नई दिल्ली। एनडीए ने महाराष्ट्र के गवर्नर सीपी राधाकृष्णन को उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। सीपी राधाकृष्णन को उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन के सामने दोराहा बना दिया है। इसकी वजह ये है कि सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु के ही हैं और अगर एमके स्टालिन ने उनको समर्थन न दिया, तो तमिल अस्मिता के मसले पर उनको सवालों के घेरे में आना पड़ सकता है। तमिल भाषा और राज्य की अस्मिता का नाम लेकर एमके स्टालिन को हिंदी विरोध में उतरते बीते दिनों ही देखा गया है। ऐसे में नजर इस पर है कि यूपीए के साथ स्टालिन बने रहते हैं या सीपी राधाकृष्णन का समर्थन करते हैं। बता दें कि एनडीए का हिस्सा रही शिवसेना (तब अविभाजित) ने यूपीए की राष्ट्रपति उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल को समर्थन दिया था।
सीपी राधाकृष्णन भले ही आरएसएस की शाखा में कम उम्र से ही गए और कई राष्ट्रीय मुद्दों पर तमिलनाडु में 93 दिन की रथयात्रा की, लेकिन हकीकत ये है कि स्टालिन की डीएमके और एआईएडीएमके समेत कई दलों से उनकी अच्छी बनती रही है। सीपी राधाकृष्णन ने ही 1999 में डीएमके को एक बार फिर एनडीए गठबंधन में शामिल कराया था। उस वक्त स्टालिन के पिता एम. करुणानिधि डीएमके के सुप्रीमो हुआ करते थे। तो क्या पुरानी करीबी और दोस्ती के नाते एमके स्टालिन अब राधाकृष्णन को उप राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन देंगे? ये सवाल इसलिए और भी अहम हो जाता है, क्योंकि अगले साल यानी 2026 में तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव होने हैं।
अगर डीएमके ने तमिल अस्मिता के नाम पर एनडीए के उप राष्ट्रपति उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन को समर्थन देने का फैसला किया, तो कांग्रेस नीत विपक्ष के इंडी गठबंधन के लिए क्या रास्ता रह जाएगा? इस सवाल के जवाब में ये चर्चा भी हो रही है कि इस साल बिहार में चुनाव है, तो इंडी गठबंधन वहां के किसी बड़े नेता को उप राष्ट्रपति का चुनाव लड़ाकर बीजेपी और जेडीयू के लिए दिक्कत खड़ी कर सकता है। अगर कांग्रेस और इंडी गठबंधन के दलों ने ये कदम उठाया, तो उप राष्ट्रपति चुनाव दिलचस्प बन सकता है। अगर नंबर गेम की बात करें, तो एनडीए आसानी से सीपी राधाकृष्णन को उप राष्ट्रपति का चुनाव जितवा लेगा। स्टालिन की पार्टी डीएमके की स्थिति को देखें, तो लोकसभा में उसके 22 सांसद हैं। वहीं, राज्यसभा में डीएमके के 10 सांसद हैं। उप राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के ही सांसद वोट डालते हैं। ऐसे में अगर डीएमके का समर्थन एनडीए को मिलता है, तो इससे विपक्ष के गठबंधन को झटका लगेगा।
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