नई दिल्ली: आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भारत को अमेरिका के प्रस्तावित HIRE एक्ट को लेकर ज्यादा सावधान रहने की सलाह दी है। उनका कहना है कि यह कानून भारत के सर्विस एक्सपोर्ट और ग्लोबल टैलेंट के लिए एच-1बी वीजा फीस बढ़ोतरी से कहीं ज्यादा बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। राजन के मुताबिक, अमेरिका में विचाराधीन यह नया कानून भारत के सेवा क्षेत्र पर टैरिफ लगा सकता है। इसका असर लंबे समय तक रहेगा।
राजन ने एक इंटरव्यू में कहा कि एच-1बी वीजा फीस में बढ़ोतरी से थोड़े समय के लिए दिक्कतें आ सकती हैं। लेकिन, HIRE (हेल्प इन-सोर्सिंग एंड रीपैट्रिएटिंग एम्प्लॉयमेंट) एक्ट के तहत टैरिफ बढ़ने की संभावना भारत के लिए कहीं ज्यादा गंभीर चिंता का विषय है।
HIRE एक्ट पर किया बड़ा खुलासा
दिग्गज अर्थशास्त्री ने कहा, 'हमारी सबसे बड़ी चिंताओं में से एक यह नहीं है कि सामानों पर टैरिफ लगे, बल्कि यह है कि वे सेवाओं पर टैरिफ लगाने के तरीके खोजें। यह एक खतरा है। HIRE एक्ट पर कांग्रेस में बहस चल रही है, जो आउटसोर्स की गई सेवाओं पर टैरिफ लगाने की कोशिश करेगा।'
उन्होंने आगे कहा, 'यह कैसे लागू होगा, यह कोई नहीं जानता। लेकिन, टैरिफ का यह दायरा सामानों से आगे बढ़कर सेवाओं तक और एच-1बी के जरिए अमेरिका आने वाले भारतीयों तक फैलना, ये सभी चिंताएं हैं।'
राजन ने यह भी बताया कि भारत पहले ही अमेरिका की ओर से लगाए गए रिकॉर्ड 50% टैरिफ से प्रभावित हुआ है। यह टैरिफ चीन पर लगे 47% टैरिफ से भी ज्यादा है। इसका असर कपड़ा जैसे अहम उद्योगों पर पड़ा है। उन्होंने कहा, 'यह निश्चित रूप से भारत के लिए कुछ उद्योगों के लिए एक बहुत बड़ा मुद्दा है। उदाहरण के लिए कपड़ा, जहां हम शायद अमेरिका में फेस्टिव सीजन गंवा रहे हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'भविष्य में हम यह नहीं चाहते कि हमने जो सप्लाई चेन बनाई हैं और जिनमें हम इंटीग्रेट हुए हैं, वे स्थायी रूप से बाधित हों।'
टैरिफ कम कराने पर देना चाहिए जोर
राजन ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को चल रही बातचीत के दौरान टैरिफ कम कराने के लिए जोर देना चाहिए। उन्होंने कहा, 'भारत के लिए यह बेहद जरूरी है कि हमारे टैरिफ जल्दी कम किए जाएं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां हमारे श्रम-प्रधान उद्योग हैं जिन्होंने अमेरिका में कुछ हद तक अपनी जगह बनाई है।'
एच-1बी वीजा फीस बढ़ोतरी के बारे में राजन ने कहा कि इसका कुल असर जितना सोचा जा रहा था, उससे कम गंभीर हो सकता है। उन्होंने कहा, 'समय के साथ भारतीय कंपनियों के लिए एच-1बी वीजा की जरूरत कम हो रही है क्योंकि अब बहुत सारा काम वर्चुअल नेटवर्क के जरिए किया जा सकता है, न कि व्यक्तिगत रूप से वहां जाकर।' उन्होंने कहा, 'एच-1बी से ज्यादा यह सवाल है कि क्या इस आउटसोर्सिंग पर टैरिफ लगेगा। यह एक बड़ी चिंता होगी।'
उन्होंने यह भी जोड़ा कि मौजूदा एच-1बी वीजाधारकों और STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स) ग्रेजुएट्स को नई फीस का सामना नहीं करना पड़ेगा। कंपनियां अलग तरह से भर्ती करके एडजस्ट कर सकती हैं। राजन ने कहा, 'भारतीय कंपनियां अभी भी अमेरिका में अपने कर्मचारी रख सकती हैं। वे अमेरिका में डिग्री हासिल करने वाले भारतीय छात्रों की ज्यादा भर्ती कर सकती हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'लेकिन अंत में यह हो सकता है कि भारतीय कंपनियां तय करें कि उन्हें किसी को वहां भेजने की जरूरत नहीं है। वे वहां कुछ लोगों को काम पर रख सकती हैं। लेकिन, ज्यादातर काम वर्चुअल तरीके से करेंगी।'
प्रस्तावित एक्ट भारत के लिए ज्यादा अहम
राजन ने कहा कि इस तरह के बदलाव वैश्विक फर्मों के लिए भारत-आधारित संचालन के विकास को तेज कर सकते हैं। उन्होंने कहा, 'जब हम माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों के बारे में सोचते हैं जो एच-1बी के आधार पर भर्ती करती हैं तो उनमें से कई लोगों को सीधे भारत में ही काम पर रखा जाएगा। लेकिन, उनके ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) में रखा जाएगा और वे अपना काम ट्रांसमिट करेंगे।' उन्होंने कहा, 'एडजस्टमेंट होंगे। इसका शुद्ध प्रभाव अमेरिका में एच-1बी इमीग्रेशन कम होना होगा। लेकिन, यह पहली नजर में जितना बुरा लग रहा था, उतना बुरा नहीं दिखता। मुझे लगता है कि HIRE एक्ट हमारे लिए कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।'
