बेंगलुरु। कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को अहम फैसले में कहा है कि अगर कोई महिला किसी नाबालिग बच्चे को बहलाकर या दबाव डालकर यौन संबंध बनाती है, तो उस पर भी पॉक्सो कानून लग सकता है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक 52 साल की महिला की ओर से दाखिल की गई याचिका पर ये फैसला सुनाया। महिला ने याचिका में पॉक्सो एक्ट के तहत यौन उत्पीड़न के मामले को रद्द करने की मांग की थी। कर्नाटक हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि पॉक्सो एक्ट तटस्थ यानी लिंग आधारित नहीं है। पॉक्सो एक्ट पुरुषों और महिलाओं पर समान रूप से लागू होता है।
महिला पर आरोप लगा है कि उसने मई 2020 में 13 साल के बच्चे का यौन उत्पीड़न किया था। कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने याचिका पर सुनवाई के बाद कहा कि पॉक्सो एक्ट प्रगतिशील है और बचपन की पवित्रता की रक्षा के लिए बनाया गया है। कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट किसी भी लिंग के बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाया गया। कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के कुछ प्रावधानों में लिंग आधारित भाषा है, लेकिन पूरा एक्ट देखें, तो इसकी प्रस्तावना और उद्देश्य समावेशी है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट की धारा 3 और 5 गंभीर यौन उत्पीड़न की परिभाषा देती हैं। जबकि, पॉक्सो एक्ट की धारा 4 और 6 दंडनीय अपराध का आधार हैं।
जस्टिस नागप्रसन्ना ने महिला की इस दलील को भी मानने से इनकार किया कि इस मामले में चार साल देरी से शिकायत हुई। कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह की देरी पीड़ित बच्चों के मामलों में कार्यवाही रद्द करने का आधार नहीं हो सकती। कोर्ट ने ये मानने से भी इनकार कर दिया कि महिलाएं यौन अपराध में सिर्फ निष्क्रिय भागीदार हो सकती हैं। कोर्ट ने इस धारणा को पुराना बताया और कहा कि मौजूदा न्यायशास्त्र पीड़ित की वास्तविकता को मानता है और रुढ़ि को कानूनी जांच पर हावी नहीं होने देता। इस मामले में महिला ने याचिका में तर्क दिया था कि उसके खिलाफ जून 2024 में केस दर्ज हुआ। आरोपी ने ये तर्क भी दिया कि बच्चे के यौन उत्पीड़न की शिकायत उसके परिवार से वित्तीय विवाद की वजह से है और रकम की अदायगी से बचने के लिए फर्जी केस किया गया है। कर्नाटक हाईकोर्ट महिला की दलीलों से प्रभावित नहीं हुआ।
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