मॉस्को: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले दिनों रूस की सैन्य शक्ति को 'कागजी शेर' यानि 'पेपर टाइगर' बताया था। क्या अमेरिकी राष्ट्रपति का ऐसा दावा सही है? कागज पर जब आप रूस और नाटो देशों की शक्ति की तुलना करते हैं तो जवाब हैरान कर देते हैं। रूस के पास किसी भी एक नाटो देश के मुकाबले ज्यादा सैन्य शक्ति और परमाणु बम हैं। हां, जब सभी नाटो देश एक साथ आ जाते हैं, तो रूस को पलड़ा जरून कमजोर दिखता है, लेकिन फिर भी रूस इतना शक्तिशाली है कि पिछले तीन सालों से यूक्रेन के साथ खुलकर आने का दुस्साहस नाटो देश नहीं दिखा पाए हैं! नाटो देश सिर्फ धद्म युद्ध ही रूस के साथ लड़ रहा है।
रूस के पास सैनिकों की संख्या अमेरिका के बराबर है और उसके पास किसी भी अन्य नाटो सदस्य से ज्यादा सैनिक हैं, करीब 13 लाख सैनिक और रूस के पास लाखों सैनिक रिजर्व फोर्स में हैं। लेकिन फिर भी डोनाल्ड ट्रंप उन्हें 'कागजी शेर' कह रहे हैं। लेकिन हकीकत ये है कि रूस की युद्ध मशीनरी ऐसी है कि नाटो उसे यूक्रेन में अभी भी भेद नहीं पाया है।
रूस की सैन्य शक्ति से यूरोप क्यों होता है परेशान?
जमीन पर तैनात सैनिक किसी भी लड़ाकू बल की रीढ़ होते हैं, लेकिन परमाणु हथियार विरोधियों को डराने के लिए होता है। और पुतिन के पास किसी भी वैश्विक शक्ति की तुलना में दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु शस्त्रागार है। बात अगर जमीनी सैनिकों की करें तो अमेरिका के पास करीब 13 लाख 28 हजार जमीनी सैनिक हैं, जबकि रूस के पास 13 लाख 20 हजार जमीनी सैनिक हैं। इसके अलावा रूस के पास 20 लाख से ज्यादा रिजर्व फोर्स है, जिनका इस्तेमाल वो यूक्रेन युद्ध में करता रहता है। हालांकि, जब सभी NATO देशों की ताकत एक साथ जोड़ दी जाए तो यह आंकड़ा 33 लाख सैनिकों के साथ रूस से आगे निकल जाता है।
बात अगर डिफेंस सेक्टर में होने वाले खर्च की करें तो पश्चिमी देश, या यूं कहें नाटो पूरी तरह से अमेरिका पर निर्भर नजर आता है। इसीलिए आप देखते होंगे कि यूरोप, अमेरिका के चरणों में नतमस्तक नजर आता रहता है। अमेरिका अकेले NATO के कुल रक्षा बजट का करीब 70 प्रतिशत वहन करता है, जो करीब 860 अरब डॉलर सालाना है। पूरे यूरोप का संयुक्त रक्षा खर्च अब 400 अरब डॉलर के करीब पहुंच चुका है, जिसमें पोलैंड, एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया जैसे देश GDP के 3% से ज्यादा डिफेंस सेक्टर में खर्च कर रहे हैं। पोलैंड ने तो रक्षा बजट को बढ़ाकर 4.2% तक, यानि 35 अरब डॉलर कर दिया है। जिससे वह यूरोप की सबसे तेजी से बढ़ती सैन्य ताकत बन रहा है। यूके भी 2027 तक अपने रक्षा बजट को GDP के 2.5% और 2035 तक 5% करने की योजना पर काम कर रहा है। यानि, रूस के खिलाफ यूरोपीय देशों ने तेजी से अपनी सैन्य ताकत बढ़ानी शुरू कर दी है, लेकिन अभी कई सालों तक बगैर अमेरिका, यूरोप के पास इतनी शक्ति नहीं होगी कि वो रूस से टक्कर ले सके।
रूस के पास मिलिट्री हार्डवेयर की संख्या कितनी है?
