दक्षिण एशिया का नक्शा आप देखेंगे तो भारत के पड़ोसियों को गिनते जाएं। शायद ही ऐसा कोई देश मिलेगा जहां सैन्य तख्तापलट न हुआ हो। पाकिस्तान की कहानी आप जानते हैं। बांग्लादेश में हुआ, म्यांमर में अभी भी चल रहा है।
इंडोनेशिया, थाइलैंड, वियतनाम इन तमाम देशों में तख्तापलट के सफल और असफल प्रयास हुए हैं। लेकिन भारत जैसा देश जहां नार्थ, साउथ, ईस्ट, वेस्ट इतना अंतर है। आस-पड़ोस हर दिशा में अस्थिरता रही है। युद्ध हुए हैं। प्रधानमंत्रियों की हत्या हुई है। आर्थिक संकट रहा है। बावजूद इसके हिंदुस्तान में तख्तापलट जैसा सीन देखने को नहीं मिला। हालांकि अर्बन नक्सल की तरफ से देश में आंदोलन कर देश की राजनीति को प्रभावित करने की समय समय पर कई कोशिशें हुई हैं।
तमाम तरह के षड़यंत्र देश की मौजूदा सरकार के खिलाफ रचे जाते हैं। नक्सलियों की कमर तोड़ने के बाद अब अगला नंबर अर्बन नक्सल का है। 2026 तक नक्सलियों को पूरी तरह से खत्म करने का टारगेट रखा गया था वो लगभग पूरा होने वाला है। अब केंद्रीय गृह मंत्री की तरह से कहा गया है कि 1974 के बाद से देश में जितने भी आंदोलन, धरने हुए हैं, उनकी जांच की जाएगी। 1974 के बाद देश में कितने विरोध प्रदर्शन हुए। इन प्रोटेस्ट की फंडिंग किसने की? इसके पीछे मकसद क्या था? अब इन सब की जांच होगी। जांच कौन करेगा, किसके आदेश पर होगी।
अर्बन नक्सल किसे कहते हैं
नक्सली का मतलब हम यही समझते हैं कि जंगलों में जो हथियार लेकर घूम रहे हैं, वो ही नक्सली हैं। उन्हें घुमाने वाला कौन, उनके हाथों में हथियार पकड़ाने वाला कौन? कौन है जिसने उन्हें ब्रेनवॉश करके अपने ही देश के खिलाफ खड़ा किया और लड़ने के लिए प्रेरित किया। नक्सली जिन इलाकों में लड़ रहे हैं, वो गरीबों के बच्चे हैं। लेकिन इनके आका सभी करोड़पति हैं। इनके आकाओं के ताड़ विदेशी शक्तियों के साथ भी मिले हुए हैं। कोई चीन से पैसे मंगा रहा है, कोई अरब देश से जुड़ा है। कोई अमेरिकन है तो कोई किसी एनजीओ से संबंधित है। उस एनजीओ को पैसे कहीं से मिल रहे हैं। कुल मिलाकर कहें कि गरीबों के दिमाग में जहर भरकर अपने ही देश के खिलाफ, सरकार के खिलाफ हथियार पकड़वाया है। उन्हें अर्बन नक्सल कहते हैं।
अर्बन नक्सल के खिलाफ निर्णायक जंग शुरू
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ब्यूरो (BPR&D) को 1974 के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों की स्टडी करने के निर्देष दिए हैं। साथ ही एक एसओपी भी तैयार करने को कहा है, जिससे इस बात का पता चल सकेगा कि उन विरोध प्रदर्शनों के कारण क्या थे? इसकी फंडिंग कौन कर रहा था और इन प्रदर्शनों के पीछे किसका हाथ था। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार जुलाई के आखिरी हफ्ते में इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी की ओर से दिल्ली में एक सेमीनार रखा गया। राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन 2025 नाम के इस सम्मेलन में जांच के निर्देष जारी किए गए थे। रिपोर्ट में सीनियर अधिकारी के हवाले से बताया गया कि पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ब्यूरो को विशेष रूप से इन प्रदर्शनों के कारणों, पैटर्न और परिणामों का विश्लेषण करने के लिए कहा गया है। इसमें विरोध प्रदर्शन में पर्दे के पीछे कौन लोग शामिल रहे। इसकी भी विशेष जांच होगी।
पुराने केस फाइलों के लिए कॉर्डिनेट
ऑफीसर ने बताया कि ये निर्देष भी दिया गया है कि भविष्य में बड़े पैमाने पर आंदोलन को रोकने के लिए रिसर्च के रिजल्ट के आधार पर एक एसओपी तैयार की जाए। जिससे भविष्य में वेसर्टेड इंट्रेस्ट की ओर से भड़काए जाने की सूरत में बड़े आंदोलनों को रोकने में मदद मिलेगी। गृह मंत्री अमित शाह के निर्देष के बाद अब केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंदर आने वाले बीपीआर एंड डी एक टीम गठित करने की प्रक्रिया में है, जो हर राज्य पुलिस विभागों के साथ सीआईडी की रिपोर्ट सहित पुराने केस फाइलों के लिए कॉर्डिनेट करेगी। रिपोर्ट के मुताबिक अमित शाह ने बीपीआर एंड डी को सेंट्रल ब्यूरो ऑफ डॉयरेक्ट टैक्सेस (सीपीबीटी) और फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिय जैसी वित्तीय जांच एजेंसियों को ऐसे आंदोलन की वित्तीय पहलुओं की जांच करने के लिए शामिल करने को कहा है। इन एजेंसियों की मदद से प्रदर्शन की फंडिंग की जांच की जाएगी। जैसे फंडिंग के सोर्स क्या थे। इससे न सिर्फ आंदोलन के पीछे छिपे आर्थिक नेटवर्क का पता चलेगा बल्कि टेरर फंडिंग को भी तोड़ा जाएगा।
जांच की डेडलाइन तय
1974 का साल इसलिए चुना गया क्योंकि 1975 में देश में आपातकाल लागू की गई थी। उस वक्त इंदिरा गांधी की सरकार ने भी कहा था कि विदेशी शक्तियां ऐसी हैं। जो हमारे देश को अव्यवस्थित करना चाहती है। जब इंदिरा गांधी ने कहा होगा कि सीआईए मेरी सरकार के खिलाफ है। या फिर इंदिरा गांधी ने कहा होगा कि विदेशी शक्तियां सरकार को आंदोलन के माध्यम से गिराना चाहती है। उसी वक्त की टाइमलाइन से जांच शुरू की गई है। क्या किसी आंदोलन में विदेशी हाथ था, क्या विदेशी फंडिंग हुई थी। सारी बातों की जांच की जाएगी। इसके लिए जनवरी 2027 का डेडलाइन रखा गया है। इसके बाद सरकार एक पैटर्न जांचेगी कि विदेशी फंडिंग कहां से हो रही है। उसका आंकलन कर इन अर्बन नक्सल के खिलाफ निर्णायक लड़ाई छेड़ी जाएगी। मतलब साफ है कि विदेश से पैसे लेकर आप भारत की विकास परियोजनाओं को बाधित नहीं कर सकते।
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