बद्रीनाथ भगवान विष्णु का निवास स्थान है, जहाँ दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। बद्रीनाथ वह स्थान है जहाँ दर्शन करने मात्र से व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा सकता है। बद्रीनाथ चार प्रमुख धामों में से एक है। बद्रीनाथ के बारे में एक कहावत भी है कि "जो जाए बद्री, वो न आए ओदरी", इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन करता है। उसे दोबारा गर्भ में नहीं आना पड़ता। साथ ही, वह इस जन्म के पापों से भी मुक्त हो जाता है। आपको बता दें कि बद्रीनाथ के कपाट इस साल 4 मई को खुलने वाले हैं। भविष्य पुराण और विष्णु पुराण में बद्रीनाथ के बारे में कई रहस्यों के बारे में बताया गया है। तो आज हम आपको बद्रीनाथ से जुड़े उन्हीं रहस्यों के बारे में बताने जा रहे हैं।
बद्रीनाथ का नाम कैसे पड़ा
ऐसा माना जाता है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ मंदिर का नाम भगवान विष्णु के नाम पर नहीं, बल्कि माता लक्ष्मी के नाम पर रखा गया है। मान्यताओं और कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु योग ध्यान मुद्रा में लीन थे, तभी भारी बर्फबारी के कारण वे पूरी तरह बर्फ से ढक गए। उनकी यह दशा देखकर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो गया और वे अत्यंत व्याकुल हो गईं। तब माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के पास गईं और एक बेर के वृक्ष (जिसका नाम बद्री था) का रूप धारण किया और सारा हिम उस वृक्ष पर गिरने लगा। माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के साथ वर्षों तक बर्फ, वर्षा, धूप में कठोर तपस्या की। जब भगवान विष्णु ने अपनी आँखें खोलीं, तो उन्होंने देखा कि माता लक्ष्मी पूरी तरह बर्फ से ढकी हुई थीं। तब भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा कि आपने बद्री वृक्ष के रूप में मेरी रक्षा की है, इसलिए आज से मुझे बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा और इस धाम में मेरे साथ आपकी भी पूजा की जाएगी। जिस स्थान पर भगवान विष्णु ने तपस्या की थी, वहाँ आज भी तप्त कुंड नामक एक कुंड है जिसका पानी हर मौसम में गर्म रहता है।
बद्रीनाथ मंदिर कितने भागों में विभाजित है
इस मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति आदिगुरु शंकराचार्य ने स्थापित की थी। यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप।
भगवान बद्री की मूर्ति अचानक कहाँ गायब हो गई थी?
एक बार इस मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति मंदिर से गायब हो गई थी। बद्रीनाथ की मूर्ति की लंबाई 1 मीटर यानी 3.3 फीट है। जब हिंदू और बौद्ध धर्म के बीच संघर्ष हुआ, उस समय मूर्ति की रक्षा के लिए इसे मंदिर के पास स्थित नारद कुंड में छिपा दिया गया था। इसके बाद, 8वीं शताब्दी में शंकराचार्य ने नारद कुंड से मूर्ति प्राप्त की। उन्होंने इसे एक गुफा में स्थापित किया, लेकिन कहा जाता है कि मूर्ति वहाँ से अचानक फिर से गायब हो गई। इसके बाद रामानुजाचार्य ने मूर्ति को पुनः स्थापित करवाया। मंदिर की मान्यता के संबंध में पद्म पुराण में कहा गया है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने मुर नामक राक्षस का वध किया था।
कैसी है भगवान बद्री की मूर्ति?
भगवान बद्री नारायण की भुजाओं में शंख और चक्र है और दो भुजाएँ योग मुद्रा में हैं। बद्री वृक्ष के नीचे बद्री नारायण के दर्शन होते हैं, उनके दोनों ओर कुबेर और गरुड़, नारद, नारायण और नर विराजमान हैं। उद्धव बद्री नारायण के दाहिनी ओर खड़े हैं। सबसे दाहिनी ओर नर और नारायण हैं। नारद मुनि दाहिनी ओर घुटनों के बल बैठे हैं और उन्हें देखना थोड़ा मुश्किल है। बाईं ओर धन के देवता कुबेर और चाँदी के गणेश जी हैं। गरुड़ बद्री नारायण के बाईं ओर घुटनों के बल बैठे हैं।
जब भगवान विष्णु ने भगवान शिव और माता पार्वती को बद्रीनाथ से बाहर निकाल दिया था
ऐसा माना जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने नीलकंठ पर्वत के पास एक बालक का रूप धारण किया था। भगवान विष्णु अपने ध्यान के लिए एक शांत स्थान खोज रहे थे। तब भगवान विष्णु को अलकनंदा नदी के किनारे यह स्थान बहुत पसंद आया। पहले भगवान शिव और माता पार्वती इसी स्थान पर निवास करते थे। एक दिन जब भगवान शिव और माता पार्वती जा रहे थे, तो उन्हें एक बालक के रोने की आवाज़ सुनाई दी। माता पार्वती बालक को रोते हुए नहीं देख सकीं, इसलिए उन्होंने बालक को गोद में उठाने की कोशिश की। भगवान शिव ने उन्हें ऐसा करने से मना किया और कहा कि यह एक भ्रम है। लेकिन, माता पार्वती नहीं मानीं और बालक को उठाकर घर के अंदर ले गईं। फिर जब भगवान शिव और माता पार्वती घर से बाहर एक झरने की ओर गए और लौटे, तो घर का द्वार बंद था। तब भगवान शिव ने कहा कि यह तुम्हारा बालक है, इसलिए अब मैं भी कुछ नहीं कर सकता। तब माता पार्वती और भगवान शिव वहाँ से आगे बढ़ गए। कहा जाता है कि इसी स्थान को छोड़कर भगवान शिव और माता पार्वती केदारनाथ पहुँचे।
कलियुग में बद्रीनाथ की महिमा
पुराण के अनुसार, प्रलय और सूखे के बाद गंगा लुप्त हो जाएँगी। तब बद्रीनाथ दिखाई नहीं देगा। कहा जाता है कि इसी दिन नर नारायण पर्वत भी आपस में मिल जाएँगे, तब बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। बद्रीनाथ ही नहीं, केदारनाथ मंदिर भी पूरी तरह लुप्त हो जाएगा। इसके बाद कई वर्षों बाद भविष्य बद्री नामक एक नए तीर्थस्थल की स्थापना होगी। जहाँ भक्त पूजा-अर्चना कर सकेंगे।
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