उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के इसौटा गांव में बीते 13 अप्रैल को 35 साल के दलित युवक देवी शंकर की अधजली लाश, उनके घर से क़रीब चार सौ मीटर दूर मिली थी.
दलित परिवार का आरोप है कि ठाकुर समुदाय के लोगों के खेतों से गेहूं का बोझा ढोने से इनकार करने पर यह हत्या हुई है. वहीं इस मामले में परिवार की तहरीर पर आठ अभियुक्तों की गिरफ़्तारी हो चुकी है.
मृतक की साठ साल की मां कलावती के मुताबिक़, "मेरे बेटे ने दिलीप सिंह के गेहूं के खेत में काम करने से इनकार किया था, इसलिए उसको मार डाला."
कलावती के अनुसार देवी शंकर ने 12 अप्रैल को दिन भर अपने खेत में गेहूं की कटाई की थी, जिससे हुई थकान के कारण वह दिलीप सिंह के खेतों में गेहूं उठाने नहीं जाना चाहते थे.
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इस मामले में मृतक के बुज़ुर्ग पिता अशोक कुमार की तहरीर पर दिलीप सिंह उर्फ़ छोट्टन, अजय सिंह, विनय सिंह, मनोज सिंह, सोनू सिंह उर्फ़ संजय, शेखर सिंह, मोहित और अन्य अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ भारतीय न्याय संहिता की हत्या की धारा सहित दलित एक्ट की धाराओं में मामला दर्ज हुआ है.
करछना के सहायक पुलिस अधीक्षक (एएसपी) वरुण कुमार ने बताया कि जिन लोगों पर आरोप लगाया गया है उनमें मुख्य अभियुक्त दिलीप सिंह उर्फ़ छोट्टन सहित आठ अन्य अभियुक्तों को रिमांड पर लेने के बाद जेल भेज दिया गया है.
हत्या की वजह पूछे जाने पर एसीपी वरुण कुमार ने बताया, "इसौटा गांव की एक महिला, मृतक देवी शंकर और मामले के एक अभियुक्त से बात किया करती थी. इसी वजह से दोनों लोगों में मनमुटाव बढ़ गया. जो देवी शंकर की हत्या का कारण बना."
गेहूं के खेत में काम करने से इनकार करने पर हुई हत्या की बात पर एसीपी वरुण कुमार ने कहा, "ले तो गए थे इसी बहाने से, लेकिन वहां पहले सभी ने शराब पी, उसके बाद महिला को लेकर उनके बीच बहस हुई, इसी के बाद उन लोगों ने देवी शंकर हत्या कर दी."
देवी शंकर के परिवार ने महिला के चलते मनमुटाव होने की किसी बात से इनकार किया है.
क्या उनके बीच कोई पुरानी रंजिश थी? इस सवाल पर देवी शंकर के पिता अशोक कुमार कहते हैं, "हमारी कभी ऐसी कोई रंजिश तो नहीं थी. हम ठाकुरों के खेतों में काम करते थे, जिससे दो पैसे की आमदनी होती थी."

आरोपों के मुताबिक़ दिलीप सिंह 12 अप्रैल को लगातार फोन करके काम करने के लिए देवी शंकर पर दबाव बनाते रहे.
कलावती कहती हैं, "रात को नौ बजे देवी शंकर जब अपने घर में खाना खाने बैठे तभी दिलीप सिंह ने कॉल करते हुए ज़ोर दिया कि खेत पर ही आ जाओ, यहां तुम सभी के लिए भोजन का इंतज़ाम है."
कलावती आगे कहती हैं, "दिलीप सिंह इतना बुला रहे हैं तो मैं खेतों पर ही खाना खाऊंगा और उनका काम करके घर वापस आ जाऊंगा, ये कहकर देवी शंकर खेतों की तरफ़ चले गए."
कलावती रोते हुए कहती हैं, "देवी शंकर के ये शब्द मेरे कानों में अभी तक गूंज रहे हैं जो उसने मुझसे अंतिम बातचीत में कहे थे."
देवी शंकर रात में घर वापस नहीं आए, इस बात से बेख़बर पिता अशोक कुमार, मां कलावती और बेटी काजल, 13 अप्रैल की सुबह चार बजे रोज़ की तरह महुआ चुनने के लिए पेड़ों की तरफ चली गईं.
