जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले को लेकर रविवार को चीनी विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तानी उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इसहाक़ डार के बीच फ़ोन पर बात हुई.
इस बातचीत के बाद चीन ने पाकिस्तान के 'निष्पक्ष जांच' वाली मांग का समर्थन किया है.
चीन के सरकारी मीडिया के मुताबिक़, भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव पर चीन क़रीबी नज़र बनाए हुए है.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अंग्रेज़ी दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, "चीन जल्द से जल्द निष्पक्ष जांच शुरू करने का समर्थन करता है और उम्मीद है कि दोनों पक्ष (भारत और पाकिस्तान) इस मामले में संयम बरतेंगे."
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इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने शनिवार को कहा था कि एक ज़िम्मेदार देश के रूप में पाकिस्तान 'निष्पक्ष, पारदर्शी और विश्वसनीय जांच' में सहयोग करने के लिए तैयार है.
चीन ने बीते दिनों बयान जारी करते हुए पहलगाम हमले की निंदा की थी.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने बुधवार को कहा था कि चीन सभी तरह के आतंकवाद का विरोध करता है.
बीते हफ़्ते मंगलवार, 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले में 26 लोगों की मौत हुई थी.
इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कार्रवाई करते हुए सिंधु जल संधि को निलंबित करने और अटारी बॉर्डर को बंद करने सहित कई फ़ैसले लिए थे.
वहीं पाकिस्तान ने भी भारत के ख़िलाफ़ कई क़दम उठाए थे, जिसमें शिमला समझौते से बाहर होने का फ़ैसला भी शामिल था.
, फ़ोन कॉल के दौरान पाकिस्तानी विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने चीनी विदेश मंत्री को वर्तमान स्थिति के बारे में बताया.
इसहाक़ डार ने कहा, "पाकिस्तान हमेशा आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिए दृढ़ रहा है और ऐसी कार्रवाइयों का विरोध करता है जो तनाव बढ़ा सकती हैं."
उन्होंने कहा, "पाकिस्तान इस स्थिति को परिपक्व तरीके से संभालने के लिए प्रतिबद्ध है और चीन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ संवाद जारी रखेगा."
ने भी इस फ़ोन कॉल के बारे में एक्स पर जानकारी साझा की है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने लिखा, "विदेश मंत्री ने पाकिस्तान-चीन दोस्ती और सामरिक पार्टनरशिप के लिए प्रतिबद्धता जताई है. उन्होंने क्षेत्र और उसके बाहर शांति, सुरक्षा और विकास के अपने साझा उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए, सभी स्तरों पर बातचीत और समन्वय बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की."
वहीं, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि चीन स्थिति पर क़रीब से नज़र बनाए हुए है.
उन्होंने कहा, "आतंकवाद से मुक़ाबला करना सभी देशों की ज़िम्मेदारी है और चीन लगातार पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों का समर्थन करता है."
वांग यी ने कहा, "एक मज़बूत दोस्त और रणनीतिक भागीदार के तौर पर चीन, पाकिस्तान की वैध सुरक्षा चिंताओं को पूरी तरह से समझता है और सुरक्षा हितों को बनाए रखने के उसके प्रयासों का समर्थन करता है."
वांग यी ने कहा कि चीन 'निष्पक्ष जांच की तत्काल शुरुआत का समर्थन' करता है.
उन्होंने कहा कि चीन को उम्मीद है कि दोनों पक्ष संयम बरतेंगे और तनाव कम करने के लिए काम करेंगे.
चीनी विदेश मंत्री ने कहा, "संघर्ष ना तो भारत और पाकिस्तान के मौलिक हितों को पूरा करता है और ना ही क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को."
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने क्या कहा था?
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने शुक्रवार को कहा था कि भारत ने पहलगाम हमले को लेकर पाकिस्तान पर 'झूठे आरोप' लगाए हैं.
उन्होंने कहा, "हमारे पूर्वी पड़ोसी (भारत) ने बिना जांच और सबूत के पाकिस्तान पर निराधार आरोप लगाए हैं. एक ज़िम्मेदार देश के रूप में पाकिस्तान निष्पक्ष, पारदर्शी और विश्वसनीय जांच में सहयोग करने के लिए तैयार है."
शहबाज़ शरीफ़ ने यह भी कहा था, "शांति हमारी इच्छा है, लेकिन इसे हमारी कमज़ोरी नहीं समझा जाना चाहिए."
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान हर क़ीमत पर अपनी संप्रभुता की रक्षा करेगा. पाकिस्तानी सेना सीमाओं की रक्षा के लिए तैयार है और इसको लेकर कोई ग़लतफ़हमी नहीं होनी चाहिए.
पहलगाम हमले के अगले ही दिन बुधवार को चीन ने एक बयान जारी कर हमले की निंदा की थी.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने , "हम सभी प्रकार के आतंकवाद का दृढ़तापूर्वक विरोध करते हैं. पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं और शोकाकुल परिवारों और घायलों के प्रति सहानुभूति रखते हैं."
वहीं भारत में चीन के राजदूत शू फ़ेइहॉन्ग ने भी पहलगाम हमले पर संवेदना व्यक्त की थी.
उन्होंने एक्स पर , "पहलगाम में हुए हमले से स्तब्ध हूं और इसकी निंदा करता हूं."
