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P-8I एयरक्राफ्ट में ऐसा क्या खास, जिस पर अमेरिका से होने वाली है भारत की डील

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नई दिल्लीः अगले हफ्ते एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल भारत आ रहा है। अमेरिकी रक्षा विभाग और बोइंग का प्रतिनिधिमंडल 16-19 सितंबर को दिल्ली में रहेगा। यह डेलिगेशन भारतीय सेना को छह और P-8I समुद्री गश्ती विमान बेचने के बारे में बातचीत करेगा। यह सौदा करीब 4 बिलियन डॉलर का बताया जा रहा है। बोइंग, भारतीय नौसेना के लिए P-8 पोसाइडन विमान बनाती है।



बहरहाल, यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब दोनों देश ट्रेड विवाद के बाद अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने भारत द्वारा रूसी सैन्य हार्डवेयर खरीदने की कई बार आलोचना की है। ट्रंप ने भारतीय सामानों पर दोगुना टैरिफ लगाया है। उन्होंने रूसी तेल खरीदने पर 25% का पेनाल्टी टैरिफ भी लगाया है। इससे दोनों देशों के संबंधों में तनाव आया है। लेकिन अब दोनों देश संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं।



अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल में रक्षा नीति के लिए अवर सचिव के कार्यालय, नेवी इंटरनेशनल प्रोग्राम्स ऑफिस (NIPO), मैरीटाइम पेट्रोल एंड रिकॉग्निशन एयरक्राफ्ट प्रोग्राम ऑफिस (PMA 290), और डिफेंस सिक्योरिटी कोऑपरेशन एजेंसी (DSCA) से शामिल होंगे। NIPO वैश्विक समुद्री साझेदारी की देखरेख करता है। इसकी जिम्मेदारी अमेरिका के सामरिक सुरक्षा की होती है। PMA 290 समुद्री गश्ती विमानों के अधिग्रहण, समर्थन और मार्केटिंग का मैनेजमेंट देखता है।



P-8I एयरक्राफ्ट की खासियत

भारतीय नौसेना के पास पहले से ही 12 P-8I विमान हैं। ये विमान अराकोणम और गोवा से संचालित होते हैं। आठ विमानों का सौदा 2009 में 2.2 बिलियन डॉलर में हुआ था। चार और विमान 2016 में खरीदे गए थे। इन विमानों का उपयोग पनडुब्बी रोधी और सतह रोधी युद्ध क्षमताओं को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इन विमानों का उपयोग चीन के साथ डोकलाम और लद्दाख में खुफिया जानकारी, निगरानी और टोही (ISR) के लिए भी किया गया था। भारत और क्वाड सदस्य ऑस्ट्रेलिया भी P-8 विमान का उपयोग करते हैं। दोनों देशों ने मिलकर अभ्यास किया है और समुद्री निगरानी गश्त की है।



इस डील की कब से चल रही बात? जब पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 13 फरवरी को वाशिंगटन में मिले थे, तो उन्होंने छह और P-8I समुद्री गश्ती विमान खरीदने की बात कही थी। इससे भारत की समुद्री निगरानी क्षमता बढ़ेगी। उसके बाद से, ट्रंप प्रशासन ने भारत पर अमेरिकी सैन्य उपकरण खरीदने का दबाव डाला है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने एक सूत्र के हवाले से बताया, 'अमेरिका जो चीजें दे रहा है, जैसे कि F-35 लड़ाकू जेट, वे भारतीय जरूरतों के लिए उपयुक्त नहीं हैं। P-8I एक अच्छा विकल्प है क्योंकि नौसेना पहले से ही इस विमान का उपयोग करती है और इसने ISR भूमिका में अपनी उपयोगिता साबित की है।'



भारत-अमेरिका में तनाव के बीच जारी रही बातचीतएक अन्य व्यक्ति ने भारत और अमेरिका के बीच संस्थागत संपर्कों की बात कही। उन्होंने कहा कि व्यापार विवाद के बावजूद, दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है। रक्षा नीति समूह तंत्र के तहत एक अमेरिकी टीम ने भारत का दौरा किया। रक्षा और विदेश मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच 2+2 तंत्र के तहत वर्चुअल वार्ता हुई। अब दोनों देशों के संबंधों को वापस पटरी पर लाने पर फोकस किया जा रहा है।



माना जा रहा है कि भारतीय प्रधानमंत्री की हाल ही में चीन यात्रा और SCO शिखर सम्मेलन में शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन के साथ उनकी तस्वीरें ट्रंप प्रशासन के दृष्टिकोण में बदलाव का कारण हो सकती हैं। अमेरिका के उप सहायक रक्षा सचिव एंड्रयू बायर्स ने 16-20 अगस्त के दौरान भारत का दौरा किया था। उन्होंने रक्षा और विदेश मंत्रालयों में बैठकें कीं। अमेरिकी विदेश विभाग के साइबर और डिजिटल नीति ब्यूरो में वरिष्ठ सलाहकार अल्का पटेल ने 6-12 सितंबर के दौरान नई दिल्ली का दौरा किया। उन्होंने AI रोडमैप जैसी पहलों को आगे बढ़ाने के लिए बातचीत की। जॉन टेंग्लिया ने भी जुलाई में भारत का दौरा किया। उन्होंने एक प्रस्तावित पारस्परिक रक्षा खरीद समझौते पर चर्चा की।

अहम सप्लायर बनकर उभरा अमेरिका रूस अभी भी भारत के सशस्त्र बलों के लिए तकरीबन 60% रक्षा उपकरण मुहैया कराता है। लेकिन अमेरिका पिछले दो दशकों में अहम सप्लायर बनकर सामने आया है। 2008 से, भारत ने अमेरिका से कम से कम 24 बिलियन डॉलर के सैन्य उपकरण खरीदे हैं। इनमें C-130J सुपर हरक्यूलिस और C-17 ग्लोबमास्टर III परिवहन विमान, Apache अटैक हेलीकॉप्टर, CH-47F चिनूक हेलीकॉप्टर, M777 होवित्जर, Harpoon एंटी-शिप मिसाइल और MQ-9B ड्रोन शामिल हैं।



अमेरिका ने 2016 में भारत को 'प्रमुख रक्षा भागीदार' बताया था। इससे भारत को कई सैन्य और दोहरे उपयोग वाली तकनीकों तक पहुंच मिली है। अमेरिका ने भारत के साथ तीन तथाकथित मूलभूत समझौते किए हैं: लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), कम्युनिकेशंस, कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA) और इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी एग्रीमेंट (ISA)। ये समझौते रक्षा सहयोग को बढ़ाने के लिए आवश्यक हैं।

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