गोरखपुर, 3 सितंबर . गोरक्षपीठ के पूर्व पीठाधीश्वर और Chief Minister योगी आदित्यनाथ के गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ संत परंपरा के ऐसे ध्वजावाहक थे, जिन्होंने सामाजिक समरसता और राम मंदिर आंदोलन दोनों को जीवन का ध्येय बनाया. उन्होंने उस दौर में दलित के घर भोजन कर सामाजिक जड़ताओं को तोड़ा, जब अस्पृश्यता समाज में गहराई तक फैली थी.
जानकारी के अनुसार, फरवरी 1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में हुए सामूहिक धर्मांतरण से महंत अवेद्यनाथ बेहद व्यथित हुए. उत्तर भारत में ऐसी स्थिति न बने, इसके लिए उन्होंने काशी के डोमराजा के घर संतों के साथ भोजन किया और सामाजिक समरसता का संदेश दिया. यही उनके जीवन का मिशन बन गया. उनकी इस परंपरा को आज भी Chief Minister योगी आदित्यनाथ आगे बढ़ा रहे हैं. मीनाक्षीपुरम की घटना ही उनके सक्रिय राजनीति में आने की वजह बनी.
सितंबर में उनकी पुण्यतिथि है, इसीलिए हर सितंबर गोरक्षपीठ के लिए खास होता है. सितंबर में ही ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के गुरु और योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि इसे और खास बना देती है. इस अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में साप्ताहिक पुण्यतिथि समारोह का आयोजन होता है. इस साल ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 56वीं और राष्ट्रसंत महंत अवेद्यनाथ की 11वीं पुण्यतिथि है. इसके उपलक्ष्य में आयोजनों का सिलसिला 4 से 11 सितंबर तक चलेगा. श्रद्धांजलि समारोह के उद्घाटन और समापन के अवसर पर Chief Minister एवं गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ विशेष रूप से मौजूद रहेंगे.
यह आयोजन खुद में भारतीय परंपरा के गुरु और शिष्य के बेमिसाल रिश्ते की मिसाल भी है. महंत अवेद्यनाथ का ब्रह्मलीन होना एक सामान्य घटना नहीं थी. पूरे संदर्भ को देखें तो यह एक संत की इच्छा मृत्यु जैसी थी. अपने गुरुदेव के ब्रह्मलीन होने के बाद एक कार्यक्रम में सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसकी चर्चा भी की थी. उनके मुताबिक, ”मेरे गुरुदेव की इच्छा अपने गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर मंदिर में ही ब्रह्मलीन होने की थी और हुआ भी यही.”
गोरखनाथ मंदिर में करीब छह दशक से हर साल सितंबर में ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि सप्ताह समारोह का आयोजन होता रहा है. 2014 में इसी कार्यक्रम के समापन समारोह के बाद उसी दिन फ्लाइट से योगी आदित्यनाथ शाम को दिल्ली और फिर गुरुग्राम स्थित मेदांता में इलाज के लिए भर्ती अपने गुरुदेव अवेद्यनाथ का हालचाल लेने गए. वहां उनके कान में पुण्यतिथि के कार्यक्रम के समापन के बाबत जानकारी दी. वह कुछ देर वहां रहे. चिकित्सकों से बात की. सेहत रोज जैसी ही स्थिर थी. लिहाजा, योगी अपने दिल्ली स्थित सांसद के रूप में मिले सरकारी आवास पर लौट आए.
रात करीब 10 बजे उनके पास मेदांता से फोन आया कि उनके गुरुदेव की सेहत बिगड़ गई है. चिकित्सकों के कहने के बावजूद वे मानने को तैयार नहीं थे. वहीं, महामृत्युंजय का जाप शुरू किया. करीब आधे घंटे बाद वेंटिलेटर पर जीवन के लक्षण लौट आए. योगी को अहसास हो गया कि गुरुदेव की विदाई का समय आ गया है. उन्होंने धीरे से उनके कान में कहा, ‘कल आपको गोरखपुर ले चलूंगा.’ यह सुनकर उनकी आंखों के कोर पर आंसू ढलक आए. योगी ने उसे साफ किया और गुरुदेव को गोरखपुर लाने की तैयारी में लग गए. दूसरे दिन एयर एंबुलेंस से गोरखपुर लाने के बाद उनके कान में कहा, ‘आप मंदिर में आ चुके हैं.’ बड़े महाराज के चेहरे पर तसल्ली का भाव आया. इसके करीब घंटे भर के भीतर उनका शरीर शांत हो गया.
