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हिंदू मां को मुस्लिम बेटे ने दी मुखाग्नि: बोला- त्रिवेणी में विसर्जित करूंगा अस्थियां, मिसाल बना रिश्ता

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भीलवाड़ा के गांधीनगर इलाके में एक ऐसी कहानी सामने आई है, जो दिल को छू लेती है। 42 साल के असगर अली ने अपनी पड़ोसी 67 साल की शांति देवी को न सिर्फ मां का दर्जा दिया, बल्कि उनके निधन के बाद बेटे का फर्ज भी बखूबी निभाया। असगर ने शांति देवी की अर्थी को कंधा दिया, मुखाग्नि दी और सारे अंतिम संस्कार पूरे किए। इस हिंदू-मुस्लिम मां-बेटे की जोड़ी ने प्यार और इंसानियत की ऐसी मिसाल कायम की, जो हर किसी को प्रेरित करती है।

“मेरे लिए सब कुछ खत्म हो गया। मां के बिना मैं लावारिस और बिल्कुल अकेला हो गया हूं। मेरा दुख कोई नहीं समझ सकता। दुआ करता हूं कि मुझे हर जन्म में ऐसी ही मां मिले,” असगर ने भारी मन से कहा। शांति देवी उनके लिए पड़ोसी नहीं, बल्कि मां से बढ़कर थीं। दोनों के बीच का रिश्ता इतना गहरा था कि शांति ने असगर पर ममता की छांव दी, और असगर ने उनकी हर जरूरत का ख्याल रखा।

30 साल पुराना रिश्ता

असगर ने बताया कि शांति देवी और उनके पति मेलों में छोटी-मोटी दुकानें लगाते थे। उनके माता-पिता भी यही काम करते थे। करीब 30 साल पहले दोनों परिवारों की मुलाकात हुई थी। उस वक्त असगर छोटे थे और शांति देवी को ‘मासी मां’ कहकर बुलाते थे। दोनों परिवार एक ही मोहल्ले में अलग-अलग घरों में रहते थे। शांति देवी के पति के निधन के बाद, 2010 में वे अपने बेटे के साथ जंगी मोहल्ले में सलीम कुरैशी के मकान में किराए पर रहने आईं। असगर का परिवार उसी मकान के ऊपरी हिस्से में रहता था। धीरे-धीरे दोनों परिवारों के बीच सुख-दुख बंटने लगे। शांति देवी असगर का मां की तरह ख्याल रखती थीं। दिन में कई बार पूछतीं, “बेटा, खाना खाया? तबीयत कैसी है?” असगर को मां जैसा प्यार मिलता था।

दुख में बंधा रिश्ता

2017 में असगर के पिता का निधन हुआ। उस मुश्किल वक्त में शांति देवी ने उनकी मां को हिम्मत दी। लेकिन 2018 में शांति देवी का जवान बेटा चल बसा। उसे किसी जानवर ने काट लिया था, जिसके संक्रमण से उसकी मौत हो गई। इसके बाद शांति देवी अकेली पड़ गईं। असगर की शादी हो चुकी थी, लेकिन शांति देवी ने उनकी मां और मासी मां दोनों का प्यार बरसाया। असगर कहते हैं, “मां से ज्यादा प्यार तो मासी मां ने दिया।”

कोरोना के पहले चरण में शांति देवी की तबीयत बिगड़ी। असगर उन्हें महात्मा गांधी हॉस्पिटल ले गए, लेकिन वहां स्टाफ और गार्ड से उनकी बहस हो गई। गुस्से में असगर ने कहा, “मां, मैं घर पर ही तेरी सेवा करूंगा।” घर लाकर उन्होंने उनकी पूरी देखभाल की। दवाइयां दीं और शांति देवी स्वस्थ हो गईं। दो साल पहले असगर की मां का निधन हुआ। उस वक्त भी शांति देवी ने उन्हें मां की कमी महसूस नहीं होने दी।

मां जैसा प्यार

शांति देवी असगर के लिए खाना बनातीं। उनकी पसंद की ग्वार की फली, पापड़ और नमकीन सेव बनाकर खिलातीं। सर्दियों में उनके नहाने का पानी गर्म करतीं, कपड़े धोतीं। असगर जब काम से लौटते, तो वे प्यार से कहतीं, “मेरा बेटा आ गया।” बीमारी में खिचड़ी-दलिया बनाकर खिलातीं और दवा लेने की हिदायत देतीं। असगर कहते हैं, “मेरी पत्नी ने भी उतना ध्यान नहीं रखा होगा, जितना मासी मां ने रखा। उनकी बातें याद आती हैं तो आंखें भर आती हैं।”

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