New Delhi, 6 अक्टूबर . स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने दिल्ली के विज्ञान भवन में गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन निषेध) अधिनियम, 1994 को सुदृढ़ बनाने पर एक राष्ट्रीय संवेदीकरण बैठक आयोजित की. इस बैठक में पीसी एवं पीएनडीटी अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन को सुदृढ़ बनाने, उभरती चुनौतियों का समाधान करने, अनुपालन सुनिश्चित करने और अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समन्वित प्रयासों पर जोर दिया गया.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की अपर सचिव एवं मिशन निदेशक (एनएचएम) आराधना Patnaयक ने बैठक के दौरान कहा कि पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम केवल एक कानूनी साधन ही नहीं, बल्कि लिंग-भेदभावपूर्ण लिंग चयन के विरुद्ध एक नैतिक और सामाजिक सुरक्षा उपाय भी है. महिलाओं की प्रतिरक्षा प्रणाली जन्म से ही अधिक मज़बूत होती है, इसलिए लड़कियों का जीवित रहना स्वाभाविक रूप से लड़कों की तुलना में अधिक संभव है.
उन्होंने कहा कि लिंग-भेदभावपूर्ण लिंग चयन के विरुद्ध कार्रवाई करने के बजाय, हमें पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम के रोकथाम संबंधी पहलू पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि समाज या व्यक्ति विशेष का ध्यान लड़के या लड़की की बजाय एक स्वस्थ बच्चे पर होना चाहिए.
गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि देश में जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी) में सकारात्मक सुधार दर्ज किया गया है. नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) की वर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, एसआरबी में 18 अंकों की वृद्धि हुई है. वर्ष 2016-18 के दौरान प्रति 1,000 पुरुषों पर 819 महिलाओं से बढ़कर वर्ष 2021-23 में प्रति 1,000 पुरुषों पर 917 महिलाओं तक पहुंच गया है. वर्ष 2021-23 की अवधि के लिए जन्म के समय राष्ट्रीय लिंगानुपात का प्रति 1,000 पुरुषों पर 917 महिलाएं होना, पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम और संबंधित हस्तक्षेपों के सुदृढ़ कार्यान्वयन के माध्यम से हुई प्रगति को दर्शाता है.
बैठक के उद्घाटन सत्र में मंत्रालय के 360 डिग्री संचार अभियान के हिस्से के रूप में विकसित ‘जब लड़का लड़की है बराबर, तो पूछें क्यों?’ विषय पर आधारित टीवीसी वीडियो, रेडियो जिंगल और सूचनात्मक पोस्टर आदि आईईसी सामग्री का विमोचन किया गया. राष्ट्रीय संवेदीकरण बैठक, डब्ल्यूपीसी संख्या 341 (2008) के मामले में देश के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों, ऑनलाइन मध्यस्थों और डिजिटल मंचों की भूमिका और पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम की धारा 22 (जो स्पष्ट रूप से पूर्व-गर्भाधान और प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण से संबंधित विज्ञापनों और प्रचार को प्रतिबंधित करती है) सहित डिजिटल इकोसिस्टम में निगरानी अनुपालन पर केंद्रित थी. इस बैठक में अधिनियम के ऑनलाइन उल्लंघनों और नई प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग का उल्लेख करते हुए डिजिटल मध्यस्थों के साथ सक्रिय जुड़ाव की तत्काल आवश्यकता और अधिनियम की भावना को बनाए रखने के लिए मजबूत अनुपालन तंत्र को सुदृढ़ किया गया.
इस अवसर पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य (आरसीएच) की संयुक्त सचिव मीरा श्रीवास्तव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में पीसी एवं पीएनडीटी की अतिरिक्त आयुक्त डॉ. इंदु ग्रेवाल, केंद्रीय मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी, 36 राज्य Governmentों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि, प्रवर्तन एजेंसियां, डिजिटल मध्यस्थ भी उपस्थित थे.
बैठक में तेलंगाना, Haryana, तमिलनाडु, Himachal Pradesh, Rajasthan , छत्तीसगढ़, Madhya Pradesh और Gujarat राज्य Governmentों के प्रतिनिधियों ने प्रवर्तन में अपनी बेहतर विधियों और चुनौतियों को साझा किया, जबकि ऑनलाइन मंचों से जुड़े प्रतिनिधियों ने धारा 22 के अनुपालन को मजबूत करने पर आयोजित खुली चर्चा में भाग लिया.
–
पीएसके
You may also like
मध्य प्रदेश उद्योग जगत के सहयोग से बनेगा देश का अव्वल राज्य: मुख्यमंत्री डॉ. यादव
दीपावली बोनस नवरात्रि के प्रारंभ से ही लोगों को मिलने लगा : मनीष शुक्ला
सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी: बॉक्स ऑफिस पर भारी गिरावट
वन विहार में बच्चों ने वन्यजीवों तथा प्रकृति से जुड़े मॉडल बनाकर पर्यटकों को किया जागरूक
मप्रः मंत्री सारंग ने की सहकारिता विभाग की समीक्षा