नई दिल्लीः दिल्ली दंगों से जुड़े यूएपीए मामले में जमानत मांगते हुए एक्टिविस्ट उमर खालिद ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उनके खिलाफ हिंसा से जुड़ा कोई सबूत नहीं है और उनपर लगाए गए साजिश के आरोप झूठे झूठे है। याची के वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानत से इनकार करते हुए उमर के 17 फरवरी 2020 को अमरावती में दिए गए भाषण को 'उत्तेजक' बताया था।
वो भाषण यूट्यूब पर उपलब्ध
वकील सिब्बल ने कहा कि वह भाषण यूट्यूब पर उपलब्ध है। यह एक सार्वजनिक भाषण था, जिसमें उनके मुवक्किल (खालिद ने) गांधीवादी सिद्धांतों पर बात की थी। सिब्बल ने जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन. वी. अंजारिया की बेंच में कहा कि उनके (खालिद) खिलाफ किसी भी प्रकार की धनराशि, हथियार या कोई भौतिक साक्ष्य की बरामदगी नहीं हुई है, जो उन्हें दंगों से जोड़ती हो।
फातिमा के वकील ने कोर्ट में दी दलील
वहीं, गुलफिशा फातिमा की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि उनकी मुवक्किल अप्रैल 2020 से अब तक जेल में है। मुख्य आरोपपत्र 16 सितंबर 2020 को दायर किया गया था, लेकिन अभियोजन पक्ष हर साल एक वार्षिक रस्म की तरह पूरक आरोपपत्र दाखिल करता रहा है।
जांच पूरी होने में लग गए इतने साल
सीनियर वकील सिद्धार्थ दवे, जो शरजील इमाम की ओर से पेश हुए, की दलील थी कि पुलिस को जांच पूरी करने में तीन साल लग गए। इमाम ने हिरासत में पांच साल बिताए हैं, जिनमें से तीन साल जांच पूरी होने का इंतजार करते हुए बीते। सुनवाई पूरी नहीं हुई और अब आगे की सुनवाई 3 नवंबर को होगी। मामले में अन्य आरोपियों मीरन हैदर, मोहम्मद सलीम खान और शिफ़ा-उर-रहमान तथा दिल्ली पुलिस की दलीलें होनी बाकी है।
दिल्ली पुलिस ने जमानत का किया था विरोध
इससे पहले दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को इन कार्यकर्ताओं की जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि उन्होंने 'शांतिपूर्ण विरोध' के बहाने देश की संप्रभुता और अखंडता को चोट पहुंचाने के लिए 'शासन परिवर्तन अभियान' की साजिश रची थी।
6 साल बाद जमानत मिले तो क्या अर्थ
उमर, शरजील, गुलफिशा और मीरन पर यूएपीए और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज हैं। पुलिस का आरोप है कि वे फरवरी 2020 के दंगों के मुख्य साजिशकर्ता थे। वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि उनकी मुवक्किल का ट्रायल अब तक शुरू नहीं हुआ। फ़ातिमा इस मामले में हिरासत में रह रही एकमात्र महिला है। सिंघवी ने कहा, अगर छह-सात साल बाद जमानत मिले, तो उसका क्या अर्थ रह जाता है?
शरजील बोले, वह पहले से हिरासत में थे
सिद्धार्थ दवे ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने सितंबर 2024 तक पूरक आरोपपत्र दाखिल किए, यानी जांच लगभग चार साल तक चलती रही। स्पष्ट है कि देरी अभियोजन की ओर से हुई, न कि आरोपियों की ओर से। शरजील 25 जनवरी 2020 से ही अन्य मामलों में हिरासत में थे। जब पहले से जेल में थे, तब दंगों की साजिश में उन्हें कैसे शामिल किया जा सकता है?
