Next Story
Newszop

भगवान शिव और शंकर में क्या अंतर है, इस वायरल फुटेज में जानिए दोनों के स्वरूप और शक्तियों में गहरा अंतर

Send Push

भगवान शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता है। उनके हिंदू भक्त उन्हें भगवान शंकर भी कहते हैं। भगवान शिव को गंगाधर, भोलेनाथ, महेश, रुद्र, गिरीश जैसे नामों से भी जाना जाता है। भगवान शंकर की पूजा सौम्य और उग्र दोनों रूपों में की जाती है। त्रिदेवों में भगवान शिव को संहार का देवता भी माना जाता है। भगवान शिव के जितने नाम हैं, उतने ही रूप भी हैं। उनके हर रूप के पीछे एक कथा है।

कुछ लोगों के लिए भगवान शिव और शंकर एक ही हैं, एक ही शक्ति के प्रतीक हैं और दोनों की पूजा एक ही प्रकार से की जाती है। लेकिन भगवान शिव और शंकर अलग-अलग हैं और दोनों के रूप भी अलग-अलग हैं। हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान शिव के नाम में हर समस्या का समाधान छिपा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शिव के हर नाम का अलग प्रभाव होता है। महादेव के हर नाम में एक अलग शक्ति समाहित है जो संसार की किसी भी समस्या का समाधान कर सकती है।

क्या भगवान शिव और शंकर अलग हैं?
सनातन परंपरा को मानने वाले लोग शिव और शंकर को एक ही मानते हैं। शिव पुराण के अनुसार, सबसे पहले एक प्रकाश पुंज की उत्पत्ति हुई। इसी प्रकाश पुंज से ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है कि जब ब्रह्माजी ने इस प्रकाश पुंज से पूछा कि तुम कौन हो, तो उस पुंज से एक आकाशवाणी हुई कि मैं शिव हूँ। यह आकाशवाणी सुनकर ब्रह्माजी ने प्रकाश पुंज से कहा कि तुम साकार रूप धारण कर सकते हो, जिसके बाद ही उस प्रकाश पुंज से भगवान शंकर की उत्पत्ति हुई। इसीलिए कहा जाता है कि भगवान शिव और शंकर एक ही शक्ति के अंश हैं, लेकिन दोनों अलग-अलग हैं। भगवान शिव और शंकर में बस इतना ही अंतर है कि शिव प्रकाश पुंज के रूप हैं जिनकी हम शिवलिंग के रूप में पूजा करते हैं और भगवान शंकर साकार देवता हैं। भगवान शंकर निराकार शिव की शिवलिंग के रूप में पूजा करते हैं। आपने शंकर जी को ऊँचे पहाड़ों पर तपस्या करते या कई जगहों पर योगी के रूप में देखा होगा। भगवान शंकर आँखें बंद करके ध्यान मुद्रा में बैठे दिखाई देते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि शंकर जी साकार हैं, जबकि भगवान शिव प्रकाश स्वरूप हैं और इसलिए शिव का रूप निराकार है। भगवान शिव और शंकर में अंतर

हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे, लेकिन पुराणों में उनके जन्म का वर्णन किया गया है। विष्णु पुराण में लिखा है कि जिस प्रकार भगवान विष्णु ब्रह्मा की नाभि से उत्पन्न हुए, उसी प्रकार भगवान शिव विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए। भगवान शिव से जुड़ी एक और मान्यता यह है कि रुद्रदेवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं, जबकि नंदी और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं।

हिंदू धर्मग्रंथों में माना जाता है कि शिव ईश्वर का स्वरूप और परम शक्ति हैं। भगवान शिव के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शंकर ही सृष्टि का निर्माण, संचालन और संहार करते हैं। भगवान शिव और शंकर में सबसे आसान अंतर दोनों की मूर्ति से ही किया जा सकता है। भगवान शंकर की मूर्ति जहाँ पूर्ण आकार में होती है, वहीं शिव की मूर्ति लिंग या अंडाकार आकार में होती है। शिवरात्रि भगवान शंकर की स्मृति में मनाई जाती है, न कि शंकर रात्रि। माना जाता है कि भगवान शिव के दो शरीर हैं। शिव की पूजा सबसे अधिक लिंग रूप में की जाती है। लिंग शब्द को लेकर लोगों में काफी भ्रम है, लेकिन संस्कृत में लिंग का अर्थ प्रतीक होता है। अतः शिवलिंग का अर्थ शिव का संयुक्त प्रतीक है।

Loving Newspoint? Download the app now