New Delhi, 11 सितंबर . हिंदी साहित्य के इतिहास में कुछ ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं से समाज पर अमिट छाप छोड़ी. इसी कड़ी में चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है. हिंदी साहित्य के वो एक ऐसे नक्षत्र हैं, जिनकी रचनाओं ने समाज को आईना दिखाया.
‘द्विवेदी युग’ के इस साहित्य शिल्पी ने अपने संक्षिप्त जीवनकाल में ऐसी अमर कृतियां रचीं, जिन्होंने हिंदी कथा साहित्य को नवीन दिशा प्रदान की. उनकी कहानी ‘उसने कहा था’ न केवल एक रचना है, अपितु प्रेम, त्याग और मानवीय संवेदनाओं का एक सजीव चित्र, जो समय की सीमाओं को लांघकर आज भी प्रासंगिक बना हुआ है.
7 जुलाई 1883 को jaipur में जन्मे गुलेरी के मूल हिमाचल के कांगड़ा जिले के गुलेर गांव से जुड़े थे. उनके पिता पंडित शिवराम शास्त्री ज्योतिष के प्रकांड विद्वान थे, जिन्हें jaipur दरबार में सम्मान प्राप्त था. इस विद्वतापूर्ण वातावरण में गुलेरी का बालमन संस्कृत, वेद और पुराणों की सुगंध से सराबोर हुआ.
मात्र दस वर्ष की आयु में संस्कृत में उनका ओजस्वी भाषण विद्वानों के लिए आश्चर्य का विषय बना. jaipur के महाराजा कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्णता प्राप्त की. संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच, लैटिन, मराठी और बंगाली जैसी भाषाओं में उनकी पकड़ ने उन्हें साहित्य का सच्चा साधक बनाया.
गुलेरी की लेखनी से हिंदी साहित्य को कहानियां, निबंध, व्यंग्य और समीक्षाएं प्राप्त हुईं. उनकी कृति ‘उसने कहा था’ को हिंदी की प्रथम आधुनिक कहानी का गौरव प्राप्त है. यह रचना प्रेम और बलिदान की ऐसी गाथा बुनती है, जो पाठक के अंतर्मन को झंकृत कर देती है.
‘सुखमय जीवन’ और ‘बुद्धू का कांटा’ जैसी रचनाएं उनकी कथाशैली और भाषा के महत्व को उजागर करती हैं. उनकी खड़ी बोली में तत्सम शब्दों का वैभव और लोकभाषा की मधुरता का समन्वय देखने को मिलता है, जो पाठक से आत्मीय संवाद स्थापित करता है.
कहानीकार के साथ-साथ गुलेरी एक कुशल निबन्धकार, समीक्षक और पत्रकार भी थे. ‘समालोचक’ पत्रिका के संपादन और नागरी प्रचारिणी सभा के कार्यों में उनका योगदान अविस्मरणीय है.
उनके निबन्ध इतिहास, दर्शन, पुरातत्त्व और धर्म जैसे गंभीर विषयों पर उनकी गहन चिंतनशीलता को प्रकट करते हैं.
jaipur की जंतर-मंतर वेधशाला के संरक्षण में भी उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही. दुर्भाग्यवश, 12 सितंबर 1922 को पीलिया ने मात्र 39 वर्ष की आयु में उन्हें हमसे छीन लिया, किन्तु उनकी रचनाएं और विचार साहित्य के सागर में मोती की भांति चमकते हैं.
–
एकेएस/डीकेपी
You may also like
सोने की क़ीमतें क्यों बढ़ रही हैं और क्या ये सोना ख़रीदने का सही समय है?
SAI Vacancy 2025: खाना बनाना आता है तो आपके लिए निकली स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में नौकरी! महीने की सैलरी 50000
गोबरडांगा में रेल लाइन के बीच मिला युवक का रक्तरंजित शव
कलेक्टर्स जन कल्याणकारी योजना और विकास कार्यों के प्रचार में करें सहयोग : मुख्य सचिव जैन
महिला विश्व कप : पाकिस्तान ने टॉस जीतकर चुनी गेंदबाजी, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ प्लेइंग इलेवन में बदलाव