रिपोर्ट के मुताबिक, रूस के पास 4 हजार 699 एयरक्राफ्ट हैं, जिनमें 3000 के करीब फाइटर जेट और बॉम्बर हैं। इसके अलावा 13 हजार टैंक, 1700 से ज्यादा मिलिट्री हेलीकॉप्टर और 600 से ज्यादा युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं, जिनमें परमाणु ऊर्जा से चलने वाली और परमाणु मिसाइलों को लॉन्च करने वाली पनडुब्बियां भी शामिल हैं। डोनाल्ड ट्रंप रूस की यही विशाल सैन्य शक्ति देखकर परेशान रहते हैं। इसीलिए वो बार बार यूरोपीय देश से नाटो में ज्यादा से ज्यादा फंड देने के लिए कहते रहते हैं। लेकिन यूरोपीय देश, जो आर्थिक संकट से जूझते रहते हैं, उनके पास नाटो के लिए फंड नहीं है।
बात अगर रक्षा खर्च की करें तो पिछले दस वर्षों में कुल यूरोपीय रक्षा खर्च में लगभग 175 अरब डॉलर की इजाफा होने का अनुमान है। और यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने महाद्वीप में फिर से हथियारों की रेस को काफी तेज कर दिया है। खासकर पोलैंड रूस से काफी चिंतित है और उसने अपने रक्षा खर्च में तेजी से इजाफा करना शुरू कर दिया है। सीमा यूक्रेन और रूस के कठपुतली राज्य, बेलारूस से लगती है। पोलैंड के पूर्वी हिस्से में पहले से ही घातक रूसी ड्रोन गिर रहे हैं और वे पुतिन के खिलाफ अग्रिम मोर्चे पर हैं। बात अगर पोलैंड की सैन्य शक्ति की करें तो पोलैंड के पास 450 से ज्यादा अलग अलग फाइटर जेट, करीब 600 टैंक, 200 से ज्यादा हेलीकॉप्टर और 60 से ज्यादा नौसैनिक युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं।
यूक्रेन युद्ध की आग में जलते रूसी सैनिक
द सन की रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन युद्ध में अभी तक एक लाख 10 हजार रूसी सैनिक मारे जा चुके हैं। इसके अलावा 11000 से ज्यादा रूसी टैंक तबाह हो चुके हैं। हजारों रूसी सैनिक अभी भी यूक्रेन के साथ पहली पंक्ति में लड़ रहे हैं। लेकिन हजारों हजार जवानों को खोने के बाद भी रूस अभी भी युद्ध की कीचड़ में फंस हुआ है। कई एक्सपर्ट इसे रूस की स्ट्रैटजिक कमजोरी मान रहे हैं। अमेरिका के पूर्व जनरल बेन हॉजेस के मुताबिक, रूस की वायुसेना, नौसेना और जमीनी बल अपनी असली क्षमता दिखाने में नाकाम रहे हैं। फिर भी व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन को महान देशभक्त युद्ध बताकर अभी भी जनता को अपने पक्ष में कर रखा है, जो एक बड़ी उपलब्धि है। उनके समर्थक इतिहास का हवाला देते हैं। और इतिहास गवाह है कि रूस ने पहले भी भारी जनहानि झेलकर दुश्मनों को हराया है, चाहे वह नेपोलियन हो या हिटलर। इसी मानसिकता ने रूस को आज भी युद्ध में खड़ा कर रखा है।
इसीलिए जब डोनाल्ड ट्रंप रूस को कागजी शेर कहते हैं, तो उनका दावा बकवास लगता है। ये बात खुद अमेरिकी अधिकारी भी मानते हैं। द सन की रिपोर्ट में पूर्व अमेरिकी जनरल बेन होजेस ने कहा है कि "मैं यह नहीं कहूंगा कि रूस एक 'कागज़ी शेर' है, लेकिन उनमें कई कमियां और कमजोरियां हैं।" उनका कहना है कि स्ट्रैटजी के फ्रंट पर रूस की तीनों सेनाओं में तालमेल और प्लानिंग की काफी कमी है, इसीलिए वो अभी भी युद्ध में उलझे हुए हैं। लेकिन उन्हें कागजी शेर कहना बिल्कुल गलत होगा, यानि आप उनकी क्षमता को नजरअंदाज कर रहे हैं या कुछ नहीं मान रहे हैं।
रूस पिछले दो दशकों से लंबी दूरी के मिसाइल हमले और साइबर वारफेयर में महारत हासिल कर चुका है। गाइल्स का मानना है कि "रूस की ताकत उसका आकार और उसका धैर्य है, लेकिन आज के युग में प्रिसीजन मिसाइलों से उसे चुनौती दी जा सकती है। उसका विशाल आकार उसका फायदा है तो उसकी कमजोरी भी है। रूस के लिए अपने विशाल भूभाग की रक्षा करना काफी मुश्किल है। यानी, सटीक प्लान के साथ रूस को हराया जा सकता है। लेकिन वो युद्ध विनाशकारी होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
रूस के पास सैनिकों की संख्या अमेरिका के बराबर है और उसके पास किसी भी अन्य नाटो सदस्य से ज्यादा सैनिक हैं, करीब 13 लाख सैनिक और रूस के पास लाखों सैनिक रिजर्व फोर्स में हैं। लेकिन फिर भी डोनाल्ड ट्रंप उन्हें 'कागजी शेर' कह रहे हैं। लेकिन हकीकत ये है कि रूस की युद्ध मशीनरी ऐसी है कि नाटो उसे यूक्रेन में अभी भी भेद नहीं पाया है।
रूस की सैन्य शक्ति से यूरोप क्यों होता है परेशान?
