तमिलनाडु, 19 सितंबर . पितृ श्रद्धा और तर्पण की परंपरा भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है. दक्षिण India में इसके लिए तमिलनाडु का तिलतर्पणपुरी सबसे पवित्र स्थलों में गिना जाता है. मान्यता है कि यहीं पर भगवान राम ने अपने पितरों की शांति के लिए पूजा-अर्चना की थी.
इस स्थान की विशेषता यह भी है कि यहां स्थित आदि विनायक मंदिर देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान गणेश का स्वरूप मानव मुख वाला है, गजमुख नहीं. इस अद्वितीय स्वरूप को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु यहां प्रतिवर्ष आते हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान राम अपने पिता दशरथ का श्राद्ध कर्म कर रहे थे, तो उनके द्वारा बनाए गए चावल के पिंड बार-बार कीड़ों में बदल जाते थे. इस विचित्र स्थिति से परेशान होकर राम ने भगवान शिव से प्रार्थना की. तब भोलेनाथ ने उन्हें तिलतर्पण पुरी स्थित आदि विनायक मंदिर में पूजा करने का निर्देश दिया.
राम ने यहां आकर अनुष्ठान किया, जिसके बाद वे चार पिंड चार शिवलिंग में परिवर्तित हो गए. आज ये शिवलिंग पास ही स्थित मुक्तेश्वर मंदिर में विराजमान हैं. यही कारण है कि यहां आज भी मंदिर के भीतर ही पितृ शांति का अनुष्ठान होता है, जो सामान्यतः नदी तटों पर किया जाता है.
इस स्थान को तिल और तर्पण से जोड़कर तिलतर्पण पुरी नाम दिया गया है. यहां पितृ दोष निवारण, आत्म पूजा, अन्नदान और विशेषकर अमावस्या पर पिंड दान का अत्यधिक महत्व है.
श्रद्धालु मानते हैं कि यहां पितृ कर्म करने से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है और परिवार पर से पितृ दोष का प्रभाव समाप्त होता है.
मंदिर परिसर में नंदीवनम (गोशाला) और भगवान शिव के चरण चिन्ह भी स्थित हैं, जो इसकी पवित्रता को और बढ़ाते हैं.
यह पवित्र स्थल तमिलनाडु के तिरुवरुर जिले के कुटनूर से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यही नहीं, कुटनूर में देवी सरस्वती का एकमात्र मंदिर भी है, जिसे कवि ओट्टकुठार ने बनवाया था. श्रद्धालु तिलतर्पण पुरी आने पर सरस्वती मंदिर के दर्शन अवश्य करते हैं.
मंदिर के संरक्षक लक्ष्मण चेट्टियार बताते हैं कि हजारों भक्त यहां गणेश, सरस्वती और शिव के दर्शन के लिए आते हैं. नर मुख गणेश का यह मंदिर सांतवीं सदी का माना जाता है और मान्यता है कि माता पार्वती ने अपने मैल से गणेश का यह रूप बनाया था. इसे गणेश का पहला स्वरूप भी माना जाता है.
पितृ कर्म के लिए दक्षिण India में एक और प्रसिद्ध स्थल है कांचीपुरम, जिसे दक्षिण का काशी कहा जाता है. यहां विशेषकर नेनमेलि श्रद्धा संरक्षण नारायणन मंदिर में अमावस्या और एकादशी के दिन श्राद्ध कर्म का आयोजन होता है. यहां किया गया तर्पण गयाजी के श्राद्ध के समान महत्व रखता है.
–
पीआईएम/एबीएम
You may also like
Video: प्रेमी के साथ भाग रही थी पत्नी, भागते समय पति ने रंगे हाथों पकड़ा ! फिर कर दी जमकर पिटाई, वीडियो वायरल
Vaastu Shastra: इंटरव्यू पर जाने से पहले अपनाएं ये वास्तु टिप्स, जरूर मिलेगी सफलता
Google ने चुने 20 AI स्टार्टअप्स, होगा भारत में नवाचार की नई लहर
गुजरात के अमरेली में पीएम मोदी के जन्मदिन पर सेवा पखवाड़ा के तहत हेल्थ कैंप आयोजित
Jaipur Jail Break: कैदियों ने रबड़ के पाइप से तोड़ी जयपुर सेंट्रल जेल की थ्री-लेयर सिक्योरिटी, रातोंरात हुई फरारी