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मोक्ष नगरी का अद्भुत कुंड, जहां भटकती आत्माओं को मिलती है मुक्ति, चुकाया जाता है ऋण

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वाराणसी, 19 अगस्त . विश्व के नाथ की नगरी त्रिशूल पर बसी है. यहां निर्धन हो या धनवान, सहाय हो या असहाय, मानसिक रूप से विक्षिप्त या दुनिया के हर कोने से त्यागा हुआ, मोक्षनगरी में सभी को न केवल आश्रय बल्कि मोक्ष भी मिलता है. काशी में एक से बढ़कर एक अद्भुत मंदिर और धार्मिक स्थल हैं, जिनकी अपनी एक अलग ही कथा है. इसी कड़ी में शामिल है पिशाच मोचन कुंड, जहां भटकती आत्माओं को मुक्ति मिलती है और उनका ऋण भी चुकाया जाता है.

पिशाच मोचन कुंड में किए गए अनुष्ठान न केवल आत्माओं को शांति देते हैं, बल्कि परिवार को पितृ दोष से मुक्त करते हैं.

गीता में श्रीकृष्ण बताते हैं कि आत्मा अजर है, अमर है. लेकिन अकाल मृत्यु होने वाले इंसान की आत्मा वर्षों भटकती रहती है. बाबा श्री काशी विश्वनाथ की नगरी में भटकती आत्मा को भी मोक्ष मिलता है. गरुण पुराण के काशी खंड में पिशाच मोचन कुंड का उल्लेख मिलता है, जहां पितरों को मुक्ति मिलती है. यहां पर आत्माओं का उधार भी चुकाया जाता है.

23 अगस्त को पड़ने वाली कुशी अमावस्या, मघा नक्षत्र और परिघ योग में पितृ कार्य, तर्पण, पिंडदान और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए विशेष महत्व रखती है. इसके अलावा, पितृपक्ष, अमावस्या पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है. इस दिन काशी के पिशाच मोचन कुंड पर हजारों श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध और तर्पण करने पहुंचते हैं.

पिशाच मोचन कुंड का उल्लेख गरुड़ पुराण और स्कंद पुराण के काशी खंड में मिलता है. यह कुंड गंगा के धरती पर आने से पहले से ही विमलोदक सरोवर के नाम से विख्यात था. मान्यता है कि यह देश का एकमात्र स्थान है, जहां अकाल मृत्यु और अतृप्त आत्माओं की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है.

काशी के ज्योतिषाचार्य पं. रत्नेश त्रिपाठी बताते हैं, “त्रिपिंडी श्राद्ध में तीन पीढ़ियों के पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है. इसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्राण प्रतिष्ठा के साथ पूजन होता है. यह अनुष्ठान असंतुष्ट आत्माओं को शांति देता है, जो परिवार के सुख में बाधा बन सकती हैं. किसी की अकाल मृत्यु होने पर आत्मा भटकती है. पिशाच मोचन कुंड में त्रिपिंडी श्राद्ध और तर्पण से ऐसी आत्माओं को मोक्ष मिलता है. यह कुंड काशी का विमल तीर्थ है. यहां तर्पण और दान से पितृ दोष से मुक्ति और सुख-समृद्धि मिलती है.”

कुंड के पास स्थित प्राचीन पीपल का वृक्ष इस तीर्थ की विशेषता है. यहां भटकती आत्माओं को प्रतीकात्मक रूप से पीपल पर बैठाया जाता है और सिक्का बांधकर उनका उधार चुकाया जाता है.

मंदिर और कुंड से जुड़ी धार्मिक कथाओं के अनुसार, कुंड का नाम पिशाच नामक व्यक्ति से पड़ा, जिसने पाप किए पर यहीं मोक्ष प्राप्त किया. कुशी अमावस्या पर कुश उखाड़ने की परंपरा भी महत्वपूर्ण है. कुश को शुद्ध माना जाता है और इसे तर्पण और पिंडदान में इस्तेमाल किया जाता है. पितृपक्ष में यहां दुनिया भर से लोग आते हैं. वहीं, कुशी अमावस्या पर पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य और पितृ कार्य विशेष फलदायी माने जाते हैं.

एमटी/केआर

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