वहां से लौटने पर उन्हें ख़बर मिली कि गांव के बाहर एक युवक की अधजली लाश पड़ी है. कलावती के अनुसार जिसे देखने पर देवी शंकर की पंद्रह साल की बेटी काजल ने पहचाना कि यह उसके पिता की लाश है.
कलावती के अनुसार देवी शंकर के बदन के कपड़े जल चुके थे, और शरीर काफ़ी जल चुका था.
वो कहती हैं, "जिस समय पुलिस शरीर को पोस्टमॉर्टम हॉउस ले जाने की तैयारी कर रही थी. मेरे बेटे के बदन पर कपड़े नहीं थे, मैं दौड़ कर घर से उनकी नई धोती लेकर पहुंची, लेकिन वह भी बेटे को नसीब नहीं हो सकी."
नाम न बताने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार देवी शंकर की मौत गला घोंटने के कारण हुई, जबकि जलने के ज़ख्म मौत के बाद के हैं.
मां के बाद अब पिता का साया भी नहीं रहाप्रयागराज से क़रीब 45 किलोमीटर दूर इसौटा गांव में सात परिवार ठाकुरों के हैं और क़रीब 200 परिवार दलितों के हैं. हत्या के बाद इन सात परिवारों के घरों में ताला लगा हुआ है और अभियुक्तों के परिवार फ़रार हैं.
दलित परिवारों के अधिकांश घरों की दीवारें मिट्टी की हैं तो छत खपरैल की है.
इन्हीं में से एक घर में पांच साल पहले ही अपनी मां को खो चुके तीन नाबालिग़ बच्चे काजल, सूरज और आकाश अब अनाथ हो चुके हैं. उनके पिता देवी शंकर की हत्या हो चुकी है, अब उनके सिर पर सिर्फ़ बुज़ुर्ग दादा-दादी का साया है.
दादी कलावती कहती हैं, "काजल की तीन साल में शादी करनी है, जिसका ख़र्च अब कैसे पूरा होगा? पति के आँखों की रोशनी कम होने के बाद घर में कमाने वाला सिर्फ़ मेरा बेटा था, जो मज़दूरी करके दो पैसे कमाता था."
कलावती कहती हैं, "बेटे के जाने के बाद कोई मुझे कर्ज़ भी नहीं देगा, सभी जानते हैं कि मेरे घर में अब कमाने वाला कोई है ही नहीं."
वो राज्य सरकार से मदद की गुहार लगाते हुए कहती हैं, "मेरे अनाथ पोते-पोती के लिए सरकार कुछ देगी या नहीं? नहीं देगी तब क्या मेरे इन बच्चों को भीख मांग कर पेट भरना पड़ेगा, इन्हें भी तो शिक्षित हो कर बेहतर जीवन जीने का अधिकार है?"
बेटे की मौत से गहरे सदमे में अशोक कुमार कहते हैं, "बच्चों के पालन पोषण के लिए मुआवज़ा तो मिलना चाहिए, वरना हम कैसे इन बच्चों की परवरिश करेंगे."
परिवार को मुआवज़े के सवाल पर स्थानीय एसडीएम तपन मिश्रा कहते हैं, "पीड़ित परिवार के लिए आवासीय पट्टा देने के अलावा आर्थिक सहायता देने की पहल की जा रही है."
एसडीएम के मुताबिक देवी शंकर के परिवार को पारिवारिक सहायता योजना के तहत पैंतालिस हज़ार रुपये की सहायता दी जाएगी, वहीं उनके बुज़ुर्ग माता पिता को वृद्धावस्था पेंशन दी जाएगी और आवास आवंटन और कृषि के लिए भी ज़मीन दी जाएगी.
आवास और खेती के लिए कितनी ज़मीन दी जाएगी, इस सवाल पर वो कहते हैं, "कृषि के लिए ज़मीन ग्राम सभा से उपलब्ध ज़मीन के आधार पर दी जाएगी, जो अभी तय नहीं है. जबकि आवास के लिए 200 वर्ग मीटर ज़मीन दी जाती है."