10 साल पहले (12 सितंबर 2014) गोरक्षपीठ के महंत अवेद्यनाथ का ब्रह्मलीन होना सामान्य नहीं, बल्कि इच्छा मृत्यु जैसी घटना थी. चिकित्सकों के मुताबिक, उनकी मौत तो 2001 में तभी हो जानी चाहिए थी, जब वे पैंक्रियाज के कैंसर से पीड़ित थे. उम्र और ऑपरेशन के बाद ऐसे मामलों में लोगों के बचने की संभावना सिर्फ 5 फीसद होती है. इसी का हवाला देकर उस समय दिल्ली के एक नामी डॉक्टर ने ऑपरेशन करने से मना कर दिया था. बाद में ऑपरेशन के लिए तैयार हुए तो यह भी कहा कि ऑपरेशन सफल रहा तो भी बची जिंदगी मुश्किल से तीन वर्ष की होगी. बड़े महाराजजी उसके बाद 14 वर्ष तक जीवित रहे.
ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर अक्सर पीठ के उत्तराधिकारी (अब पीठाधीश्वर और Chief Minister ) योगी आदित्यनाथ से फोन पर बड़े महाराज का हाल-चाल पूछते थे. यह बताने पर कि उनका स्वास्थ्य बेहतर है, हैरत भी जताते थे. महंत अवेद्यनाथ सितंबर 12, 2014 में ब्रह्मलीन हुए. उस समय अपने शोक संदेश में राम मंदिर आंदोलन के शिखरतम लोगों में शुमार विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक स्वर्गीय अशोक सिंघल ने कहा था, “वह श्री रामजन्म भूमि के प्राण थे. सबको साथ लेकर चलने की उनमें विलक्षण प्रतिभा थी. उसी के परिणामस्वरूप श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के साथ सभी संप्रदायों और दार्शनिक परंपराओं के संत जुड़ते चले गए.”
महंत अवेद्यनाथ 1984 में शुरू हुई राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार थे. वे श्री राम जन्मभूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष व राम जन्मभूमि न्यास समिति के आजीवन सदस्य रहे. महंत अवेद्यनाथ का जन्म मई 1921 को गढ़वाल (उत्तराखंड) जिले के कांडी गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम राय सिंह विष्ट था. अपने पिता के वे इकलौते पुत्र थे. उनके बचपन का नाम कृपाल सिंह विष्ट था. नाथ परंपरा में दीक्षित होने के बाद वे अवेद्यनाथ हो गए.
ऋषिकेश में संन्यासियों के सत्संग से हिंदू धर्म, दर्शन, संस्कृत और संस्कृति के प्रति रुचि जगी तो शांति की तलाश में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और कैलाश मानसरोवर की यात्रा की. वापसी में हैजा होने पर साथी उनको मृत समझ आगे बढ़ गए. ठीक हुए तो मन और विरक्त हो उठा. इसके बाद नाथ पंथ के जानकार योगी निवृत्तिनाथ, अक्षयकुमार बनर्जी और गोरक्षपीठ के सिद्ध महंत रहे गंभीरनाथ के शिष्य योगी शांतिनाथ से भेंट (1940) हुई. निवृत्तनाथ द्वारा ही उनकी मुलाकात तबके गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ से हुई. पहली मुलाकात में उन्होंने शिष्य बनने के प्रति अनिच्छा जताई. कुछ दिन करांची में एक सेठ के यहां रहे. सेठ की उपेक्षा के बाद शांतिनाथ की सलाह पर वह गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ में आकर नाथपंथ में दीक्षित हुए.
महंत अवेद्यनाथ ने वाराणसी व हरिद्वार में संस्कृत का अध्ययन किया. महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष व मासिक पत्रिका ‘योगवाणी’ के संपादक भी रहे. उन्होंने चार बार (1969, 1989, 1991 और 1996) गोरखपुर सदर संसदीय सीट से यहां के लोगों का प्रतिनिधित्व किया. अंतिम Lok Sabha चुनाव को छोड़ उन्होंने सभी चुनाव हिंदू महासभा के बैनर तले लड़ा. Lok Sabha के अलावा उन्होंने पांच बार (1962, 1967, 1969, 1974 और 1977) में मानीराम विधानसभा का भी प्रतिनिधित्व किया था.
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विकेटी/एबीएम
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