कोलकाता, 22 सितंबर . पश्चिम बंगाल शाक्त धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है. यहां पर आदिकाल से ही शक्ति उपासना की परंपरा विद्यमान रही है. शाक्त साधना के लिए बंगाल को विशेष महत्व प्राप्त है. प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में वर्णित 51 शक्तिपीठों में से 12 पवित्र शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल में स्थित हैं. नवरात्रि और दुर्गापूजा के अवसर पर यहां विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं और लाखों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं.
आइए विस्तार से जानते हैं इन 12 शक्तिपीठों के बारे में…
बहुला शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले से लगभग 8 किलोमीटर दूर केतुग्राम के निकट अजय नदी के तट पर बहुला शक्तिपीठ स्थित है. मान्यता है कि यहां माता सती का बायां हाथ या भुजा गिरी थी. इस स्थान पर देवी बहुला के रूप में पूजी जाती हैं और भैरव को भीरुक कहते हैं.
मंगल चंद्रिका शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के उजानी गांव में यह शक्तिपीठ स्थित है. यहां माता की दाईं कलाई गिरी थी. इस स्थान पर माता को मंगल चंद्रिका रूप में पूजा जाता है. साधक और भक्त यहां विशेषकर Tuesday और नवरात्रि पर दर्शन करने आते हैं.
त्रिस्रोता-भ्रामरी शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी जिले के सालबाड़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था. यहां देवी भ्रामरी के रूप में पूजी जाती हैं और शिव को अंबर या भैरवेश्वर कहा जाता है. भ्रामरी को मधुमक्खियों की देवी माना जाता है. देवी महात्म्य और देवी भागवत पुराण में उनकी महिमा का वर्णन मिलता है.
युगाद्या शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के खीरग्राम (क्षीरग्राम) में युगाद्या शक्तिपीठ स्थित है. यहां माता सती के दाहिने पैर का अंगूठा गिरा था. यहां की शक्ति युगाद्या या भूतधात्री कहलाती हैं और शिव को क्षीरखंडक कहते हैं. यहां देवी युगाद्या की भद्रकाली मूर्ति विशेष आकर्षण है.
कालीपीठ (कालीघाट): पश्चिम बंगाल के कोलकाता का कालीघाट शक्तिपीठ सबसे प्रसिद्ध स्थानों में से एक है. यहां माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था. देवी यहां कालिका रूप में विराजमान हैं और भैरव को नकुशील कहा जाता है. कालीघाट मंदिर विश्वविख्यात है और लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष यहां दर्शन के लिए आते हैं.
वक्रेश्वर शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में दुबराजपुर स्टेशन से लगभग 7 किलोमीटर दूर वक्रेश्वर में यह पीठ स्थित है. पापहर नदी के तट पर यहां माता का भ्रूमध्य (मन:) गिरा था. यहां देवी महिषमर्दिनी के रूप में पूजी जाती हैं और भैरव वक्रनाथ कहलाते हैं.
देवगर्भा शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोलारपुर स्टेशन के निकट कोपई नदी के तट पर देवगर्भा शक्तिपीठ है. यहां माता की अस्थि गिरी थी. देवी यहां देवगर्भा के रूप में पूजी जाती हैं और भैरव रुरु नाम से विख्यात हैं.
विभाष शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के पूर्वी मेदिनीपुर जिले के तामलुक गांव (ताम्रलुक) में विभाष शक्तिपीठ स्थित है. यहां रूपनारायण नदी के तट पर माता का बायां टखना गिरा था. देवी कपालिनी (भीमरूप) कहलाती हैं और शिव शर्वानंद नाम से पूजित होते हैं. यहां वर्गभीमा का विशाल मंदिर आकर्षण का केंद्र है.
अट्टहास शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के लाभपुर स्टेशन से लगभग दो किलोमीटर दूर अट्टहास स्थान पर माता का अधरोष्ठ (नीचे का होंठ) गिरा था. यहां देवी फुल्लरा के रूप में पूजी जाती हैं और शिव विश्वेश कहलाते हैं. यह स्थान शक्ति उपासना का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है.
नंदीपुर शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के सैंथिया स्टेशन के समीप नंदीपुर गांव में यह शक्तिपीठ स्थित है. यहां माता का गले का हार गिरा था. यहां की शक्ति नंदिनी और भैरव नंदिकेश्वर कहे जाते हैं.
रत्नावली शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में रत्नाकर नदी के तट पर यह शक्तिपीठ स्थित है. यहां माता का दाहिना कंधा गिरा था. देवी कुमारी रूप में पूजी जाती हैं और शिव भैरव कहलाते हैं. इस शक्तिपीठ को रत्नावली या देवी कुमारी पीठ भी कहा जाता है.
नलहाटी शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के नलहाटी स्टेशन के पास यह पीठ स्थित है. यहां माता के पैर की हड्डी गिरी थी. यहां देवी कालिका रूप में पूजी जाती हैं और भैरव योगेश कहलाते हैं.
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पीआईएम/एबीएम
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