22 अप्रैल 2025 को पहलगाम की बैसरन घाटी में 26 लोगों की हत्या कर दी गई. हमलावरों ने चुन-चुनकर लोगों को निशाना बनाया.
ये हमला ऐसे वक़्त पर हुआ है जब जम्मू-कश्मीर में पर्यटन के धीमे-धीमे लौटने की ख़बरें आने लगी थीं.
हमले का नतीजा ये हुआ कि भारत ने इसके लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार मानते हुए सिंधु जल समझौता निलंबित कर दिया और अटारी-वाघा सीमा बंद कर दी.
भारत में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटों के भीतर देश छोड़ने के लिए कह दिया गया और दोनों देशों में राजनयिकों की मौजूदगी पर भी असर पड़ा.

पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की और कहा कि ऐसा कोई भी क़दम 'एक्ट ऑफ़ वॉर' माना जाएगा यानी युद्ध छेड़ने जैसा होगा.
पाकिस्तान ने कहा कि भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौते निलंबित किए जा सकते हैं. इसके साथ ही भारत से आने वाली सभी उड़ानों के लिए वायु मार्ग बंद कर दिया.
तो इस हमले और उसके बाद हुई कार्रवाई ने कई सवाल खड़े किए हैं. इसके ज़रिए भारत सरकार ने क्या संदेश देने की कोशिश की है?
कुछ लोगों ने इसे इंटेलिजेंस की विफलता बताया है, उसकी सच्चाई क्या है? क्या ये अनुच्छेद 370 हटाए जाने के स्थानीय असंतोष से जुड़ा है?
भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर इसका क्या असर हो सकता है? क्या ये तनाव सैन्य कार्रवाई में तब्दील हो सकता है और इस मामले में चीन की क्या भूमिका हो सकती है?
बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, 'द लेंस' में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सवालों पर चर्चा की.
इन मुद्दों पर चर्चा के लिए बीबीसी संवाददाता जुगल पुरोहित, भारतीय जनता पार्टी की सदस्य और जम्मू-कश्मीर के वक़्फ़ बोर्ड की प्रमुख डॉक्टर दरख़्शाँ अंद्राबी और कश्मीर के मामलों की जानकार डॉक्टर राधा कुमार शामिल हुईं.

पहलगाम हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कई कड़े राजनयिक क़दम उठाए हैं लेकिन सरकार पाकिस्तान को इसके माध्यम से क्या संदेश देना चाह रही है?
बीबीसी संवाददाता जुगल पुरोहित कहते हैं, "सरकार अब यही कहना चाह रही है कि अब जो हुआ है वह किसी लेवल पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. यही वजह है कि पहली बार सिंधु जल समझौता निलंबित किया गया है जब कि किसी जंग में भी यह नहीं किया गया था."
उन्होंने बताया, "इस घटना के बाद प्रधानमंत्री बिहार जाते हैं. वहां वह अपनी पहली रैली को संबोधित करने से पहले दो मिनट का मौन रखते हैं और भाषण के अंत में वह अंग्रेज़ी में बोलने लगते हैं. इससे ज़ाहिर है कि भारत सरकार अलग-अलग लेवल पर संदेश दे रही है. यानी जो हुआ उसके ख़िलाफ़ समर्थन जुटाया जा रहा है."
उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण बात है कि अभी तक भारत ने मिलिट्री शब्द का प्रयोग नहीं किया है. पिछली बार पुलवामा हमले के बाद पीएम मोदी ने मिलिट्री फ़ोर्सेज़ को फ्री हैंड देने की बात की थी. पीएम ने इस बार ऐसा नहीं किया है लेकिन ग्राउंड ज़रूर तैयार किया है. प्रधानमंत्री के भाषण के शब्द पूरी तरह से स्पष्ट हैं.
पुरोहित कहते हैं, "ऐसे में आशंका है कि कुछ न कुछ ज़रूर होगा. किस रूप में? कहां? किस घड़ी? यह देखना होगा."