राजन ने एक इंटरव्यू में कहा कि एच-1बी वीजा फीस में बढ़ोतरी से थोड़े समय के लिए दिक्कतें आ सकती हैं। लेकिन, HIRE (हेल्प इन-सोर्सिंग एंड रीपैट्रिएटिंग एम्प्लॉयमेंट) एक्ट के तहत टैरिफ बढ़ने की संभावना भारत के लिए कहीं ज्यादा गंभीर चिंता का विषय है।
HIRE एक्ट पर किया बड़ा खुलासा
दिग्गज अर्थशास्त्री ने कहा, 'हमारी सबसे बड़ी चिंताओं में से एक यह नहीं है कि सामानों पर टैरिफ लगे, बल्कि यह है कि वे सेवाओं पर टैरिफ लगाने के तरीके खोजें। यह एक खतरा है। HIRE एक्ट पर कांग्रेस में बहस चल रही है, जो आउटसोर्स की गई सेवाओं पर टैरिफ लगाने की कोशिश करेगा।'
उन्होंने आगे कहा, 'यह कैसे लागू होगा, यह कोई नहीं जानता। लेकिन, टैरिफ का यह दायरा सामानों से आगे बढ़कर सेवाओं तक और एच-1बी के जरिए अमेरिका आने वाले भारतीयों तक फैलना, ये सभी चिंताएं हैं।'
राजन ने यह भी बताया कि भारत पहले ही अमेरिका की ओर से लगाए गए रिकॉर्ड 50% टैरिफ से प्रभावित हुआ है। यह टैरिफ चीन पर लगे 47% टैरिफ से भी ज्यादा है। इसका असर कपड़ा जैसे अहम उद्योगों पर पड़ा है। उन्होंने कहा, 'यह निश्चित रूप से भारत के लिए कुछ उद्योगों के लिए एक बहुत बड़ा मुद्दा है। उदाहरण के लिए कपड़ा, जहां हम शायद अमेरिका में फेस्टिव सीजन गंवा रहे हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'भविष्य में हम यह नहीं चाहते कि हमने जो सप्लाई चेन बनाई हैं और जिनमें हम इंटीग्रेट हुए हैं, वे स्थायी रूप से बाधित हों।'
टैरिफ कम कराने पर देना चाहिए जोर
राजन ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को चल रही बातचीत के दौरान टैरिफ कम कराने के लिए जोर देना चाहिए। उन्होंने कहा, 'भारत के लिए यह बेहद जरूरी है कि हमारे टैरिफ जल्दी कम किए जाएं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां हमारे श्रम-प्रधान उद्योग हैं जिन्होंने अमेरिका में कुछ हद तक अपनी जगह बनाई है।'
एच-1बी वीजा फीस बढ़ोतरी के बारे में राजन ने कहा कि इसका कुल असर जितना सोचा जा रहा था, उससे कम गंभीर हो सकता है। उन्होंने कहा, 'समय के साथ भारतीय कंपनियों के लिए एच-1बी वीजा की जरूरत कम हो रही है क्योंकि अब बहुत सारा काम वर्चुअल नेटवर्क के जरिए किया जा सकता है, न कि व्यक्तिगत रूप से वहां जाकर।' उन्होंने कहा, 'एच-1बी से ज्यादा यह सवाल है कि क्या इस आउटसोर्सिंग पर टैरिफ लगेगा। यह एक बड़ी चिंता होगी।'
उन्होंने यह भी जोड़ा कि मौजूदा एच-1बी वीजाधारकों और STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स) ग्रेजुएट्स को नई फीस का सामना नहीं करना पड़ेगा। कंपनियां अलग तरह से भर्ती करके एडजस्ट कर सकती हैं। राजन ने कहा, 'भारतीय कंपनियां अभी भी अमेरिका में अपने कर्मचारी रख सकती हैं। वे अमेरिका में डिग्री हासिल करने वाले भारतीय छात्रों की ज्यादा भर्ती कर सकती हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'लेकिन अंत में यह हो सकता है कि भारतीय कंपनियां तय करें कि उन्हें किसी को वहां भेजने की जरूरत नहीं है। वे वहां कुछ लोगों को काम पर रख सकती हैं। लेकिन, ज्यादातर काम वर्चुअल तरीके से करेंगी।'
प्रस्तावित एक्ट भारत के लिए ज्यादा अहम
राजन ने कहा कि इस तरह के बदलाव वैश्विक फर्मों के लिए भारत-आधारित संचालन के विकास को तेज कर सकते हैं। उन्होंने कहा, 'जब हम माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों के बारे में सोचते हैं जो एच-1बी के आधार पर भर्ती करती हैं तो उनमें से कई लोगों को सीधे भारत में ही काम पर रखा जाएगा। लेकिन, उनके ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) में रखा जाएगा और वे अपना काम ट्रांसमिट करेंगे।' उन्होंने कहा, 'एडजस्टमेंट होंगे। इसका शुद्ध प्रभाव अमेरिका में एच-1बी इमीग्रेशन कम होना होगा। लेकिन, यह पहली नजर में जितना बुरा लग रहा था, उतना बुरा नहीं दिखता। मुझे लगता है कि HIRE एक्ट हमारे लिए कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।'
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