जमीन पर तैनात सैनिक किसी भी लड़ाकू बल की रीढ़ होते हैं, लेकिन परमाणु हथियार विरोधियों को डराने के लिए होता है। और पुतिन के पास किसी भी वैश्विक शक्ति की तुलना में दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु शस्त्रागार है। बात अगर जमीनी सैनिकों की करें तो अमेरिका के पास करीब 13 लाख 28 हजार जमीनी सैनिक हैं, जबकि रूस के पास 13 लाख 20 हजार जमीनी सैनिक हैं। इसके अलावा रूस के पास 20 लाख से ज्यादा रिजर्व फोर्स है, जिनका इस्तेमाल वो यूक्रेन युद्ध में करता रहता है। हालांकि, जब सभी NATO देशों की ताकत एक साथ जोड़ दी जाए तो यह आंकड़ा 33 लाख सैनिकों के साथ रूस से आगे निकल जाता है।
बात अगर डिफेंस सेक्टर में होने वाले खर्च की करें तो पश्चिमी देश, या यूं कहें नाटो पूरी तरह से अमेरिका पर निर्भर नजर आता है। इसीलिए आप देखते होंगे कि यूरोप, अमेरिका के चरणों में नतमस्तक नजर आता रहता है। अमेरिका अकेले NATO के कुल रक्षा बजट का करीब 70 प्रतिशत वहन करता है, जो करीब 860 अरब डॉलर सालाना है। पूरे यूरोप का संयुक्त रक्षा खर्च अब 400 अरब डॉलर के करीब पहुंच चुका है, जिसमें पोलैंड, एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया जैसे देश GDP के 3% से ज्यादा डिफेंस सेक्टर में खर्च कर रहे हैं। पोलैंड ने तो रक्षा बजट को बढ़ाकर 4.2% तक, यानि 35 अरब डॉलर कर दिया है। जिससे वह यूरोप की सबसे तेजी से बढ़ती सैन्य ताकत बन रहा है। यूके भी 2027 तक अपने रक्षा बजट को GDP के 2.5% और 2035 तक 5% करने की योजना पर काम कर रहा है। यानि, रूस के खिलाफ यूरोपीय देशों ने तेजी से अपनी सैन्य ताकत बढ़ानी शुरू कर दी है, लेकिन अभी कई सालों तक बगैर अमेरिका, यूरोप के पास इतनी शक्ति नहीं होगी कि वो रूस से टक्कर ले सके।
रूस के पास मिलिट्री हार्डवेयर की संख्या कितनी है?
