भारत के उच्च शिक्षा संस्थान तेजी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक को अपनाने लगे हैं। अर्न्स्ट एंड यंग-पार्थेनन और फिक्की द्वारा प्रस्तुत एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 50 प्रतिशत से अधिक उच्च शिक्षा संस्थान (HEIs) शिक्षण सामग्री बनाने के लिए जनरेटिव एआई का उपयोग कर रहे हैं। इसके अलावा, लगभग 60 प्रतिशत संस्थान छात्रों को एआई उपकरणों का उपयोग करने की अनुमति दे रहे हैं।
शिक्षण के तरीके में बदलाव
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के 30 प्रमुख उच्च शिक्षा संस्थानों पर किए गए सर्वेक्षण से यह स्पष्ट हुआ है कि 56 प्रतिशत से अधिक संस्थानों ने पहले ही एआई से संबंधित नीतियों को लागू कर लिया है। इनमें से लगभग 40 प्रतिशत संस्थानों ने एआई-संचालित ट्यूशन सिस्टम और चैटबॉट्स को अपनाया है, जिससे छात्रों की सीखने की प्रक्रिया अधिक व्यक्तिगत और प्रभावी हो रही है।
AI का शिक्षण में बढ़ता महत्व
रिपोर्ट के अनुसार, 53 प्रतिशत संस्थान जनरेटिव एआई का उपयोग करके शिक्षण सामग्री तैयार कर रहे हैं, 39 प्रतिशत ने अनुकूली शिक्षण प्लेटफॉर्म को अपनाया है, और 38 प्रतिशत एआई आधारित स्वचालित ग्रेडिंग सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं। यह दर्शाता है कि एआई अब केवल एक तकनीकी सहायता नहीं, बल्कि शिक्षण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनता जा रहा है।
डेटा प्राइवेसी की चुनौतियाँ
रिपोर्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि एआई के बढ़ते उपयोग के साथ डेटा प्राइवेसी और सुरक्षा के मुद्दे सामने आ रहे हैं। कई एआई प्लेटफॉर्म छात्रों की व्यक्तिगत जानकारी, प्रस्तुतियों और जुड़ाव पैटर्न पर निर्भर करते हैं। यदि इनका उचित प्रबंधन नहीं किया गया, तो निजता का उल्लंघन और संस्थानों की प्रतिष्ठा को खतरा हो सकता है।
AI साक्षरता की आवश्यकता
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सभी शैक्षणिक कार्यक्रमों में बुनियादी AI साक्षरता को शामिल किया जाए, ताकि सभी विद्यार्थी, चाहे उनका विषय कोई भी हो, AI की मूल अवधारणाओं, नैतिकता, डिजिटल कौशल और आलोचनात्मक सोच से परिचित हो सकें। STEM विषयों में मशीन लर्निंग, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (NLP) और रोबोटिक्स जैसी उन्नत AI तकनीकों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की सिफारिश की गई है।
भारत को बड़े पैमाने पर प्रयास करने की आवश्यकता
ईवाई-पार्थेनॉन इंडिया की पार्टनर और शिक्षा क्षेत्र की लीडर अवंतिका तोमर ने कहा कि भारत को AI की पूरी क्षमता का लाभ उठाने के लिए केवल प्रयोगों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे बड़े पैमाने पर लागू करना होगा।
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