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महिलाओं में बढ़ रहे आर्थराइटिस के मामले, जानें बचाव के लिए जीवनशैली में क्या लाएं जरूरी बदलाव

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New Delhi, 14 अगस्त . आजकल जोड़ों में दर्द की समस्या सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही, बल्कि युवाओं और खासकर महिलाओं में भी यह परेशानी तेजी से बढ़ रही है. पहले जहां गठिया यानी आर्थराइटिस को बढ़ती उम्र की निशानी माना जाता था, वहीं अब यह कम उम्र में भी लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है. सुबह उठते ही जोड़ों में अकड़न, घुटनों में सीढ़ियां चढ़ते समय दर्द या उंगलियों में सूजन जैसे लक्षण अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं, जो आर्थराइटिस के शुरुआती संकेत हो सकते हैं. समय रहते इस पर ध्यान न दिया जाए तो यह समस्या गंभीर रूप ले सकती है.

वैज्ञानिक शोध में साबित हुआ है कि महिलाओं में आर्थराइटिस का खतरा पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा होता है. इसके पीछे सिर्फ उम्र या हड्डियों की कमजोरी ही नहीं, बल्कि हार्मोनल बदलाव, इम्यून सिस्टम का असंतुलन और जीवनशैली में आए बदलाव मुख्य कारण होते हैं.

महिलाओं में एक खास हार्मोन, एस्ट्रोजन, हड्डियों और जोड़ों को मजबूत बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है. लेकिन मेनोपॉज के बाद जब इस हार्मोन का स्तर गिरता है, तो हड्डियां और जोड़ें कमजोर पड़ने लगते हैं. यही कारण है कि 50 की उम्र के बाद महिलाओं में जोड़ों की समस्याएं तेजी से बढ़ती हैं.

इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान बढ़ा हुआ वजन और प्रसव के बाद शरीर में हुए बदलाव भी महिलाओं के जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव डालते हैं. खासतौर पर कूल्हों और घुटनों पर असर पड़ता है, जिससे आगे चलकर ऑस्टियोआर्थराइटिस का खतरा बढ़ जाता है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, रुमेटाइड आर्थराइटिस जैसी ऑटोइम्यून बीमारियां महिलाओं में पुरुषों की तुलना में 2 से 3 गुना ज्यादा देखी जाती हैं. यह समस्या शरीर के इम्यून सिस्टम से जुड़ी होती है, जिसमें शरीर अपने ही जोड़ों को नुकसान पहुंचाने लगता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, 40 की उम्र पार करने के बाद 60 प्रतिशत महिलाओं में घुटनों से जुड़ी समस्याएं पाई जाती हैं. भारत में 70 प्रतिशत महिलाएं विटामिन डी की कमी से जूझ रही हैं, जो हड्डियों को कमजोर बनाकर आर्थराइटिस का खतरा और बढ़ा देती है. लेकिन अगर कुछ जरूरी सावधानियां बरती जाएं, तो इस बीमारी से काफी हद तक बचाव किया जा सकता है.

आर्थराइटिस से बचने के लिए सबसे जरूरी है एक हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाना. अपने आहार में पौष्टिक चीजें शामिल करना जैसे दूध, दही, पनीर, और हरी सब्जियां, जो कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर हैं. ओमेगा-3 फैटी एसिड वाले खाद्य पदार्थ जैसे मछली, अखरोट और अलसी के बीज भी इसमें फायदेमंद हैं.

इसके अलावा हल्दी, लहसुन और अदरक जैसी चीजें सूजन को कम करने में मदद करती हैं.

नियमित रूप से व्यायाम करें, जैसे योग, स्ट्रेचिंग, वॉकिंग या साइक्लिंग. ये जोड़ों को लचीला बनाए रखने में मदद करते हैं. अगर वजन ज्यादा है तो उसे कम करने की कोशिश करें, क्योंकि अधिक वजन जोड़ों पर दबाव बढ़ाता है. मेनोपॉज के बाद हड्डियों की जांच करवाना और डॉक्टर की सलाह लेना भी जरूरी है, ताकि समय रहते जरूरी कदम उठाए जा सकें.

पीके/जीकेटी

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