ग्रामीणों में आक्रोश13 अप्रैल की सुबह अधजली लाश मिलने के बाद ग्रामीण आक्रोशित थे. उन्होंने न सिर्फ़ हत्या के अभियुक्तों के घर पर तोड़-फोड़ की, बल्कि पोस्टमॉर्टम के लिए पुलिस को दो घंटे तक लाश भी नहीं उठाने दी.
ग्रामीणों की मांग थी कि पहले मुआवज़े का एलान और सभी अभियुक्तों की गिरफ़्तारी हो, उसके बाद ही पोस्टमॉर्टम हो.
पिता अशोक कुमार कहते हैं, "13 अप्रैल की रात ही पुलिस ने देवी शंकर का अंतिम संस्कार जबरन करवा दिया, जबकि हम अंतिम संस्कार रात की जगह 14 अप्रैल की सुबह करना चाहते थे."
हत्यारों के ख़िलाफ़ पुलिस क्या कर्रवाई कर रही है?
इस सवाल पर एसीपी वरुण कुमार कहते हैं, "चूंकि मृतक दलित समाज से हैं इसलिए अभियुक्तों के विरुद्ध हत्या के अलावा दलित एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है."
पुलिस कार्रवाई पर देवी शंकर के पिता अशोक कुमार कहते हैं, "नहीं मैं संतुष्ट नहीं हूं, दिलीप सिंह को फांसी होनी चाहिए, उनके घरों पर भी बुलडोज़र चलने चाहिए."
दलितों के ख़िलाफ़ अपराध के मामलेउत्तर प्रदेश में दलितों के अधिकार के लिए काम करने वाले रिटायर आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी का दावा है कि राज्य में दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं.
वे कहते हैं, "साल भर की घटनाओं; जैसे बारात में घोड़ी पर न चढ़ने देना, डीजे न बजाने देना आदि पर नज़र डाली जाए तो दलितों के साथ हिंसा भी बढ़ी है, क्योंकि भाजपा के शासन में सवर्ण जाति का मनोबल बढ़ा है. उनको लगता है कि हम कुछ भी करेंगे हमारे ऊपर वैसी कार्रवाई नहीं होगी जैसी दूसरों पर होती है."
एनसीआरबी के आंकड़ों का ज़िक्र करते हुए वो कहते हैं, "साल 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार दलितों पर उत्पीड़न के मामले बढ़े थे और उसके बाद आंकड़े आने बंद हो गए. लेकिन अख़बार की ख़बरें बता रही हैं कि दलितों के साथ उत्पीड़न का मामला बढ़ा है."
प्रयागराज की मौजूदा घटना से दलित कितने आक्रोशित हैं? इस सवाल पर दारापुरी कहते हैं, "अत्याचार हो रहा है तो दलितों में आक्रोश भी बढ़ भी रहा है, लेकिन दलित हिंसक होकर जवाब नहीं देते, वो अपने तरीक़े से प्रतिक्रिया दे रहे हैं."
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर विक्रम हरिजन कहते हैं, "दलित समाज प्रयागराज की घटना से आक्रोशित है. लेकिन वे शांतिपूर्ण धरना देने या ज्ञापन देने जैसे संवैधानिक तरीक़े को अपनाते हैं."
"इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि दलित आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं, तो राजनीतिक रूप से बदहाल भी हैं. ऐसे में वो सवर्णों के ख़िलाफ़ कोई बड़ा जवाबी आंदोलन नहीं कर पाते हैं."
हालांकि प्रयागराज की घटना से स्थानीय स्तर पर राजनीति भी हो रही है. विपक्ष इस घटना को लेकर बीजेपी के शासन पर आरोप लगा रहा है.
प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार अमित शरण कहते हैं, "पीड़ित परिवार से मिलने सोमवार को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गए थे, मंगलवार को बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष भी इसौटा गांव पहुंचे, अखिलेश यादव और चंद्रशेखर ने भी सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया दी है."
हालांकि अमित शरण मानते हैं कि जिस तरह से पुलिस ने व्यक्तिगत दुश्मनी का एंगल बताया है, उससे यह मामला राजनीतिक मुद्दा शायद नहीं बन पाएगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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