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छत्तीसगढ़ का अधूरा विष्णु मंदिर: एकादशी, आस्था और अधूरे स्वप्न की रहस्यमयी कथा

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छत्तीसगढ़ का अधूरा विष्णु मंदिर: एकादशी, आस्था और अधूरे स्वप्न की रहस्यमयी कथा

सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार, हर महीने दो पक्ष होते हैं—शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष—और दोनों में 11वीं तिथि को एकादशी कहा जाता है। वर्ष में कुल 24 एकादशी आती हैं, जिनमें प्रत्येक तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘कामदा एकादशी’ कहते हैं, जो इस बार 8 अप्रैल को मनाई गई।

यह दिन न केवल व्रत का होता है, बल्कि आध्यात्मिक साधना और भगवान विष्णु की उपासना के लिए भी विशेष माना जाता है। इसी संदर्भ में छत्तीसगढ़ का एक अधूरा मंदिर ध्यान आकर्षित करता है, जो हजार वर्षों से अधूरा ही खड़ा है, लेकिन उसकी कथा आज भी लोगों को आकर्षित करती है।

कामदा एकादशी और भगवान विष्णु का संबंध

कामदा का अर्थ है—कामना या इच्छा। यह एकादशी जीवन के चार पुरुषार्थों में से एक ‘काम’ से जुड़ी है। मान्यता है कि देवी कामदा इच्छाओं की पूर्तिकर्ता हैं। शिव पुराण में उन्हें शिव का स्त्री रूप बताया गया है, जिन्होंने सती और पार्वती के रूप में अवतार लिया।

पद्म पुराण के अनुसार, एक बार योगनिद्रा में लीन भगवान विष्णु पर मूर नामक असुर ने आक्रमण किया। उसी समय भगवान के शरीर से एक दिव्य कन्या प्रकट हुई, जिसने असुर का वध किया। यह कन्या एकादशी तिथि को प्रकट हुई थी, इसलिए भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया कि जो भी उनका भक्त होगा, वह इस कन्या का भी भक्त होगा। तभी से एकादशी व्रत का महत्व बढ़ गया।

एक ऐसा मंदिर, जो एकादशी के बाद भी अधूरा

छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा में स्थित भगवान विष्णु का एक प्राचीन मंदिर आज भी अधूरा है। यह 11वीं सदी का मंदिर कलचुरी राजा जाजवल्यदेव द्वारा बनवाया गया था। वे स्वयं भी साल की 24 एकादशियों का व्रत रखते थे। जब भारत पर आक्रांताओं के हमले हो रहे थे, तब इस मंदिर का निर्माण सनातन परंपरा को जीवित रखने के लिए किया गया था।

इस मंदिर की स्थापत्य कला अद्भुत है। नागर शैली में बना यह मंदिर पूर्वाभिमुख है और सप्तरथ योजना पर आधारित है। इसके गर्भगृह, महामंडप, भित्ति चित्रों और मूर्तिकला में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सीताहरण और कृष्ण लीला जैसी धार्मिक कथाओं को अत्यंत सुंदरता से उकेरा गया है।

अधूरा क्यों रह गया यह भव्य मंदिर?

मंदिर के अधूरेपन को लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि जांजगीर और पास के शिवरीनारायण में एक साथ दो विष्णु मंदिरों का निर्माण हो रहा था। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि जो मंदिर पहले बनेगा, उसी में वे विराजमान होंगे। शिवरीनारायण मंदिर पहले बनकर तैयार हो गया, वहां विष्णु की मूर्ति स्थापित हुई, लेकिन जांजगीर का मंदिर अधूरा रह गया।

एक अन्य कथा के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल के भीम द्वारा किया जा रहा था। कहा जाता है कि निर्माण के दौरान उनकी छेनी बार-बार एक तालाब में गिर जाती थी, जिसे ‘भीम तालाब’ कहा जाता है। अन्ततः जब छेनी तालाब में गिरकर नहीं मिली, तो अधूरा कार्य छोड़कर भीम चले गए। उसी दिन से यह मंदिर बिना शिखर और बिना मूर्ति के अधूरा पड़ा है।

आज भी जीवित है ये आस्था

भले ही यहां पूजा न होती हो, लेकिन यह मंदिर छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। इसकी स्थापत्य कला, इतिहास और रहस्य आज भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यह मंदिर न केवल एक स्थापत्य चमत्कार है, बल्कि यह सनातन धर्म की उस जिजीविषा का प्रतीक भी है, जो हजार वर्षों बाद भी अपने मूल में जीवित है।

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