जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना का एक्शन मोड स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को पूरी स्वतंत्रता देते हुए किसी भी निर्णय को लेने का अधिकार प्रदान किया है। इस बीच शिवसेना (यूबीटी) ने अपने मुखपत्र सामना में प्रधानमंत्री के इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। सामना में यह सवाल किया गया कि सेना को तो छूट दे दी गई, लेकिन पाकिस्तान को घर में घुसकर मारने का निर्णय स्पष्ट नहीं किया गया है।
सामना की संपादकीय में लिखा गया कि पहलगाम हमले का बदला लेने का अधिकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों सेनाओं को सौंपा है और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की जिम्मेदारी भी सेना को दी गई है। इसके साथ ही सैन्य बलों को यह अधिकार भी दिया गया है कि वे समय और लक्ष्य का निर्धारण स्वयं करें। हालांकि, सामना ने यह सवाल उठाया कि पाकिस्तान के मामले में क्या कदम उठाना है, इसका निर्णय प्रधानमंत्री मोदी राजनीतिक इच्छाशक्ति के आधार पर स्वयं भी ले सकते थे। अंततः प्रधानमंत्री मोदी ही हैं, जो हमेशा पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात करते आए हैं।
आगे सामना में लिखा गया कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाते हुए 'घर में घुसकर मारने' की बात करते रहते हैं, लेकिन अब जब निर्णय लेने की बारी आई है, तो भारतीय सेना को पूरी छूट दे दी गई है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या घर में घुसकर मारने का निर्णय लिया जाएगा या नहीं।
सामना ने 1971 के युद्ध का उदाहरण भी दिया, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनरल सैम मानेकशॉ से पाकिस्तान पर हमला करने का आदेश दिया था। लेकिन जनरल मानेकशॉ ने इनकार करते हुए कहा था कि सेना युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से छह महीने का समय मांगा और उस समय दिए गए समय में पाकिस्तान के खिलाफ पूरी तैयारी के साथ युद्ध लड़ा गया, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा। सामना ने यह भी उल्लेख किया कि युद्ध कहां और कैसे लड़ा जाएगा, इसका निर्णय प्रधानमंत्री ने सेना प्रमुखों को सौंपा था, लेकिन युद्ध होगा या नहीं, यह निर्णय प्रधानमंत्री ने खुद लिया था। अब, प्रधानमंत्री मोदी ने यह निर्णय भारतीय सेना पर छोड़ दिया है कि युद्ध करना है या नहीं।
इसके साथ ही सामना में जम्मू-कश्मीर को लेकर सरकार के दावों की पोल भी खोली गई। सामना में लिखा गया कि पहलगाम हमले के बाद दिल्ली में उच्च स्तरीय बैठकें चल रही हैं, और कश्मीर घाटी में पर्यटकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए 48 पर्यटन स्थलों को बंद करने का निर्णय लिया गया है। यह दर्शाता है कि सरकार को कश्मीर में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर पूरी तरह से विश्वास नहीं है, जबकि सरकार यह दावा करती रही है कि कश्मीर पूरी तरह से सुरक्षित और आतंकवादमुक्त है। सामना ने यह भी लिखा कि कश्मीर घाटी में आतंकवादियों के स्लीपर सेल फिर से सक्रिय हो गए हैं और केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने इस बारे में जानकारी दी है।
सामना में यह भी सवाल उठाए गए कि क्यों खुफिया विभाग को पहलगाम और पुलवामा हमलों की पूर्व सूचना नहीं मिली थी, जबकि उनकी जानकारी के अनुसार आतंकवादी गतिविधियों की योजना बन रही थी और कुछ प्रमुख नेताओं की जान को भी खतरा था।
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