रिपोर्ट के मुताबिक, रूस के पास 4 हजार 699 एयरक्राफ्ट हैं, जिनमें 3000 के करीब फाइटर जेट और बॉम्बर हैं। इसके अलावा 13 हजार टैंक, 1700 से ज्यादा मिलिट्री हेलीकॉप्टर और 600 से ज्यादा युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं, जिनमें परमाणु ऊर्जा से चलने वाली और परमाणु मिसाइलों को लॉन्च करने वाली पनडुब्बियां भी शामिल हैं। डोनाल्ड ट्रंप रूस की यही विशाल सैन्य शक्ति देखकर परेशान रहते हैं। इसीलिए वो बार बार यूरोपीय देश से नाटो में ज्यादा से ज्यादा फंड देने के लिए कहते रहते हैं। लेकिन यूरोपीय देश, जो आर्थिक संकट से जूझते रहते हैं, उनके पास नाटो के लिए फंड नहीं है।
बात अगर रक्षा खर्च की करें तो पिछले दस वर्षों में कुल यूरोपीय रक्षा खर्च में लगभग 175 अरब डॉलर की इजाफा होने का अनुमान है। और यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने महाद्वीप में फिर से हथियारों की रेस को काफी तेज कर दिया है। खासकर पोलैंड रूस से काफी चिंतित है और उसने अपने रक्षा खर्च में तेजी से इजाफा करना शुरू कर दिया है। सीमा यूक्रेन और रूस के कठपुतली राज्य, बेलारूस से लगती है। पोलैंड के पूर्वी हिस्से में पहले से ही घातक रूसी ड्रोन गिर रहे हैं और वे पुतिन के खिलाफ अग्रिम मोर्चे पर हैं। बात अगर पोलैंड की सैन्य शक्ति की करें तो पोलैंड के पास 450 से ज्यादा अलग अलग फाइटर जेट, करीब 600 टैंक, 200 से ज्यादा हेलीकॉप्टर और 60 से ज्यादा नौसैनिक युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं।
यूक्रेन युद्ध की आग में जलते रूसी सैनिक
द सन की रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन युद्ध में अभी तक एक लाख 10 हजार रूसी सैनिक मारे जा चुके हैं। इसके अलावा 11000 से ज्यादा रूसी टैंक तबाह हो चुके हैं। हजारों रूसी सैनिक अभी भी यूक्रेन के साथ पहली पंक्ति में लड़ रहे हैं। लेकिन हजारों हजार जवानों को खोने के बाद भी रूस अभी भी युद्ध की कीचड़ में फंस हुआ है। कई एक्सपर्ट इसे रूस की स्ट्रैटजिक कमजोरी मान रहे हैं। अमेरिका के पूर्व जनरल बेन हॉजेस के मुताबिक, रूस की वायुसेना, नौसेना और जमीनी बल अपनी असली क्षमता दिखाने में नाकाम रहे हैं। फिर भी व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन को महान देशभक्त युद्ध बताकर अभी भी जनता को अपने पक्ष में कर रखा है, जो एक बड़ी उपलब्धि है। उनके समर्थक इतिहास का हवाला देते हैं। और इतिहास गवाह है कि रूस ने पहले भी भारी जनहानि झेलकर दुश्मनों को हराया है, चाहे वह नेपोलियन हो या हिटलर। इसी मानसिकता ने रूस को आज भी युद्ध में खड़ा कर रखा है।
इसीलिए जब डोनाल्ड ट्रंप रूस को कागजी शेर कहते हैं, तो उनका दावा बकवास लगता है। ये बात खुद अमेरिकी अधिकारी भी मानते हैं। द सन की रिपोर्ट में पूर्व अमेरिकी जनरल बेन होजेस ने कहा है कि "मैं यह नहीं कहूंगा कि रूस एक 'कागज़ी शेर' है, लेकिन उनमें कई कमियां और कमजोरियां हैं।" उनका कहना है कि स्ट्रैटजी के फ्रंट पर रूस की तीनों सेनाओं में तालमेल और प्लानिंग की काफी कमी है, इसीलिए वो अभी भी युद्ध में उलझे हुए हैं। लेकिन उन्हें कागजी शेर कहना बिल्कुल गलत होगा, यानि आप उनकी क्षमता को नजरअंदाज कर रहे हैं या कुछ नहीं मान रहे हैं।
रूस पिछले दो दशकों से लंबी दूरी के मिसाइल हमले और साइबर वारफेयर में महारत हासिल कर चुका है। गाइल्स का मानना है कि "रूस की ताकत उसका आकार और उसका धैर्य है, लेकिन आज के युग में प्रिसीजन मिसाइलों से उसे चुनौती दी जा सकती है। उसका विशाल आकार उसका फायदा है तो उसकी कमजोरी भी है। रूस के लिए अपने विशाल भूभाग की रक्षा करना काफी मुश्किल है। यानी, सटीक प्लान के साथ रूस को हराया जा सकता है। लेकिन वो युद्ध विनाशकारी होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
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