Govardhan Puja Vrat Katha 2025: कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन नाम का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियां गोबर का भगवान बनाकर उसकी भली प्रकार से पूजा करती हैं। और संध्या समय अन्नादि का भोग लगाकर दीपदान करती हुई परिक्रमा करती हैं तत्पश्चात् उस गऊला बास (बाधा) कुदाकर उसके उपले थापली हैं और बाकी को खेत आदि में गिरा देती हैं इस दिन नीवन अन्न का भोजन बनाकर भगवान का भोग लगाया जाता है अपने सब अतिथियों सहित भोजन कराया जाता है।
गोवर्धन पूजन की कथा (Govardhan Puja Vrat Katha)प्राचीन काल में दीपावली के दूसरे दिन भारत में और विशेषकर ब्रज मण्डल में इन्द्र की पूजा हुआ करती थी। श्री कृष्ण ने कहा कि कार्तिक में इन्द्र की पूजा का कोई लाभ नहीं इसलिए हमें गऊ के वंश की उन्नति के लिए पर्वत वृक्षों की पूजा करते हुए न केवल उनकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए अपितु पर्वतों और भूमि पर घास-पौधे लगाकर हमें वन महोत्सव भी मनाना चाहिए। इसके सिवा हमें सदैव गोबर को ईश्वर के रूप में पूजा करते हुए उसे कदापि नहीं जलाना चाहिए।
इसके सिवा खेतों में गोबर डालकर उस पर हल चलातें हुए अन्नौषधि उत्पन्न करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से ही हमारे सहित देश की उन्नति होगी। भगवान श्री कृष्ण के ऐसे उपदेश देने के पश्चात लोगों ने ज्यों ही पर्वत वन और गोबर की पूजा आरम्भ की, त्यों ही इन्द्र ने कुपित होकर सात दिन की अखिल झड़ी लगा दी परन्तु श्रीकृष्ण ने गोर्वधन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा कर ब्रज को बचा लिया और इन्द्र को लज्जित होने के पश्चात उसे क्षमा याचना करनी पड़ी।
गोवर्धन के पूजन के दौरान इस कथा का पाठ जरुर करें। इसका पाछ करने से ही आपके गोवर्धन की पूजा संपूर्ण मानी जाएगी। साथ ही भगवान कृष्णम की कृपा भी आप पर और आपके परिवार पर बनी रहेगी।
ये भी पढ़े: गोवर्धन महाराज जी की आरती | गिरिराज जी की आरती
गोवर्धन पूजन की कथा (Govardhan Puja Vrat Katha)प्राचीन काल में दीपावली के दूसरे दिन भारत में और विशेषकर ब्रज मण्डल में इन्द्र की पूजा हुआ करती थी। श्री कृष्ण ने कहा कि कार्तिक में इन्द्र की पूजा का कोई लाभ नहीं इसलिए हमें गऊ के वंश की उन्नति के लिए पर्वत वृक्षों की पूजा करते हुए न केवल उनकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए अपितु पर्वतों और भूमि पर घास-पौधे लगाकर हमें वन महोत्सव भी मनाना चाहिए। इसके सिवा हमें सदैव गोबर को ईश्वर के रूप में पूजा करते हुए उसे कदापि नहीं जलाना चाहिए।
इसके सिवा खेतों में गोबर डालकर उस पर हल चलातें हुए अन्नौषधि उत्पन्न करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से ही हमारे सहित देश की उन्नति होगी। भगवान श्री कृष्ण के ऐसे उपदेश देने के पश्चात लोगों ने ज्यों ही पर्वत वन और गोबर की पूजा आरम्भ की, त्यों ही इन्द्र ने कुपित होकर सात दिन की अखिल झड़ी लगा दी परन्तु श्रीकृष्ण ने गोर्वधन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा कर ब्रज को बचा लिया और इन्द्र को लज्जित होने के पश्चात उसे क्षमा याचना करनी पड़ी।
गोवर्धन के पूजन के दौरान इस कथा का पाठ जरुर करें। इसका पाछ करने से ही आपके गोवर्धन की पूजा संपूर्ण मानी जाएगी। साथ ही भगवान कृष्णम की कृपा भी आप पर और आपके परिवार पर बनी रहेगी।
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