चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की यौन गतिविधि को रेप माना जाएगा। कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि चाहे वह विवाह के बाद हो या आपसी सहमति से। कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो कानून के तहत नाबालिग की सहमति या उसका विवाह दोनों इस अपराध को वैध नहीं ठहरा सकते। यह फैसला हाईकोर्ट ने पंजाब के होशियारपुर जिले के एक मुस्लिम दंपती की याचिका पर सुनाया।
सुरक्षा की मांग करने पहुंचे थे हाईकोर्ट
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से सुरक्षा की मांग की थी। उन्होंने कहा कि दोनों ने अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ शादी की है और अब उन्हें लड़की के परिवार से जान का खतरा है। हालांकि, राज्य सरकार ने अदालत में यह दलील दी कि लड़की अभी 17 वर्ष की है, यानी 18 की आयु पूरी नहीं हुई है, इसलिए यह विवाह बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत अवैध है। जब अदालत के संज्ञान में यह तथ्य आ गया है कि लड़की नाबालिग है, तो अदालत की जिम्मेदारी बनती है कि वह परेंस पैट्रिए नाबालिग की संरक्षक के रूप में यह तय करे कि उसके हित में क्या है।
कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा
न्यायमूर्ति सुभाष मेहला ने अपने आदेश में कह कि विचार करने पर यह स्पष्ट है कि लड़की नाबालिग है। किसी भी धर्म या व्यक्तिगत कानून के बावजूद, 18 वर्ष से कम आयु की लड़की का विवाह बच्चों की सुरक्षा और गरिमा से संबंधित कई विशेष कानूनों के विपरीत है। याचिकाकर्ता मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला दे रहे हैं, जिसके अनुसार लड़की यौन परिपक्वता प्राप्त करने के बाद, यानी लगभग 15 वर्ष की आयु में विवाह कर सकती है। परंतु जब एक स्पष्ट वैधानिक कानून मौजूद है, तो कोई भी व्यक्तिगत कानून उसके विपरीत नहीं चल सकता। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि पॉक्सो कानून एक विशेष अधिनियम है, जिसका उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण से बचाना है। इसलिए किसी भी धर्म, परंपरा या निजी मान्यता के आधार पर इस कानून से छूट नहीं दी जा सकती।
सुरक्षा की मांग करने पहुंचे थे हाईकोर्ट
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से सुरक्षा की मांग की थी। उन्होंने कहा कि दोनों ने अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ शादी की है और अब उन्हें लड़की के परिवार से जान का खतरा है। हालांकि, राज्य सरकार ने अदालत में यह दलील दी कि लड़की अभी 17 वर्ष की है, यानी 18 की आयु पूरी नहीं हुई है, इसलिए यह विवाह बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत अवैध है। जब अदालत के संज्ञान में यह तथ्य आ गया है कि लड़की नाबालिग है, तो अदालत की जिम्मेदारी बनती है कि वह परेंस पैट्रिए नाबालिग की संरक्षक के रूप में यह तय करे कि उसके हित में क्या है।
कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा
न्यायमूर्ति सुभाष मेहला ने अपने आदेश में कह कि विचार करने पर यह स्पष्ट है कि लड़की नाबालिग है। किसी भी धर्म या व्यक्तिगत कानून के बावजूद, 18 वर्ष से कम आयु की लड़की का विवाह बच्चों की सुरक्षा और गरिमा से संबंधित कई विशेष कानूनों के विपरीत है। याचिकाकर्ता मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला दे रहे हैं, जिसके अनुसार लड़की यौन परिपक्वता प्राप्त करने के बाद, यानी लगभग 15 वर्ष की आयु में विवाह कर सकती है। परंतु जब एक स्पष्ट वैधानिक कानून मौजूद है, तो कोई भी व्यक्तिगत कानून उसके विपरीत नहीं चल सकता। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि पॉक्सो कानून एक विशेष अधिनियम है, जिसका उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण से बचाना है। इसलिए किसी भी धर्म, परंपरा या निजी मान्यता के आधार पर इस कानून से छूट नहीं दी जा सकती।
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