"पीड़ितों के प्रति गहरी संवेदना और घायलों और शोकाकुल परिवारों के प्रति. सभी तरह के आतंकवाद का विरोध करता हूं."
वर्तमान में एक-दूसरे के बड़े सहयोगी देश हैं. चाहे आर्थिक मोर्चे की बात हो या रक्षा क्षेत्र की चीन ने पाकिस्तान की मदद की है.
दोनों की दोस्ती अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देखने को मिलती है. हालांकि, यह दोस्ती पहले इतनी गहरी नहीं थी.
आज़ादी के बाद भारत के लिए चीन की प्राथमिकता पाकिस्तान से कहीं अधिक थी. साल 1956 में चीनी प्रधानमंत्री 1956 में चाउ एन लाई के दौरे से चीन और पाकिस्तान के बीच संबंधों के एक नए युग की शुरुआत हुई.
इस बीच, एक समय ऐसा भी आया जब पाकिस्तान चीन को लेकर चिंतित दिखा.
साल 1958 में पाकिस्तान में तख़्तापलट के बाद पहले सैन्य शासक बने फ़ील्ड मार्शल अय्यूब ख़ान चीन की विस्तारवादी नीति से काफ़ी चिंतित थे.
अपनी चिंता को दूर करने के लिए साल 1959 में वो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पास एक प्रस्ताव लेकर पहुँचे.
अय्यूब ख़ान ने 24 अप्रैल 1959 को 'जॉइंट डिफ़ेंस पैक्ट' यानी 'संयुक्त रक्षा समझौता' का प्रस्ताव भारत के सामने रखा था. लेकिन नेहरू ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था.
साल 1961 में, जब पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाग ले रहा था और चीन के समर्थन में एक प्रस्ताव पेश किया गया था, तब प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व तत्कालीन सिंचाई और उद्योग मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो कर रहे थे.
उन्होंने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना के पक्ष में मतदान किया. कुछ समय बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी जारी की, लेकिन पाकिस्तान का फ़ैसला आ चुका था. तब से पाकिस्तान चीन का समर्थक बना रहा.
जब चीन ने 1962 में सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ युद्ध छेड़ा, तो पाकिस्तान और चीन की दोस्ती की मुख्य वजह भारत से साझा दुश्मनी बन गई. कई वर्षों के लिए, इस साझा दुश्मनी को उनकी दोस्ती का मुख्य कारण माना जाता था, या कम से कम इस प्रकार का आरोप लगाया जाता रहा.
लेकिन अब चीन और पाकिस्तान की दोस्ती की मुख्य वजह भारत के साथ दुश्मनी से कहीं ज्यादा हैं. हालांकि भारत के साथ दुश्मनी अभी भी दोनों के बीच दोस्ती के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन एक सच यह भी है कि इस वक्त पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में चीन का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार ने साल 2021 में बीबीसी से बातचीत में कहा था कि भारत के ख़िलाफ़ चीन ने बेधड़क पाकिस्तान का साथ दिया है. फिर चाहे आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान पर कार्रवाई की बात हो या फिर एफ़एटीएफ़ के ब्लैक लिस्ट की बात हो.
कश्मीर के मुद्दे पर चीन भले ही द्विपक्षीय मानता रहा हो, लेकिन सीपेक में पाकिस्तान का साथ देकर उसने बता दिया चीन का सीमा मुद्दे पर क्या रुख़ है.
'चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर' या सीपेक चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत बनाए जा रहे व्यापारिक नेटवर्क का हिस्सा है.
सीपेक के तहत पाकिस्तान में इंफ़्रास्ट्रक्चर से जुड़े कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिनमें चीन का 62 अरब डॉलर का निवेश है. चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की सभी परियोजनाओं में सीपेक को सबसे महत्वपूर्ण मानता है. इसकी सफलता उसके लिए बहुत ज़रूरी है.
इसके अलावा पाकिस्तान की गिरती अर्थव्यवस्था को कर्ज़ से संभाले रखने का श्रेय भी चीन को ही दिया जाता है.
दूसरी तरफ़ चीन जिस तरह से वीगर मुसलमानों के साथ पेश आ रहा है उस पर पाकिस्तान कभी आवाज़ नहीं उठाता. दुनिया के बाक़ी मुल्क जो भी कहे, चीन को पाकिस्तान का कवच इस मुद्दे पर मिलता रहा है.
यही वजह है कि जब एससीओ का गठन हो रहा था और रूस ने भारत को शामिल करने की बात कही तो चीन ने पाकिस्तान का नाम आगे किया.
चीनी हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश पाकिस्तान
चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग में कई पहलू शामिल हैं. पाकिस्तान की सेना चीन में प्रशिक्षण प्राप्त करती है. संयुक्त सैन्य अभ्यासों के अलावा चरमपंथ विरोधी अभ्यास भी साथ में किए जाते हैं.
इतना ही नहीं चीन पाकिस्तान को परमाणु हथियार, युद्धपोत, विमान और मिसाइल जैसे सैन्य उपकरणों को बनाने में भी मदद करता है.
पाकिस्तान के अख़बार ने 18 अक्टूबर 2018 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तान चीनी हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश है.
रिपोर्ट में एक अमरीकी वेबसाइट रैंद कॉर्पोरेशन के हवाले से कहा गया है कि साल 2000-14 के बीच चीन की कुल हथियारों की बिक्री का 42 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान ने ख़रीदा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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