क्या यह इंटेलिजेंस की विफलता है?पहलगाम हमले को लेकर कई आलोचक इसे इंटेलिजेंस की विफलता बता रहे हैं. बैसरन घाटी में समय से इंटेलिजेंस का इनपुट क्यों नहीं मिला?
भारतीय जनता पार्टी की सदस्य और जम्मू-कश्मीर के वक़्फ़ बोर्ड की प्रमुख डॉक्टर दरख़्शाँ अंद्राबी कहती हैं, "इसे इंटेलिजेंस की विफलता मानना ग़लत होगा. सुरक्षा बल यहां हमेशा चौकन्ना रहते हैं."
वह कहती हैं, "अनुच्छेद 370 हटने के बाद पर्यटकों का आना काफ़ी बढ़ गया है और दुश्मन से ये ख़ुशियां देखी नहीं जाती हैं. सीमापार बैठा दुश्मन हमेशा इसी ताक में रहता है कि कब वह माहौल ख़राब करे. पहले भी जब पर्यटन सीज़न पीक पर होता था तो भी यहां कुछ न कुछ हो जाता था."
वह कहती हैं कि गुलमर्ग, पहलगाम सहित अन्य पर्यटन स्थलों पर लाखों पर्यटक आ रहे थे, ऐसे में उनके बीच सुरक्षाबलों का रहना डर पैदा करेगा.
पहलगाम हमले को लेकर देश के कई राज्यों में कश्मीरियों को दक्षिणपंथी संगठन धमका रहे हैं और इसके लिए उन्हें ज़िम्मेदार मान रहे हैं. इसे आप कैसे देखती हैं?
दरख़्शाँ अंद्राबी कहती हैं, "ऐसे कृत्य से तनाव बढ़ेगा और सीमापार बैठा दुश्मन यही तो चाह रहा है. यही वजह है कि उसने इस हमले को हिंदू-मुसलमान का रंग भी दिया है. इस कठिन समय में हमें पूरे होश से काम लेना है और वैमनस्य को बढ़ावा नहीं देना है."
पहलगाम में हुए हमले का क्या कोई अनुच्छेद 370 से उपजे असंतोष से संबंध लगता है या फिर कोई और वजह है जिसके कारण ये घटना हुई?
कश्मीर मामलों की जानकार डॉक्टर राधा कुमार कहती हैं, "मुझे नहीं लगता है कि यह अनुच्छेद 370 से जुड़ी हुई बात है. जिस तरह से कलमा पढ़ाकर और क्या आप हिंदू हैं? ये पूछकर मारा इससे साफ़ है कि उनका मक़सद सांप्रदायिक तनाव फैलाना था. सांप्रदायिक अफ़वाह को लेकर देश में इस समय बड़ा माहौल है. ये उसका फ़ायदा लेना चाहते थे. "
राधा कुमार कहती हैं, "दूसरा मक़सद यह हो सकता है कि इन्हें यह पता था कि अमेरिकी उप राष्ट्रपति भारत आ रहे हैं. कश्मीर का मसला कहीं भी वैश्विक चर्चा में नहीं था. शायद वह यही सोच रहे थे कि किसी तरह से इसे वापस चर्चा में लाया जाए."
राधा कुमार बताती हैं कि सभी पार्टियों के साथ हुई बैठक में यह बात सामने आई है कि हमले को लेकर इंटेलिजेंस था. बैसरन की घाटी 20 अप्रैल के बाद ही खुली है. ऐसे में इन्हें सोचना चाहिए था कि यहां भी घटना हो सकती है. जहां तक इंटेलिजेंस फेल्योर की बात है तो यह इंटेलिजेंस फेल्योर नहीं है लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं किए जाने की विफलता ज़रूर है.
इस हमले के बाद सिंधु जल समझौता निलंबित करते हुए भारत ने जो अन्य राजनायिक कार्रवाई की है उसे आप किस तरह से देखती हैं?
राधा कुमार कहती हैं, "इस बार भारत ने शुरुआत राजनयिक प्रतिक्रिया से की है. सिंधु जल समझौते की शर्तों को लेकर भाजपा सरकार काफ़ी दिनों से फिर से चर्चा करना चाह रही है. शायद इसलिए भी इस मौके का प्रयोग किया है."
