नई दिल्ली: चीन ने सोने की बिक्री पर लंबे समय से चली आ रही टैक्स छूट खत्म कर दी है। यह फैसला 1 नवंबर से लागू हो गया है। इस कदम से उपभोक्ताओं के लिए सोने की कीमतें बढ़ सकती हैं। यही नहीं, दुनिया के सबसे बड़े सोने के बाजारों में कीमतों का गणित बदल सकता है। चीन के वित्त मंत्रालय ने घोषणा की है कि अब सोने के खुदरा विक्रेता शंघाई गोल्ड एक्सचेंज से खरीदे गए सोने की बिक्री पर लगने वाले वैल्यू-एडेड टैक्स (वैट) को ऑफसेट नहीं कर पाएंगे। यह नियम सोने के सभी प्रकारों पर लागू है। चाहे वह सीधे बेचा जाए या गहने, सिक्के, उच्च-शुद्धता वाले बार या औद्योगिक सामग्री के रूप में तैयार किया जाए। यह चीन के कीमती धातु के टैक्सेशन स्ट्रक्चर में बड़ा बदलाव है।
चीन के सोने की बिक्री पर छूट को खत्म करने के फैसले का भारत पर भी सीधा असर पड़ सकता है। भारत और चीन दोनों ही दुनिया में सोने के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। चीन के बाजार में किसी भी बड़े बदलाव का असर वैश्विक सोने की कीमतों और ट्रेड डायनेमिक्स पर पड़ना तय है। इसका असर अप्रत्यक्ष रूप से भारत पर भी पड़ेगा।
भारत पर कैसे पड़ सकता है असर?चीन में सोने की खरीद पर वैट छूट खत्म होने से खुदरा लागत बढ़ जाएगी। अगर कीमतें बढ़ती हैं तो चीनी उपभोक्ताओं की तरफ से सोने की मांग कुछ समय के लिए नरम पड़ सकती है। चूंकि चीन सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, इसलिए उसकी घरेलू मांग में कमी आने से वैश्विक सोने की कीमतों पर थोड़ा दबाव आ सकता है। अगर ग्लोबल कीमतें नीचे आती हैं तो भारत के लिए सोना आयात करना सस्ता हो सकता है।
चीन में सोने के महंगा होने से व्यापारी और खरीदार भारत, हांगकांग या सिंगापुर जैसे पड़ोसी बाजारों में कीमत के अंतर पर नजर रख सकते हैं। यह बदलाव क्रॉस-बॉर्डर गोल्ड ट्रेड फ्लो को प्रभावित कर सकता है। अगर चीन में कीमतें काफी बढ़ जाती हैं तो भारत (या अन्य नजदीकी बाजार) अंतरराष्ट्रीय गोल्ड ट्रेड में अधिक प्रमुखता हासिल कर सकते हैं।
भारत अपनी सोने की ज्यादातर मांग को आयात के जरिये पूरा करता है। अगर वैश्विक सोने की कीमतें कम होती हैं तो भारत को उतना ही सोना खरीदने के लिए कम डॉलर खर्च करने पड़ेंगे। इससे देश का आयात बिल कम हो सकता है और रुपये को मजबूती मिल सकती है।
यह फैसला क्यों अहम है?यह फैसला ऐसे समय में आया है जब चीन की अर्थव्यवस्था कमजोर घरेलू मांग और धीमी ग्रोथ से जूझ रही है। सरकार नए राजस्व स्रोतों की तलाश कर रही है। इस टैक्स राहत को खत्म करने से सरकारी आय बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि इससे अंतिम उपभोक्ताओं के लिए सोने की कीमतें बढ़ सकती हैं। छोटी अवधि में खुदरा मांग कम हो सकती है।
कई सालों से चीन की वैट ऑफसेट प्रणाली ने खुदरा विक्रेताओं को शंघाई गोल्ड एक्सचेंज से खरीदे गए सोने की बिक्री पर अपना टैक्स बोझ कम करने की अनुमति देकर घरेलू सोने की कीमतों को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने में मदद की थी। इस फायदे के बिना खुदरा विक्रेताओं को अब कम मुनाफा मार्जिन का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें या तो अतिरिक्त लागत खुद वहन करनी होगी या ग्राहकों पर डालनी होगी।
