जयपुर। राजस्थान सरकार की महत्वाकांक्षी योजना राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (RGHS) को लेकर एक बार फिर विवाद गहरा गया है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने उन 50 निजी अस्पतालों को नोटिस जारी किए हैं, जो आरजीएचएस योजना के अंतर्गत यूरोलॉजी इलाज में सहभागिता नहीं दिखा रहे हैं। इन अस्पतालों पर कम पैकेज बुकिंग और इलाज रोकने का आरोप है। विभाग ने चेतावनी दी है कि यदि संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो उन्हें योजना से बाहर कर दिया जाएगा।
यह कार्रवाई हाल ही में समाचार पत्रों में छपी एक रिपोर्ट के बाद की गई है जिसमें यह उजागर किया गया कि 37 दिनों से यूरोलॉजी सेवाएं ठप हैं और बुजुर्ग मरीज इलाज के लिए भटक रहे हैं, जबकि जिम्मेदार अधिकारी मौन हैं। रिपोर्ट सामने आने के तुरंत बाद विभाग सक्रिय हुआ और कार्रवाई की शुरुआत की।
गौरतलब है कि रॉयल यूरोलॉजी सोसाइटी और जयपुर यूरोलॉजी सोसाइटी के आह्वान पर 16 अगस्त से ही आरजीएचएस योजना के अंतर्गत यूरोलॉजी ओपीडी, आईपीडी और सर्जरी सेवाएं बंद हैं। इस सामूहिक विरोध की वजह से हज़ारों मरीजों का इलाज प्रभावित हुआ है।
विभाग की प्रमुख शासन सचिव गायत्री राठौड़ ने साफ किया कि सरकार समय-समय पर पैकेज दरों और भुगतान संबंधी मुद्दों पर निर्णय ले चुकी है, और अब अगर कोई अस्पताल बिना उचित कारण इलाज देने से मना करता है, तो नियमानुसार कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
राजस्थान स्टेट हेल्थ एश्योरेंस एजेंसी (RSHA) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हरजीलाल अटल ने बताया कि कुछ निजी अस्पताल अभी भी यूरोलॉजी इलाज कर रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पैकेज दरें इलाज रोकने का वाजिब कारण नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आरजीएचएस में दिए जाने वाले यूरोलॉजी पैकेज CGHS दरों के अनुसार हैं, और ऐसे में पैकेज दरों का बहाना बनाकर इलाज रोकना अनुचित और गैर-जिम्मेदाराना है।
हरजीलाल अटल ने यह भी कहा कि अगर किसी अस्पताल या डॉक्टर को योजना से जुड़ी किसी शंका या समस्या पर बात करनी है, तो वे सरकारी कार्यालय में आकर संवाद कर सकते हैं, लेकिन सीधे तौर पर लाभार्थी को इलाज से इनकार करना योजना की भावना के खिलाफ है।
अस्पतालों की आपत्ति: "दरों में भारी अंतर"
वहीं दूसरी ओर निजी अस्पतालों ने भी सरकार पर दरों को लेकर दोहरी नीति अपनाने का आरोप लगाया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि पर्क्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी जैसे यूरोलॉजिकल ऑपरेशन के लिए RGHS में केवल ₹20,700 दिए जाते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में ₹56,300, हरियाणा में ₹65,000 और मध्य प्रदेश में ₹50,000 तक दिए जाते हैं। इसी तरह लेप्रोस्कोपिक पायलोप्लास्टी के लिए RGHS में ₹21,850 निर्धारित हैं, जबकि अन्य राज्यों में यह राशि ₹50,000 से ₹90,000 तक है।
निजी अस्पतालों का कहना है कि इस अन्यायपूर्ण तुलना और कम दरों के चलते इलाज करना घाटे का सौदा बन गया है। जब तक सरकार दरों में उचित संशोधन नहीं करती, तब तक यूरोलॉजी सेवाएं बहाल करना संभव नहीं होगा।
इस पूरे विवाद के बीच सबसे ज्यादा नुकसान मरीजों को हो रहा है, खासतौर पर उन बुजुर्गों को जो अपने इलाज के लिए सरकारी योजनाओं पर निर्भर हैं। आने वाले दिनों में सरकार और निजी अस्पतालों के बीच बातचीत होती है या टकराव और बढ़ता है, यह देखना बाकी है। लेकिन फिलहाल चिकित्सा विभाग ने सख्त रवैया अपनाते हुए यह साफ कर दिया है कि इलाज से इनकार किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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