क्या भारत सैन्य कार्रवाई कर सकता है?
इस हमले के बाद भारत ने कश्मीर से लेकर दिल्ली तक कई क़दम उठाए हैं. ऐसे में सैन्य कार्रवाई की भी चर्चा हो रही है. क्या भारत इस तरफ़ भी बढ़ सकता है?
जुगल पुरोहित बताते हैं, "सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो बात सैन्य कार्रवाई तक पहुंचती है. इसे लेकर कयास भी हैं लेकिन कार्रवाई किस तरह की होगी? इसे लेकर कई विकल्पों पर चर्चा चल रही है."
पुरोहित कहते हैं कि इस समय यह देखना ज़रूरी है कि भारत और पाकिस्तान अगले कुछ दिनों में क्या करते हैं? क्या किसी तरह कोई बैक चैनल बातचीत होती है?
वो बताते हैं, "भारत की कार्रवाई की भाषा को देखें तो वह सिंधु जल समझौता निलंबित तो कर रहे हैं लेकिन यह भी कह रहे हैं कि जब तक पाकिस्तान अपना ट्रैक रिकॉर्ड सही नहीं कर लेता है."
जुगल पुरोहित बताते हैं, "भारत की तरफ़ से यह कहा जा रहा है कि हम एक्शन लेंगे लेकिन इससे पहले यह देखेंगे कि सामने की तरफ़ से क्या किया जा रहा है? इस बार सीधे सैन्य कार्रवाई नहीं की जाएगी क्योंकि सभी जानते हैं कि जंग शुरू करना आसान है लेकिन इसे ख़त्म करना किसी के हाथ में नहीं है."
भारत और पाकिस्तान में चल रहे तनाव के बीच अगर कोई कार्रवाई होती है तो कश्मीर पर इसका किस तरह से प्रभाव पड़ेगा?
राधा कुमार कहती हैं, "2019 में बिना किसी परामर्श के जम्मू-कश्मीर से राज्य की हैसियत वापस ले ली गई और स्वायत्तता भी छीन ली गई. इस बात का ग़ुस्सा तो होगा. इससे पहले प्रदर्शन पर भी प्रतिबंध था."
राधा कुमार कहती हैं, "मैं एक बात और कहूंगी जिस तरह से लोग हमले के ख़िलाफ़ बाहर निकले और पूरी तरह से सांप्रदायिकता और हिंसा के ख़िलाफ़ खड़े हुए. ऐसे में सरकार के हाथ में अमन की बात शुरू करने के लिए बड़ा मौक़ा है."
वो कहती हैं कि इस समय कश्मीरियों को आशा देना और राज्य का दर्जा वापस देते हुए कश्मीर के नेताओं के साथ बैठकर अमन का रास्ता निकालने ये सबसे बड़ा मौक़ा है.
राधा कुमार कहती हैं, "अगर सरकार इस मौके़ का सही इस्तेमाल करती है तो पूरे देश में जो सांप्रदायिकता हो रही है. इस पर भी एक सकारात्मक असर पड़ेगा."
वह बताती हैं कि जहां तक कश्मीरी छात्रों के साथ हो रहे घटनाक्रम की बात है तो हमने यह 2010 में भी देखा है. 'उस समय गृह मंत्री ने मेरी सलाह पर विश्वविद्यालयों सहित थानों को यह संदेश भिजवाया कि कश्मीरी छात्रों के साथ कोई भी भेदभावपूर्ण घटना नहीं होनी चाहिए. इसके बाद घटनाओं में काफी कमी आई थी. ऐसे में मैं यही चाहूंगी कि मौजूदा गृह मंत्री भी इस तरह के क़दम उठाएं.'
राधा कुमार की बात पर दरख़्शाँ अंद्राबी कहती हैं, "छात्रों के साथ हुई घटनाओं के बाद कई राज्यों के मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक से बात की गई है. कश्मीरी छात्रों के लिए सरकार ने हर वो क़दम उठाए हैं जो उनकी सुरक्षा के लिए ज़रूरी हैं."
