शाहरुख खान, आमिर खान और सलमान खान स्टारर कई फिल्मों के कास्टिंग डायरेक्टर रहे मुकेश छाबड़ा पिछले दिनों NBT इरा में बतौर जज शामिल हुए। जल्द ही वह दिल्ली में अपनी ऐक्टिंग वर्कशॉप नन्ही खिड़कियां शुरू करने जा रहे हैं। इस मौके पर मुकेश ने हमसे खास बात की:मुकेश छाबड़ा आज मुंबई में फिल्म इंडस्ट्री का बड़ा नाम हैं। लेकिन उन्होंने अपना सफर दिल्ली से ही शुरू किया था। उन्होंने दिल्ली से मुंबई जाकर एक मुकाम हासिल किया है। अपने अब तक के सफर में उन्होंने सबसे बड़ा सबक क्या सीखा? मुकेश कहते हैं, 'सबसे बड़ा सबक यह सीखा कि शॉर्टकट से कुछ नहीं होता। लगातार मेहनत और ईमानदारी से ही मुकाम मिलता है। अगर आप सच्चे हैं तो इंडस्ट्री आपको जगह जरूर देगी।' आखिर जब किसी ऐक्टर को उन्हें कास्ट करना होता है, तो वह सबसे पहले क्या चीज नोटिस करते हैं? मुकेश छाबड़ा इस बारे में कहते हैं, 'मैं सबसे पहले उस इंसान की ईमानदारी देखता हूं। ऐक्टिंग सिखाई जा सकती है, पर सच्चाई नहीं। जो परफॉर्मर अपने अभिनय में सच्चा है, वही सबसे खास होता है।' आखिर जब कोई ऑडिशन देने जाए तो उसे किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए? इसके जवाब में मुकेश छाबड़ा कहते हैं, 'ऑडिशन एक परफॉर्मेंस नहीं है। कोशिश यह होनी चाहिए कि आप रियल रहें, स्क्रिप्ट को समझें, किसी की नकल न करें। हम परफेक्ट नहीं, बल्कि पोटेंशियल खोजते हैं।' 'ऐक्टिंग खुद की खोज की कला'फिल्म इंडस्ट्री के तमाम प्रोजेक्ट्स में युवा और बच्चों की जरूरत पड़ती रहती है। बजरंगी भाईजान की मुन्नी हो या दंगल की गीता-बबीता, इन फिल्मों में बाल कलाकारों की कास्टिंग मुकेश छाबड़ा ने ही की थी। दिल्ली में अपनी ऐक्टिंग वर्कशॉप के बारे में मुकेश कहते हैं, 'यह वर्कशॉप ऐक्टिंग की दुनिया में कदम रखने का बेहतरीन मौका है, खासकर उन बच्चों के लिए जो परफॉर्मिंग आर्ट्स में रुचि रखते हैं। हम अब तक बजरंगी भाईजान, दंगल, सुपर 30, चिल्लर पार्टी और छोटा भीम (फिल्म) जैसे कई हिट प्रोजेक्ट्स में बच्चों को कास्ट कर चुके हैं। हम ऐसे शानदार प्रोजेक्ट्स में बच्चों को तभी कास्ट कर पाते हैं जब हमें वर्कशॉप्स के जरिए कुछ बेहतरीन टैलंट्स मिलते हैं। यह वर्कशॉप सिर्फ एक्टिंग तक सीमित नहींबजरंगी भाईजान, चिल्लर पार्टी, छोटा भीम और सिटाडेल: हनी बनी जैसे शोज़ और फिल्मों के लिए जो बच्चे चुने गए, वे हमें इसी तरह की ट्रेनिंग और टैलंट खोज की प्रक्रिया से मिले थे। यह वर्कशॉप सिर्फ एक्टिंग तक सीमित नहीं है। यह बच्चों में आत्मविश्वास, संवाद कला, शारीरिक अभिव्यक्ति, भावनात्मक समझ और कैमरे के सामने सहजता जैसे जरूरी कौशल भी विकसित करती है।' बकौल मुकेश छाबड़ा, 'ऐक्टिंग केवल अभिनय नहीं, बल्कि खुद की खोज और दूसरों को समझने की कला है। अगर कोई बच्चा शुरू से ही यह सीखता है, तो उसमें कल्पनाशीलता, अनुशासन और अभिव्यक्ति की ताकत आती है। यही उसकी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है।' 'दिल्ली की थिएटर परंपरा बहुत समृद्ध है'फिल्म इंडस्ट्री तो मुंबई में है और लोग ऐक्टिंग में करियर बनाने भी वहां ही जाते हैं। तो फिर मुकेश छाबड़ा दिल्ली में वर्कशॉप क्यों आयोजित कर रहे हैं? इसके जवाब में वह कहते हैं, 'दिल्ली मेरा घर है। मेरा सफर यहीं से शुरू हुआ थिएटर और खासतौर पर बच्चों के साथ काम करते हुए। मैंने 15 साल से भी ज़्यादा समय नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की थिएटर इन एजुकेशन (T.I.E) कंपनी में बिताया, जहां से मुझे थिएटर और बच्चों के विकास के बीच का गहरा रिश्ता समझ में आया। अब वक़्त है उस शहर को लौटाने का जिसने मुझे बनाया। ये वर्कशॉप उसी भावना की अभिव्यक्ति है।' वह आगे कहते हैं, 'लोग मानते हैं कि सिर्फ मुंबई में ही मौका मिलता है, पर ऐसा नहीं है। टैलंट हर जगह है। दिल्ली की थिएटर परंपरा बहुत समृद्ध है। बस जरूरत है सही मार्गदर्शन और मंच की और यही हम इस वर्कशॉप से देना चाहते हैं।'
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