

सीके लाल कहते हैं कि बिना नेतृत्व वाला आंदोलन बाढ़ के पानी की तरह होता है और अपनी राह ख़ुद बना लेता है. क्या नेपाल में जेन ज़ी आंदोलन अपनी राह बना पाएगा?

सीके लाल कहते हैं, ''अभी तक जेन ज़ी के गु़स्से को कोई दिशा मिलने की संभावना नहीं दिख रही है. ऐसे आंदोलन में एक डर भी होता है. कुछ धूर्त लोग इसका इस्तेमाल कर लेते हैं और नेता बन जाते हैं.''

नेपाल में ओली की सरकार नेपाली कांग्रेस के समर्थन से चल रही है. लोग नेपाली कांग्रेस पर भी सवाल उठा रहे हैं कि वह पूरे मामले में ओली का साथ क्यों दे रही है?

नेपाली कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ''नेपाली कांग्रेस पॉलिटिकल इनिशिएटिव लेने वाली पार्टी नहीं है. यह पार्टी ओली की पिछलग्गू बन गई है. इन्हें किसी तरह से सत्ता में भागीदार बनकर रहना है.''

image Getty Images नेपाल के तराई इलाक़े के लोग भी अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरते रहे हैं क्या इस आंदोलन में मधेस भी शामिल है?

नेपाली कांग्रेस के भीतर विरोध की आवाज़ उठ रही है लेकिन अभी तक ओली से समर्थन वापस लेने की बात तक स्थिति नहीं पहुँच पाई है.

काठमांडू में जेन ज़ी के शुरू हुए आंदोलन की चपेट में क्या पूरा नेपाल है? क्या इसमें मधेस भी शामिल है?

सीके लाल कहते हैं, ''मधेस में इसका असर तो अभी नहीं है. मधेस के लोगों को याद है कि जो 2015 में उनके साथ हुआ था, उस पर काठमांडू में किसी ने कुछ कहा नहीं था. मधेस में अगर फैल गया तो इसे संभाल नहीं पाएंगे. मधेस के उन इलाक़ों में कुछ असर है, जहाँ पहाड़ियों का दबदबा है.''

ओली ने इस आंदोलन को लेकर कहा है कि इसमें घुसपैठिए शामिल हैं. घुसपैठिए का मतलब क्या है? काठमांडू के वरिष्ठ पत्रकार नरेश ज्ञवाली कहते हैं कि घुसपैठिए से मतलब राजावादी और हिन्दू राष्ट्र की मांग करने वालों से है.

ज्ञवाली कहते हैं, ''ओली ऐसा कहकर अपनी ग़लती ढँकने की कोशिश रहे हैं. कोई भी बड़ा आंदोलन होता है तो उसमें कई तरह के लोग शामिल हो सकते हैं. इसका मतलब ये नहीं है कि लोगों की मांग ग़लत है और आप 20 बच्चों की जान ले लें.''

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई से पूछा कि वह ओली के घुसपैठिए वाले बयान को कैसे देखते हैं?

भट्टराई ने बीबीसी हिन्दी से कहा, ''इसका कोई मतलब नहीं है. सरकार ने लोगों पर क्रूरता की है. बड़े आंदोलन में संभव है कि कुछ ग़लत लोग आ जाएं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप लोगों पर गोलियां चलवा देंगे. मुझे लगता है कि इस आंदोलन से हमारी नौजवान पीढ़ी नया नेतृत्व पैदा करेगी और जो पार्टियां सत्ता में जमी हैं, उन्हें बाहर करेगी.''

इस आंदोलन से ओली के नेतृत्व पर क्या असर पड़ेगा? सीके लाल कहते हैं, ''ओली को लग रहा है कि वह पद पर रहें या ना रहें, इससे उनकी छवि को फ़ायदा ही पहुँचेगा. ओली को लगता है कि वह राष्ट्रवादी नेता के रूप में जाने जाएंगे. मुझे लगता है कि पहाड़ी ब्राह्मणों और छेत्रियो में उनकी छवि पर बहुत असर नहीं पड़ने जा रहा है.''

''राष्ट्रवाद के साथ दिक़्क़त है कि वह एक साज़िश ढूंढ लेता है. साज़िश के बिना राष्ट्रवाद चलता नहीं है. मुझे लगता है कि इंटर एलीट टकराव होगा तभी ओली की राजनीति में दिक़्क़त होगी. लेकिन अभी ऐसा होता दिख नहीं रहा है. अगर इस आंदोलन में मधेसी उतर जाएंगे तो ओली के लिए यह कहना आसान हो जाएगा कि ये सब प्रायोजित है. मधेसी अभी शामिल नहीं हैं इसलिए ओली के लिए ये सब कहना आसान नहीं है.''

सीके लाल कहते हैं, ''मधेसियों को याद है कि सात वर्ष के चंदन पटेल और 14 साल के नीतू यादव के सिर में गोली मारी गई थी. 2015 में भी इतने ही बच्चे मारे गए थे लेकिन तब काठमांडू ख़ामोश था.''

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