नेपाल की सियासत इन दिनों बड़े बदलावों से गुजर रही है। दो दिनों तक चले हिंसक प्रदर्शनों और केपी शर्मा ओली सरकार के गिरने के बाद सत्ता का संतुलन सेना के हाथों में आ गया है। अब सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल ने देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकीं सुशीला कार्की को अंतरिम कार्यकारी प्रमुख की जिम्मेदारी लेने के लिए राज़ी कर लिया है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में नेपाल में बांग्लादेश मॉडल की तर्ज़ पर शासन प्रणाली लागू हो सकती है।
देर रात हुई निर्णायक मुलाकात
सूत्रों के मुताबिक, मंगलवार की रात जनरल सिग्देल ने लगातार कई दौर की बातचीत GenZ आंदोलन के नेताओं और अन्य प्रमुख हस्तियों से की। फिर आधी रात करीब 2 बजे वे सुशीला कार्की के धापासी स्थित घर पहुंचे और उनसे आग्रह किया कि वे संकट की इस घड़ी में देश की कमान संभालें। शुरुआती हिचकिचाहट के बाद लंबी बातचीत और विचार-विमर्श के लगभग 15 घंटे बाद कार्की ने सहमति दे दी। दिलचस्प यह है कि GenZ समूहों ने भी उन्हें खुलकर समर्थन दिया।
बालेन्द्र शाह का समर्थन
काठमांडू के मेयर बालेन्द्र शाह का नाम भी अंतरिम प्रमुख के लिए चर्चा में था, लेकिन उन्होंने खुद आगे आकर कार्की के पक्ष में बयान दिया। शाह ने कहा कि यह जिम्मेदारी निभाने के लिए कार्की सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं। उनके समर्थन के बाद तस्वीर लगभग साफ हो गई है कि नेपाल का अगला नेतृत्व कार्की के हाथों में होगा।
सेना की प्राथमिकताएँ
जनरल सिग्देल ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि सेना की पहली कोशिश कानून-व्यवस्था को बहाल करने और हिंसा व लूटपाट पर रोक लगाने की होगी। साथ ही, सभी राजनीतिक दलों और युवा संगठनों को एक साझा मंच पर लाकर नया राजनीतिक रोडमैप तय किया जाएगा। सेना चाहती है कि गुरुवार या शुक्रवार तक एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम पर सहमति बनाकर अंतरिम सरकार का गठन कर लिया जाए।
पहली महिला मुख्य न्यायाधीश से अंतरिम प्रमुख तक
सुशीला कार्की का नाम नेपाल के न्यायिक इतिहास में पहले से दर्ज है। जून 2017 में वे बतौर पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रिटायर हुई थीं। उनके कार्यकाल के दौरान संसद में विपक्षी दलों ने उन पर महाभियोग प्रस्ताव भी लाया था, लेकिन उनके रिटायर होते ही यह प्रस्ताव वापस ले लिया गया। अब वे एक नई संवैधानिक प्रक्रिया की अगुवाई करने वाली हैं, क्योंकि मौजूदा संविधान, जिसे करीब 10 साल पहले लागू किया गया था, आज की परिस्थितियों में लगभग अप्रासंगिक माना जा रहा है।
नेपाल सेना और राजनीति का रिश्ता
गौरतलब है कि मार्च 2025 में जनरल सिग्देल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री ओली को चेतावनी दी थी कि वे पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह को गिरफ्तार या नजरबंद न करें। 2006 में जब नेपाल धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बना, तब रॉयल नेपाल आर्मी का नाम बदलकर नेपाल आर्मी कर दिया गया था और सेना ने हमेशा खुद को राजनीति से अलग रखने का दावा किया। हालांकि, 2009 में प्रधानमंत्री प्रचंड द्वारा सेना प्रमुख रूकमंगद कटवाल को हटाने की कोशिश असफल रही थी और इसके चलते प्रचंड को इस्तीफा देना पड़ा था।
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