कीमतें बढ़ने का असरइसका सीधा असर खुदरा स्तर पर महसूस होगा। ब्लूमबर्ग ने एक उद्योग विश्लेषक के हवाले से बताया, 'वैट ऑफसेट का मतलब है सोने की पूरी रिटेल चेन के लिए लागत में वृद्धि।' उन्होंने आगे कहा, 'जो खुदरा विक्रेता पहले से ही कम मुनाफे पर काम कर रहे थे, उन्हें अब कठिन विकल्प चुनने होंगे - या तो कीमतें बढ़ाएं या कम लाभ स्वीकार करें।'
चीनी उपभोक्ता, जिन्होंने सोने में सुरक्षित निवेश और सांस्कृतिक निवेश दोनों के रूप में मजबूत रुचि दिखाई है, उन्हें गहनों और निवेश-ग्रेड सोने की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। इस कदम से घरेलू मांग में भी अस्थायी रूप से कमी आ सकती है, खासकर कीमत-संवेदनशील खरीदारों के बीच। हालांकि, मूल्य के भंडार के रूप में सोने के प्रति दीर्घकालिक भावना मजबूत बने रहने की उम्मीद है।
बाजारों में मच सकती है खलबली
चीन का वैश्विक सोने के बाजारों पर प्रभाव बहुत बड़ा है। इसलिए इस नीति के व्यापक परिणाम हो सकते हैं। चीन सोने का दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता और आयातक है। मांग में कोई भी कमी अंतरराष्ट्रीय कीमतों को प्रभावित कर सकती है। हालांकि, वैश्विक सोने की कीमतें लगभग 4,000 अमेरिकी डॉलर प्रति औंस के आसपास बनी हुई हैं। कुछ विश्लेषक एक साल के भीतर 5,000 डॉलर तक की भविष्यवाणी कर रहे हैं। अगर वैश्विक मांग मजबूत बनी रहती है तो बुलियन का ऊपरी ट्रेंड जारी रह सकता है।
चीन की खुदरा मूल्य निर्धारण में बदलाव सीमा पार सोने के व्यापार प्रवाह को भी प्रभावित कर सकता है, खासकर हांगकांग, सिंगापुर और भारत जैसे पड़ोसी बाजारों में, जहां कीमतों का अंतर अक्सर उपभोक्ता और व्यापारी के व्यवहार को निर्देशित करता है।
चीन के सोने की बिक्री पर छूट को खत्म करने के फैसले का भारत पर भी सीधा असर पड़ सकता है। भारत और चीन दोनों ही दुनिया में सोने के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। चीन के बाजार में किसी भी बड़े बदलाव का असर वैश्विक सोने की कीमतों और ट्रेड डायनेमिक्स पर पड़ना तय है। इसका असर अप्रत्यक्ष रूप से भारत पर भी पड़ेगा।
भारत पर कैसे पड़ सकता है असर?चीन में सोने की खरीद पर वैट छूट खत्म होने से खुदरा लागत बढ़ जाएगी। अगर कीमतें बढ़ती हैं तो चीनी उपभोक्ताओं की तरफ से सोने की मांग कुछ समय के लिए नरम पड़ सकती है। चूंकि चीन सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, इसलिए उसकी घरेलू मांग में कमी आने से वैश्विक सोने की कीमतों पर थोड़ा दबाव आ सकता है। अगर ग्लोबल कीमतें नीचे आती हैं तो भारत के लिए सोना आयात करना सस्ता हो सकता है।
चीन में सोने के महंगा होने से व्यापारी और खरीदार भारत, हांगकांग या सिंगापुर जैसे पड़ोसी बाजारों में कीमत के अंतर पर नजर रख सकते हैं। यह बदलाव क्रॉस-बॉर्डर गोल्ड ट्रेड फ्लो को प्रभावित कर सकता है। अगर चीन में कीमतें काफी बढ़ जाती हैं तो भारत (या अन्य नजदीकी बाजार) अंतरराष्ट्रीय गोल्ड ट्रेड में अधिक प्रमुखता हासिल कर सकते हैं।
