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Dussehra 2025: 2 या 3 अक्टूबर, कब मनेगा विजय का पर्व? दूर करें हर कन्फ्यूजन

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News India Live, Digital Desk: हर साल जब त्योहारों का मौसम आता है, तो दिलों में एक अलग ही खुशी और उमंग छा जाती है. नवरात्रि के नौ दिनों की भक्ति के बाद इंतजार रहता है दशहरे का, जिसे विजयदशमी भी कहते हैं. यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का सबसे बड़ा प्रतीक है, जब भगवान श्री राम ने अहंकारी रावण का वध किया था और मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार कर धरती को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था.लेकिन, जैसा अक्सर होता है, इस साल भी दशहरे की तारीख को लेकर लोगों में थोड़ा असमंजस है. कोई कह रहा है कि दशहरा 2 अक्टूबर को है तो कोई 3 अक्टूबर को बता रहा है. तो चलिए, आज हम आपका यह सारा कन्फ्यूजन दूर करते हैं और जानते हैं कि आखिर कब मनाया जाएगा विजय का यह महापर्व और क्या है रावण दहन का सही समय.किस दिन है दशहरा? 2 या 3 अक्टूबर?इस साल दशहरा गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 1 अक्टूबर 2025 की शाम को शुरू हो जाएगी और 2 अक्टूबर की शाम तक रहेगी.हमारे शास्त्रों में उदयातिथि को बहुत महत्व दिया जाता है, यानी जिस दिन सूर्योदय के समय जो तिथि होती है, त्योहार उसी दिन मनाया जाता है. इस हिसाब से दशहरा 2 अक्टूबर को ही मनाना शास्त्र सम्मत है.दशमी तिथि का समय:दशमी तिथि की शुरुआत: 1 अक्टूबर 2025, शाम 7 बजकर 01 मिनट से.दशमी तिथि का समापन: 2 अक्टूबर 2025, शाम 7 बजकर 10 मिनट पर.रावण दहन का शुभ मुहूर्त क्या है?दशहरे के दिन का सबसे बड़ा आकर्षण होता है रावण दहन. रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के बड़े-बड़े पुतले जलाकर हम अहंकार, बुराई और अज्ञान के नाश का संदेश देते हैं. शास्त्रों के अनुसार, रावण दहन हमेशा प्रदोष काल में, यानी सूर्यास्त के बाद ही करना चाहिए.इस साल 2 अक्टूबर को रावण दहन के लिए सबसे शुभ समय सूर्यास्त के बाद रहेगा.विजय मुहूर्त और शस्त्र पूजा का समयदशहरा सिर्फ रावण दहन का ही दिन नहीं है, बल्कि यह किसी भी नए काम की शुरुआत के लिए बेहद शुभ माना जाता है. इसे 'विजयदशमी' भी इसीलिए कहते हैं क्योंकि इस दिन जो भी कार्य शुरू किया जाता है, उसमें विजय मिलने की संभावना बढ़ जाती है.विजय मुहूर्त: दोपहर 02 बजकर 09 मिनट से दोपहर 02 बजकर 56 मिनट तक.यह 47 मिनट का समय किसी भी तरह की पूजा या नए काम की शुरुआत के लिए अत्यंत शुभ है.अपराह्न पूजा का समय: दोपहर 01 बजकर 21 मिनट से दोपहर 03 बजकर 44 मिनट तक.इस दिन शस्त्र पूजा की भी परंपरा है. पुराने समय में क्षत्रिय और राजा-महाराजा इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते थे, ताकि युद्ध में हमेशा उनकी विजय हो. आज भी लोग अपने वाहनों, औजारों और अपने काम से जुड़ी चीजों की पूजा करते हैं. शस्त्र पूजा के लिए विजय मुहूर्त का समय ही सबसे उत्तम माना गया है.तो अब जब सारी उलझन दूर हो गई है, तो पूरे जोश और उत्साह के साथ इस विजय पर्व को मनाने की तैयारी करें और अपने अंदर की सभी बुराइयों का भी दहन करने का संकल्प लें.
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