ज्योतिष: सनातन धर्म में प्रत्येक दिन का एक विशेष देवता होता है। शुक्रवार को भाग्य के कारक शुक्र ग्रह की देवी मां लक्ष्मी मानी जाती हैं। इसके साथ ही, यह दिन माता संतोषी का भी होता है। सुख, शांति और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए लोग मां संतोषी की पूजा करते हैं। इस दिन विशेष रूप से 16 शुक्रवार तक व्रत करने की परंपरा है। पूजा के लिए सुबह जल्दी उठकर घर की सफाई करना आवश्यक है, इसके बाद स्नान करके विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार, संतोषी माता सुख, संतोष और सौभाग्य की देवी हैं। वे श्रीगणेश और माता रिद्धि-सिद्धि की पुत्री हैं। उनका परिवार धन, सोना, चांदी और रत्नों से भरा हुआ है। उनकी कृपा से परिवार में सुख-शांति और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
मां संतोषी की पूजा विधि
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार, मां संतोषी की पूजा शुक्रवार को विधिपूर्वक करनी चाहिए।
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और सफाई करें।
- पूजन स्थल पर मां संतोषी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- एक बड़े पात्र में शुद्ध जल भरकर कलश रखें और उसमें गुड़-चना रखें।
- मां के समक्ष घी का दीप जलाएं और उन्हें अक्षत, फूल, नारियल, इत्र और लाल वस्त्र अर्पित करें।
- फिर गुड़-चना का भोग लगाएं और उनकी कथा पढ़ें।
- कथा सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने चने रखें।
- कथा समाप्त होने पर आरती करें और गुड़-चना का प्रसाद बांटें।
अंत में, जल को घर में छिड़कें और बचे हुए जल को तुलसी को अर्पित करें। इस प्रकार 16 शुक्रवार तक नियमित उपवास रखें। अंतिम शुक्रवार को व्रत का उद्यापन करें, 8 बालिकाओं को खीर-पूड़ी खिलाकर विदा करें और फिर स्वयं भोजन करें।
कथा और आरती के बाद गुड़ और चना गौ माता को खिलाएं और कलश का गुड़-चना सभी को प्रसाद के रूप में बांट दें।
इस प्रकार विधिपूर्वक श्रद्धा और प्रेम से 16 शुक्रवार तक उपवास रखें। यह व्रत शीघ्र विवाह, व्यवसाय और शिक्षा में सफलता के लिए किया जा सकता है।
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