'छावा' को अपवाद मान लिया जाए तो दिग्गज स्टार्स भी बॉक्स ऑफिस पर अपना जलवा नहीं दिखा पाए। इसकी वजह क्या है? ऐसे में इस बार लोगों को आपसे बहुत उम्मीद है?दर्शकों की उम्मीद जायज है मगर हर फिल्म की रिलीज से पहले नर्वसनेस तो होती ही है। ये आज से नहीं है, ये तो 2003 से हैं, जब मैंने अपनी पहली फिल्म फुटपाथ की थी। मगर अब सिनेमा बहुत टेस्टिंग हो गया है। ओटीटी आ गया है, लोगों के पास फोन है और एक अलग तरह का डिस्ट्रैक्शन है। फिर जिस तरह की फिल्में हमारे यहां बन रही हैं, वे विषय हमारी संस्कृति और जड़ों से जुड़ी हुई नहीं हैं, तो ये सच है कि हम इस चीज से जूझ रहे हैं। मैं दुआ करता हूं कि हम जल्द से जल्द इस चीज से उबरें। मगर इतना जरूर कहूंगा कि हम लगातार मेहनत करें और अच्छी फिल्में बनाने की कोशिश करें। वैसे तो हर फिल्मकार एक अच्छी नियत से फिल्म बनाता है। कोई भी अपनी फिल्म का कचरा तो नहीं करना चाहता। मगर ऑडियंस की नब्ज पकड़ना आसान नहीं होता। सिनेमा हॉल में जाने के बाद फिल्म दर्शक की हो जाती है। आपने जब शुरुआत की थी, तब सोशल मीडिया इतना ज्यादा एक्टिव नहीं था। मगर आज आपकी हर हरकत पर नजर रहती है, तो क्या आप अपने सोशल मीडिया को लेकर अलर्ट रहते हैं?इसलिए तो मैं इतना ज्यादा ट्वीट नहीं करता। (मुस्कुराते हैं) मुझे तो लगता है कि आजकल बहुत ही संवेदनशील माहौल हो गया है। आज हर किसी के पास अपनी राय रखने का एक जरिया है। समझ में नहीं आता कि लोग ज्यादा सेंसेटिव हो गए हैं या फिर बहुत जल्दी नाराज होने लगे हैं। कोई भी किसी भी बात पर बुरा मान सकता है, तो बहुत ही न्यूट्रल ढंग से चीजों को कहना पड़ता है। पॉलिटिकल, रिलीजियस या फिर निजी भावनाएं हों, कोई भी आहत हो सकता है, तो फिर उस स्पेस में जाने से बचना पड़ता है। आप अगर इसमें से कुछ भी व्यक्त करते हैं, तो आप पर उसकी उल्टी प्रतिक्रिया हो सकती है। एक बैशिंग और एग्रेसिव कैंसल कल्चर भी शुरू हो गया है, जिसके चलते एक कमेंट के कारण आपने इतने सालों में जो कुछ बनाया है, उसे नेस्तनाबूत किया जा सकता है। सब खत्म किया जा सकता है। फिर उसके बाद आपके लिए वापसी का रास्ता नहीं बचता। यह कुछ सेकंड्स में सब जगह फैल जाता है और आप फिनिश हो जाते हो, तो आपको बहुत अलर्ट रहना पड़ता है। क्या यही कारण है कि आप अपनी पत्नी (परवीन शहानी) और बेटे (अयान) को सोशल मीडिया से दूर रखते हैं?वे तो खुद सोशल मीडिया पर आना नहीं चाहते और मेरी पहली फिल्म से मेरी पत्नी लाइमलाइट से दूर रही हैं। मेरी पत्नी चूंकि इस इंडस्ट्री से नहीं हैं तो वे नहीं चाहती कि लोग उन्हें सार्वजनिक रूप से पहचानें। इन सब चीजों से दूर रहकर वे अपनी आजादी का आनंद लेती हैं। कुछ महीनों पहले वे कुछ खरीददारी कर रही थीं तो लोगों ने उन्हें पहचान लिया और ये बात उनको बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी। वे इन चीजों के लिए नहीं बनी हैं। वे आर्टिस्ट नहीं हैं। उनकी इस बात की मैं बहुत इज्जत करता हूं। जहां तक बेटे की बात है, वह कॉलेज में है और मीडिया या सोशल मीडिया पर उसका इतना ध्यान नहीं है। वह अपनी पढ़ाई पर फोकस कर रहे हैं और इससे डिस्कनेक्टेड हैं, जो अच्छा ही है। मुझे अपने घर में ऐसा माहौल नहीं चाहिए कि घर के नीचे पपाराजी खड़े हों। यह बहुत आर्टिफिशियल लगता है। हम लोग इसे अपनी लाइफस्टाइल में शामिल नहीं करते। सभी जानते हैं कि आप एक फाइटर पिता रहे हैं। बेटे अयान को कैंसर होने पर आपने भी एक जंग लड़ी, अब पलटकर देखने पर सबसे ज्यादा स्ट्रेंथ क्या लगती है?