Bharat Ek Soch: ‘देवकी नंदन’ श्रीकृष्ण में ऐसा क्या है जो सदियों से मानवता को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है? आखिर श्रीकृष्ण कौन हैं, जिनके मार्गदर्शन में मानव सभ्यता ने प्रगति की है। द्वापर युग के श्रीकृष्ण जीवन की पूर्णता का प्रतीक हैं। जनमानस ने उन्हें अपनी आस्था और आवश्यकताओं के अनुसार अपनाया है। श्रीकृष्ण एक ऐसे नायक हैं, जो युद्धभूमि में भी हैं और रंगभूमि में भी। वे कुरुक्षेत्र में गीता का ज्ञान देते हैं और वृंदावन में नटखट लीलाएं करते हैं। आचार्य रजनीश के अनुसार, श्रीकृष्ण संन्यासी और गृहस्थ, योगी और प्रेमी, राजनीति के ज्ञाता और मानवता के मार्गदर्शक हैं।
श्रीकृष्ण की शिक्षाएं और वर्तमान चुनौतियाँ वर्तमान चुनौतियों से निपटने में कितने मददगार हैं श्रीकृष्ण?
श्रीकृष्ण न तो रिश्तों के मोह में बंधते हैं और न ही मर्यादा के बंधनों में। उनका जीवन चुनौतियों से भरा है, और वे हर परिस्थिति के अनुसार आगे बढ़ते हैं। यह समझना आवश्यक है कि हम जिस श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं, वे हमारे समाज के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। वे किस प्रकार की कर्मयोग की बात करते हैं और हमारे नेताओं को उनसे क्या प्रेरणा लेनी चाहिए।
श्रीकृष्ण का संघर्ष और नेतृत्व मानव जीवन में श्रीकृष्ण ने भी झेली थीं कई मुश्किलें
द्वापर युग के श्रीकृष्ण को राजनीतिज्ञों का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। उनका जन्म कंस की जेल में हुआ और यशोदा-नंद बाबा के घर में उनका पालन-पोषण हुआ। उनके जीवन में भी कई चुनौतियाँ थीं, लेकिन उन्होंने संवाद का रास्ता नहीं छोड़ा। उन्होंने धर्म और कर्म को नए तरीके से परिभाषित किया और सही-गलत के बीच चुनाव करते समय व्यक्तिगत रिश्तों को किनारे रखा।
कुरुक्षेत्र जैसी स्थिति का सामना वर्तमान दुनिया में बनी हुई है कुरुक्षेत्र जैसी स्थिति
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने श्रीकृष्ण को महानतम डिप्लोमेट बताया है। आज की दुनिया में भी कुरुक्षेत्र जैसी स्थिति है, जहां भारत को अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय लेने की आवश्यकता है। श्रीकृष्ण ने रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित करने का मार्ग दिखाया है।
श्रीकृष्ण का कूटनीतिक दृष्टिकोण विदेश सेवा अफसरों को दिया जाता श्रीकृष्ण का उदाहरण
भारतीय विदेश सेवा के अफसरों को एथिकल और कल्चरल डिप्लोमेसी की ट्रेनिंग में श्रीकृष्ण का उदाहरण दिया जाता है। पांडवों के वनवास के बाद राजपाट लौटाने के लिए श्रीकृष्ण को दूत बनाया गया।
श्रीकृष्ण की चतुराई कर्ण को प्रस्ताव देकर श्रीकृष्ण ने दिखाई थी चतुरता
श्रीकृष्ण ने कर्ण को पांडवों के साथ आने का प्रस्ताव दिया, यह जानते हुए कि वह दुर्योधन का साथ नहीं छोड़ेगा। लेकिन उन्होंने कर्ण को उसके जन्म और परिवार से जुड़ी जानकारी देकर उसे भावनात्मक रूप से कमजोर किया।
लोकतंत्र में लेन-देन की राजनीति लोकतंत्र के लिए लेन-देन की राजनीति ठीक नहीं
वर्तमान लोकतंत्र में चुनाव जीतने के लिए वोटरों को मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का चलन बढ़ रहा है। श्रीकृष्ण के स्टेट-क्राफ्ट में लोकहित सबसे ऊपर है। वे क्रेडिट लेने की होड़ से दूर रहते थे और लोककल्याण के लिए अपयश लेने में संकोच नहीं करते थे।
श्रीकृष्ण का दूरदर्शी दृष्टिकोण कर्म के आधार पर तय होता था इंसान का वर्ग
श्रीकृष्ण के समय में भारत में जाति नहीं, बल्कि कर्म के आधार पर वर्गीकरण होता था। वे एक ऐसे लीडर थे, जो दूर की सोच रखते थे और भविष्य की योजना बनाते थे।
श्रीकृष्ण का जीवनदर्शन
श्रीकृष्ण केवल पौराणिक कथाओं के पात्र नहीं हैं, बल्कि वे मानवता को आगे बढ़ाने वाली एक जीवनशैली का प्रतीक हैं। उनके दिखाए रास्ते पर चलकर ही मानवता ने अपनी बेहतरी देखी है।
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