रक्षा परियोजनाओं में देरी पर भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह की चिंता और सवाल वाजिब हैं। दोतरफा मोर्चे पर जूझ रही सेना के आधुनिकीकरण में तेजी लाने की जरूरत है। इसके लिए केवल विदेशी सौदों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, मेक इन इंडिया प्रॉजेक्ट के तहत भी उत्पादन बढ़ाना होगा।
हवाई मजबूती: एयरफोर्स चीफ की टिप्पणी ऐसे वक्त आई है, जब भारत ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को हवाई क्षमता का प्रदर्शन कर ध्वस्त किया था। इसी टकराव ने यह भी दिखाया कि जंग में लड़ाकू विमानों की भूमिका कितनी अहम हो चुकी है।
पाक-चीन दोस्ती: भारत के सामने दो फ्रंट खुले हुए हैं- पाकिस्तान और चीन और चिंता की बात यह है कि जो चीन के पास है, वह किसी न किसी तरह पाकिस्तान के पास पहुंच ही जाता है। हालिया टकराव में ही उसने तुर्किये के ड्रोन और चीन के लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया। भारत के लिए ताजा रिपोर्ट चिंता बढ़ाने वाली है कि चीन अपने जे -35 स्टेल्थ फाइटर जेट भी पाकिस्तान को देने जा रहा है। सरकार ने 5वीं पीढ़ी के स्टेल्थ फाइटर जेट के निर्माण को मंजूरी तो दी है, पर अगर उम्मीद पूरी हुई तो भी इनको बनने में 10 साल लग जाएंगे।
विमानों की कमी: भारतीय वायु सेना के पास 42.5 स्क्वाड्रन लड़ाकू विमान होने चाहिए, लेकिन हैं केवल 30। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड अभी तक स्वदेशी तेजस मार्क - 1A की डिलिवरी नहीं कर पाया है। इसकी वजह से वायु सेना की रक्षा तैयारियों पर असर पड़ रहा है। एयर चीफ पहले भी यह मुद्दा उठा चुके हैं।
मेक इन इंडिया: भारत ने हाल में 'मेक इन इंडिया' पर दम लगाया है। 2023-24 में 1.27 लाख करोड़ का रक्षा उत्पादन इस प्रॉजेक्ट के तहत हुआ साथ ही देश ने 21 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का डिफेंस एक्सपोर्ट किया। 100 से अधिक मुल्कों ने भारत से रक्षा उपकरण और हथियार खरीदे हैं। एक दशक में करीब 30 गुना की तेजी आई है।
तेजी की जरूरत: भारत को आने वाले वक्त में अपनी रक्षा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बनना होगा। साथ ही, जिस तरह से चीन ने अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया है, भारत को भी उस राह पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। इसके लिए डिफेंस प्रॉडक्शन को फास्ट ट्रैक करने की जरूरत है और इसमें कोई कोताही नहीं होनी चाहिए।
हवाई मजबूती: एयरफोर्स चीफ की टिप्पणी ऐसे वक्त आई है, जब भारत ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को हवाई क्षमता का प्रदर्शन कर ध्वस्त किया था। इसी टकराव ने यह भी दिखाया कि जंग में लड़ाकू विमानों की भूमिका कितनी अहम हो चुकी है।
पाक-चीन दोस्ती: भारत के सामने दो फ्रंट खुले हुए हैं- पाकिस्तान और चीन और चिंता की बात यह है कि जो चीन के पास है, वह किसी न किसी तरह पाकिस्तान के पास पहुंच ही जाता है। हालिया टकराव में ही उसने तुर्किये के ड्रोन और चीन के लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया। भारत के लिए ताजा रिपोर्ट चिंता बढ़ाने वाली है कि चीन अपने जे -35 स्टेल्थ फाइटर जेट भी पाकिस्तान को देने जा रहा है। सरकार ने 5वीं पीढ़ी के स्टेल्थ फाइटर जेट के निर्माण को मंजूरी तो दी है, पर अगर उम्मीद पूरी हुई तो भी इनको बनने में 10 साल लग जाएंगे।
विमानों की कमी: भारतीय वायु सेना के पास 42.5 स्क्वाड्रन लड़ाकू विमान होने चाहिए, लेकिन हैं केवल 30। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड अभी तक स्वदेशी तेजस मार्क - 1A की डिलिवरी नहीं कर पाया है। इसकी वजह से वायु सेना की रक्षा तैयारियों पर असर पड़ रहा है। एयर चीफ पहले भी यह मुद्दा उठा चुके हैं।
मेक इन इंडिया: भारत ने हाल में 'मेक इन इंडिया' पर दम लगाया है। 2023-24 में 1.27 लाख करोड़ का रक्षा उत्पादन इस प्रॉजेक्ट के तहत हुआ साथ ही देश ने 21 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का डिफेंस एक्सपोर्ट किया। 100 से अधिक मुल्कों ने भारत से रक्षा उपकरण और हथियार खरीदे हैं। एक दशक में करीब 30 गुना की तेजी आई है।
तेजी की जरूरत: भारत को आने वाले वक्त में अपनी रक्षा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बनना होगा। साथ ही, जिस तरह से चीन ने अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया है, भारत को भी उस राह पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। इसके लिए डिफेंस प्रॉडक्शन को फास्ट ट्रैक करने की जरूरत है और इसमें कोई कोताही नहीं होनी चाहिए।
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