मैं इसके लिए ज्यादा क्रेडिट नहीं लेना चाहूंगा क्योंकि हर मां-बाप का यही फर्ज होता है। यह जंग तो लड़नी ही थी। हम सभी में वह हिम्मत होती है कि उस जंग से पार पाना है। मैं आज जब पीछे मुड़कर देखता हूं तो मैं ही नहीं मेरी बीवी भी यही सोचती है कि हमने उन हालात में हिम्मत कैसे बटोरी। मगर मैं क्या हर पैरंट यही करेगा। आपके सामने जब ऐसे हालत होते हैं, तो उसका सामना करने के साथ-साथ उम्मीद रखना जरूरी होता है। हम हिम्मती बने और हमारा जज्बा यही था कि हमें यह जंग जीतनी है। क्या आप आज भी सीरियल किसर की इमेज से जूझ रहे हैं क्योंकि आप बीते सालों में 'चीट इंडिया', 'चेहरे' और 'बार्ड ऑफ ब्लड' के बाद 'ग्राउंड ज़ीरो' जैसा गंभीर और अर्थपूर्ण विषय कर रहे हैं?कितना खुश था मैं कि आपने मुझे सीरियल किलर (टाइगर 3) बना दिया। आपने कुछ तो अलग बोला। मैंने कभी किसी एक इमेज को नहीं भुनाया। मैंने काफी अलग-अलग तरह की फिल्में कीं, मगर वह सीरियल किसर वाली एक इमेज थी, जिसे हम परोस रहे थे। वह इमेज ऑडियंस की नजर में बन गई थी। मगर मैंने हमेशा विविधरंगी भूमिकाएं करने की कोशिश की। मेरे जो फैंस हैं, उन्होंने मेरे अलग तरह के काम को मान्यता भी दी है। मुझे आज भी सीरियल किसर कहने वाले शायद वह लोग हैं, जिन्होंने मेरे एक्सपिरिमेंटल रोल्स नहीं देखे। मेरी वह छवि तो काफी पहले टूट गई थी। अदाकार के रूप में मैं बहुत अलग-अलग फिल्में करना चाहता हूं और ग्राउंड जीरो भी एक अलग किस्म की फिल्म है। यह सत्य घटना पर आधारित है। साल 2001 में कश्मीर में तैनात सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सीनियर अधिकारी नरेंद्र नाथ दुबे के साहसिक मिशन पर आधारित है। आमतौर पर जब भी देशभक्ति या जियोपोलिटिक्स की बात होती है, तब हम कश्मीर या इंडिया-पाकिस्तान पर ही फोकस क्यों करते हैं? कुछ नया क्यों नहीं?मैं अपनी फिल्म के बारे में यही कह सकता हूं कि ये एक ऐसे ऑपरेशन पर आधारित है जिसके बारे में लोगों को ज्यादा पता नहीं है। हमारे लिए जो सबसे ज्यादा संवेदनशील या दुख की जगह रही है, वह हमारा एंट्री पॉइंट रहा है कश्मीर, जो पाकिस्तान के बॉर्डर के पास है, तो सबसे ज्यादा जो टेंशन रहा है, वह वहीं रहा है। तो जब हम फिल्म बनाते हैं, तो बाय डिफॉल्ट ऐसा हो जाता है कि कहानियां उसी के आसपास घूमती हैं। मगर हमारी फिल्म की कहानी से लोग ज्यादा परिचित नहीं हैं। यह जैश-ए-मोहम्मद द्वारा फैलाई गई दहशतगर्दी पर आधारित है। पार्लियामेंट पर अटैक, मल्टीपल बॉम ब्लास्ट और जिस तरह हमारे जवानों की हत्या की जा रही थी और जिस तरीके से बीएसएफ ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया, यह उस पर आधारित है।
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