भारत का अगला क़दम क्या होगा?पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान से बढ़े तनाव को लेकर भारत का अगला क़दम क्या होगा? सभी की निगाहें इसी बात पर टिकी हुई हैं.
इस पर जुगल पुरोहित कहते हैं, "इस समय सभी की नज़र दोनों देशों पर हैं कि दोनों किस तरह की घोषणाएं करते हैं? किस तरह का क़दम उठाते हैं? ऐसे में अभी यह कह पाना मुश्किल है कि आगे क्या होगा?"
वह कहते हैं कि पत्रकार के रूप में हमारी नज़र इस बात पर है कि दोनों देशों की सेनाएं क्या कर रही हैं? भारतीय सेना सैन्य अभ्यास कर रही है. सेनाध्यक्ष कहां जा रहे हैं?
जुगल पुरोहित कहते हैं, "हम सरकार, सेना और राजनयिक गतिविधियों पर बरीक़ी से नज़र बनाए हुए हैं क्योंकि उरी हो या बालाकोट दोनों ऐसे ही घटनाक्रम के बाद हुआ था."
वह कहते हैं कि इस घटना के बाद पर्यटन को लेकर आगे क्या होगा? इस पर भी हमारी निगाह बनी हुई है.अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पर्यटन में ज़बरदस्त उछाल देखा गया था.
पुरोहित कहते हैं, "इस समय दो सवाल चर्चा में हैं. पहला क्या पर्यटन को पूरी तरह से बंद कर दिया जाए और दूसरा क्या पर्यटन को अमरनाथ यात्रा के मॉडल पर चलाया जाए? इसके तहत एक क्षेत्र को पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ सीमित पर्यटकों के लिए खोला जाए. यह एक बड़ा सेक्टर होगा जहां हम देखेंगे कि आगे चलकर सरकार क्या निर्णय लेती है."

सिंधु नदी चीन, भारत और पाकिस्तान के बीच बहती है. इस नदी का उद्गम स्थल तिब्बत है. पाकिस्तान ने सिंधु जल समझौते को लेकर प्रतिक्रिया तो दे दी है लेकिन क्या चीन भी इसमें कोई भूमिका निभा सकता है?
राधा कुमार कहती हैं, "हम ये देखेंगे कि टीआरएफ़ के लोग कहां हैं? पंजाब में हैं या पेशावर में हैं."
वह कहती हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह हमला सीमापार से नहीं जुड़ा है. इसकी जांच में पाकिस्तान को सहयोग करना चाहिए.
राधा कुमार कहती हैं, "जहां भी ऐसी आतंकी घटनाएं और सांप्रदायिक हादसे होते हैं. हर इंसान चाहेगा कि इसे रोका जाए. तो फिर यह साथ मिलकर क्यों नहीं कर रहे हैं? इसका पता लगाएं और इसका रास्ता तलाश कर इसे ख़त्म करें. यह होना ही चाहिए."
वह बताती हैं कि अभी कुछ साल पहले ही पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से हटाया गया है और अब भारत फिर से उसमें डालने की मांग करेगा, सिंधु जल समझौते में चीन का क्या रोल होगा? वह ब्लॉक करना चाहेंगे या नहीं चाहेंगे? यह देखना होगा.
भाजपा पर क्या लगा आरोप?पहलगाम हमले के बाद भाजपा की ही एक प्रदेश यूनिट ने एक तस्वीर के साथ ये बात लिखी, "देखिए, ये धर्म पूछकर मारा गया."
इसके बाद भाजपा पर यह आरोप लग रहा है कि हमले में हिंदू-मुसलमान के कोण को उन्होंने ही हवा दी.
दरख़्शाँ अंद्राबी कहती हैं, "ऐसा नहीं है. ये बात सामने आ गई है कि इसमें कश्मीरियों का हाथ नहीं है. इसके पीछे सीमापार वालों का हाथ है. वह हमारे लिए बदनसीबी है."
वह कहती हैं कि जो भी हो रहा है इसमें बीजेपी या फिर सरकार की कोई नीति नहीं है, इससे बीजेपी और सरकार दोनों ही दूर हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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