दिसंबर का है भाषण
दवे ने कहा कि इमाम को अन्य भाषण मामलों में जमानत मिल चुकी है और वे केवल इसी मामले में जेल में हैं। जस्टिस कुमार ने पूछा कि आपके भाषण की प्रकृति क्या थी? तब दवे ने कहा कि उन्होंने'चक्का जाम' और सीएए-विरोधी प्रदर्शनों की अपील की थी। भाषण दिसंबर 2019 के है, यानी दंगों से दो महीने पहले केजनवरी 2020 में गिरफ्तार होकर पहले से हिरासत में था।
वो भाषण यूट्यूब पर उपलब्ध
वकील सिब्बल ने कहा कि वह भाषण यूट्यूब पर उपलब्ध है। यह एक सार्वजनिक भाषण था, जिसमें उनके मुवक्किल (खालिद ने) गांधीवादी सिद्धांतों पर बात की थी। सिब्बल ने जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन. वी. अंजारिया की बेंच में कहा कि उनके (खालिद) खिलाफ किसी भी प्रकार की धनराशि, हथियार या कोई भौतिक साक्ष्य की बरामदगी नहीं हुई है, जो उन्हें दंगों से जोड़ती हो।
फातिमा के वकील ने कोर्ट में दी दलील
वहीं, गुलफिशा फातिमा की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि उनकी मुवक्किल अप्रैल 2020 से अब तक जेल में है। मुख्य आरोपपत्र 16 सितंबर 2020 को दायर किया गया था, लेकिन अभियोजन पक्ष हर साल एक वार्षिक रस्म की तरह पूरक आरोपपत्र दाखिल करता रहा है।
जांच पूरी होने में लग गए इतने साल
सीनियर वकील सिद्धार्थ दवे, जो शरजील इमाम की ओर से पेश हुए, की दलील थी कि पुलिस को जांच पूरी करने में तीन साल लग गए। इमाम ने हिरासत में पांच साल बिताए हैं, जिनमें से तीन साल जांच पूरी होने का इंतजार करते हुए बीते। सुनवाई पूरी नहीं हुई और अब आगे की सुनवाई 3 नवंबर को होगी। मामले में अन्य आरोपियों मीरन हैदर, मोहम्मद सलीम खान और शिफ़ा-उर-रहमान तथा दिल्ली पुलिस की दलीलें होनी बाकी है।
दिल्ली पुलिस ने जमानत का किया था विरोध
इससे पहले दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को इन कार्यकर्ताओं की जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि उन्होंने 'शांतिपूर्ण विरोध' के बहाने देश की संप्रभुता और अखंडता को चोट पहुंचाने के लिए 'शासन परिवर्तन अभियान' की साजिश रची थी।
6 साल बाद जमानत मिले तो क्या अर्थ
उमर, शरजील, गुलफिशा और मीरन पर यूएपीए और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज हैं। पुलिस का आरोप है कि वे फरवरी 2020 के दंगों के मुख्य साजिशकर्ता थे। वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि उनकी मुवक्किल का ट्रायल अब तक शुरू नहीं हुआ। फ़ातिमा इस मामले में हिरासत में रह रही एकमात्र महिला है। सिंघवी ने कहा, अगर छह-सात साल बाद जमानत मिले, तो उसका क्या अर्थ रह जाता है?
शरजील बोले, वह पहले से हिरासत में थे
सिद्धार्थ दवे ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने सितंबर 2024 तक पूरक आरोपपत्र दाखिल किए, यानी जांच लगभग चार साल तक चलती रही। स्पष्ट है कि देरी अभियोजन की ओर से हुई, न कि आरोपियों की ओर से। शरजील 25 जनवरी 2020 से ही अन्य मामलों में हिरासत में थे। जब पहले से जेल में थे, तब दंगों की साजिश में उन्हें कैसे शामिल किया जा सकता है?
दिसंबर का है भाषण
दवे ने कहा कि इमाम को अन्य भाषण मामलों में जमानत मिल चुकी है और वे केवल इसी मामले में जेल में हैं। जस्टिस कुमार ने पूछा कि आपके भाषण की प्रकृति क्या थी? तब दवे ने कहा कि उन्होंने'चक्का जाम' और सीएए-विरोधी प्रदर्शनों की अपील की थी। भाषण दिसंबर 2019 के है, यानी दंगों से दो महीने पहले केजनवरी 2020 में गिरफ्तार होकर पहले से हिरासत में था।
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