भारत अपनी सोने की ज्यादातर मांग को आयात के जरिये पूरा करता है। अगर वैश्विक सोने की कीमतें कम होती हैं तो भारत को उतना ही सोना खरीदने के लिए कम डॉलर खर्च करने पड़ेंगे। इससे देश का आयात बिल कम हो सकता है और रुपये को मजबूती मिल सकती है।
यह फैसला क्यों अहम है?यह फैसला ऐसे समय में आया है जब चीन की अर्थव्यवस्था कमजोर घरेलू मांग और धीमी ग्रोथ से जूझ रही है। सरकार नए राजस्व स्रोतों की तलाश कर रही है। इस टैक्स राहत को खत्म करने से सरकारी आय बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि इससे अंतिम उपभोक्ताओं के लिए सोने की कीमतें बढ़ सकती हैं। छोटी अवधि में खुदरा मांग कम हो सकती है।
कई सालों से चीन की वैट ऑफसेट प्रणाली ने खुदरा विक्रेताओं को शंघाई गोल्ड एक्सचेंज से खरीदे गए सोने की बिक्री पर अपना टैक्स बोझ कम करने की अनुमति देकर घरेलू सोने की कीमतों को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने में मदद की थी। इस फायदे के बिना खुदरा विक्रेताओं को अब कम मुनाफा मार्जिन का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें या तो अतिरिक्त लागत खुद वहन करनी होगी या ग्राहकों पर डालनी होगी।
कीमतें बढ़ने का असरइसका सीधा असर खुदरा स्तर पर महसूस होगा। ब्लूमबर्ग ने एक उद्योग विश्लेषक के हवाले से बताया, 'वैट ऑफसेट का मतलब है सोने की पूरी रिटेल चेन के लिए लागत में वृद्धि।' उन्होंने आगे कहा, 'जो खुदरा विक्रेता पहले से ही कम मुनाफे पर काम कर रहे थे, उन्हें अब कठिन विकल्प चुनने होंगे - या तो कीमतें बढ़ाएं या कम लाभ स्वीकार करें।'
चीनी उपभोक्ता, जिन्होंने सोने में सुरक्षित निवेश और सांस्कृतिक निवेश दोनों के रूप में मजबूत रुचि दिखाई है, उन्हें गहनों और निवेश-ग्रेड सोने की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। इस कदम से घरेलू मांग में भी अस्थायी रूप से कमी आ सकती है, खासकर कीमत-संवेदनशील खरीदारों के बीच। हालांकि, मूल्य के भंडार के रूप में सोने के प्रति दीर्घकालिक भावना मजबूत बने रहने की उम्मीद है।
बाजारों में मच सकती है खलबली
चीन का वैश्विक सोने के बाजारों पर प्रभाव बहुत बड़ा है। इसलिए इस नीति के व्यापक परिणाम हो सकते हैं। चीन सोने का दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता और आयातक है। मांग में कोई भी कमी अंतरराष्ट्रीय कीमतों को प्रभावित कर सकती है। हालांकि, वैश्विक सोने की कीमतें लगभग 4,000 अमेरिकी डॉलर प्रति औंस के आसपास बनी हुई हैं। कुछ विश्लेषक एक साल के भीतर 5,000 डॉलर तक की भविष्यवाणी कर रहे हैं। अगर वैश्विक मांग मजबूत बनी रहती है तो बुलियन का ऊपरी ट्रेंड जारी रह सकता है।
चीन की खुदरा मूल्य निर्धारण में बदलाव सीमा पार सोने के व्यापार प्रवाह को भी प्रभावित कर सकता है, खासकर हांगकांग, सिंगापुर और भारत जैसे पड़ोसी बाजारों में, जहां कीमतों का अंतर अक्सर उपभोक्ता और व्यापारी के व्यवहार को निर्देशित करता है।
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